गुरुवार, 30 जनवरी 2025

कीचड़,कमल और हम..

एक प्रश्न पूछता हूँ..
-भगवान का सबसे प्रिय पुष्प कौन है..?
-आध्यात्मिक रूप से सबसे ज्यादा महत्व किस फूल का है..?
शायद आपको जबाब मिल गया होगा..
चाहे कोई भी धर्म हो,
हरेक धर्म मे कमल फूल की प्रासंगिकता है...आखिर क्यों..

कमल पवित्रता,सादगी और ओज का प्रतीक है...
चाहे कीचड़ कितना भी क्यों न हो कमल अपने ऊपर कीचड़ के छींटे तक को आने नही देता जबकि उसका जड़ और डंठल कीचड़ में ही रहता है..उसमें जो सुंगध होता है,वो प्रकृति की सुंगंध होती है..उसका ओज हमेशा प्रतिबिंबित होता रहता है,दिन में सूर्य की रोशनी से तो रात में चाँद और तारे की रोशनी से..।


हम मनुष्य भी कमल के समान ही है..
हमारे नाभि से नीचे का हिस्सा जड़ है जो कीचड़ में सना हुआ है..
हमारा रीढ़ कमल के हिस्से के समान है.. और उसपर कमल पुष्प रूपी हमारा मस्तिष्क आसीन है..।
मगर कमल पुष्प रूपी अधिकांश मस्तिष्क खिल नही पाते...आखिर क्यों...??

वर्तमान समय में हमारा पूरा शरीर कीचड़ से लथपथ हो गया है..
मष्तिष्क रूपी पुष्प को खिलने का मौका ही नही मिल रहा है..
क्योंकि हमारे आसपास सिर्फ और सिर्फ कीचड़ ही है..
सुबह से शाम तक हम कीचड़ में ही सने रहते है..
अब तो हम इस कीचड़ के इतने आदि हो गए है कि हमें अहसास तक नही होता कि हम कीचड़ में सने हुए है..।

हम किस तरह के कीचड़ से सने हुए है..
आज हमने दिनचर्या से लेकर खान-पान तक सब को कीचड़ से लथपथ कर दिया है..
आज हम ऐसे-ऐसे चीज खा-पी रहे है जो खाने योग्य नही है,इसका असर हमारे पूरे शरीर पर विपरीत रूप में होता है..
इन्हें खाने-पीने से मष्तिष्क से निचला भाग बहुत ज्यादा ही विकसित हो जाता है जिस कारण अनेक समस्या होती है वंही मष्तिष्क अविकसित होने लगता है,वर्तमान में तो इसका गति और बढ़ गया है इसका प्रमुख कारण स्मार्टफोन का इस्तेमाल करना है..जिससे हमारा मस्तिष्क इतना दूषित हो रहा है..की हमें अब इसके दूषित होने का आभास ही नही हो रहा है क्योंकि हमारे आसपास दूषित मस्तिष्क की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है..।।

क्या इससे छुटकारा पाया जा सकता है..??
जी हां,बिल्कुल..
आपने कमल के फूल को देखा होगा उसपे कभी भी धूल नही जमती..और वो कभी गंदा नही होता..।
क्यों..??
क्योंकि कमल के फूल ने अपने अंदर वो बदलाव लाया है,जिससे वो गंदगी को अपने ऊपर जमने नही देती..
भले ही वो कीचड़ कितना भी उर्वर क्यों न हो कमल का जड़ जरूरत के अनुरूप ही उससे उर्वरक लेता है,उसमें डूब नही जाता..भले ही पानी का कितना स्वच्छ धारा क्यों न बहे वो उसके साथ नही बहता..
इसी तरह हम मनुष्य को भी इस भोगवादी दुनिया में डुबना नही बल्कि उसका जरूरत के रूप में इस्तेमाल कर अपने मस्तिष्क का विकास करना चाहिए..।

ये कैसे संभव होगा..??
उस कमल के फूल की तरह ही एक स्थान पर अडिग रहकर ...
एक आसन लगाए और बैठिये और ध्यान कीजिये..
अगर आप लगातर ध्यान करते रहेंगे तो उस कमल के पुष्प के समान ही आपके अंदर भी पवित्रता,सादगी और ओज आ जायेगा..।।

ध्यान कैसे करें..
बस रीढ़ की हड्डी को सीधे करके आंख बंदकर बैठ जाये..और कुछ नही करना है..
ध्यान में जाना नही होता,ध्यान खुद आता है..मगर पहल,पहले आपको करना होगा..।

ध्यान कितना देर तक करें..
आपकी जितनी उम्र है..उतना मिनेट तो करना ही चाहिए..।।


एक प्रश्न फिर पूछता हूँ..??
क्या कमल की पंखुड़ियां झड़ती है..




मंगलवार, 28 जनवरी 2025

नज़रिया..

एक कहानी सुनाता हूँ..
एक चौराहे पे एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को मार रहा था..
उस झगड़े को देख रहें लोगों में से.. 
एक ने कहा- अच्छा कर रहा है,जो मार रहा है..
दूसरा व्यक्ति ने कहा- आह, कैसे मार रहा है,थोड़ा भी दया नाम की चीज नही है..
तीसरे व्यक्ति ने कहा- इस दोनों का रोज का है..
जरा आप बताइए इस दोनों में से कौन सही है और कौन गलत है..??
शायद आप निर्णय नही कर पाएंगे कि कौन सही है और कौन गलत है..क्योंकि आपको परिस्थितियों का ज्ञात नही है..।।

मगर क्या हम सोशल मीडिया के युग मे ऐसा कर पा रहे है..
शायद नही..
हम बिना असलियत को जाने ही सही और गलत बोलने लगते है..हम यंही तक नही,बल्कि अपने मत पे मतैक्य होने पर लड़ने भी लगते है..।।

"जो चीज हमें सत्य लग रहा है,जरूरी नही की वो दूसरे के लिए सत्य है..क्योंकि काल,परिवेश और परिस्थितियों के अनुसार सत्य भी बदल जाता है।।"

"वास्तविकता ये है कि हम में खुद ही इतनी खामियां है कि हमें दूसरों में सिर्फ खामियां ही दिखती है..
जिसदिन हममें अच्छाइयों का अंकुर फूटना शुरू हो जाएगा..
उस दिन से दूसरों के बुराइयों में भी हमे अच्छाइयां दिखनी शुरू हो जाएगी..।।"

इसलिए दूसरों के विचार से असहमत होने से पहले परिस्थितियों का ज्ञान होना जरूरी है..।।

एक और छोटा सा वास्तविक घटना सुनाता हूँ..
एक घर मे एक बच्चें का जन्म हुआ,ये खबर सुनकर अर्धनारीश्वर लोग बधाइयां मांगने के लिए आये..
उस परिजन और आसपास वाले लोगों ने अर्धनारीश्वर से झगड़ा किया जिसमें एक अर्धनारीश्वर का हाथ टूट गया..वो लोग थाना गए रिपोर्ट लिखवाने थानेदार ने रिपोर्ट नही लिखा..
अगले दिन अर्धनारीश्वर लोगों ने उन पुलिस वालों को मारने के लिए दौड़ाना शुरू किया..

अब आप सोचिए..किसने सही और किसने गलत किया..??

सोमवार, 27 जनवरी 2025

अपेक्षा बोझ नही,दायित्व है..

अपेक्षा हमेशा तकलीफदेह होती है..
हमारी उम्र ज्यों-ज्यों बढ़ती जाती है..
त्यों-त्यों लोगों की अपेक्षा हमसे बढ़ती जाती है..
और हम अपेक्षाओं के बोझ के तले दबते जाते है..।
हम चाहकर भी इन अपेक्षाओं का उपेक्षा नही कर सकते..
क्योंकि हमसे अपेक्षा हमारे माँ-बाप और हमारे हितैषी रखते है..
जिनके अपेक्षाओं को पूरा करना हमारा कर्तव्य होता है..।

मालूम नही कब ये अपेक्षा एक बोझ सा लगने लगता है..।
शायद ये अपेक्षा तब बोझ लगने लगता है,
जब हम किसी के अपेक्षाओं पे खड़े नही उतड़ते..।



वैसे भी माँ-बाप और चाहने वाले क्यों न अपेक्षा करें..
क्योंकि उन्होंने हमारा लालन-पालन किया है..
अगर वो हमारा लालन-पालन न करते तो हमारा क्या होता..??
अगर वो गर्भ में ही मेरा दमन कर दिया होता तो..??
इसीलिए हमसे अपेक्षा रखना उनका अधिकार है..
आखिर उनके अपेक्षा में कंही-न-कंही हमारा ही भला छुपा होता है..
सच कहूं तो माँ-बाप ही है,जो हमेशा हमारे कल्याण के बारे में सोचते है..।
मगर हम जब सक्षम नही होते तो उनके कल्याण में हमें,उनका स्वार्थ नजर आने लगता है..
वास्तविकता तो ये है कि..हम ही नाकाबिल है, जो अपने कमजोरियों को छुपाने के लिए उनके ऊपर दोषारोपण करते है..।।

आखिर आपसे कोई अपेक्षा क्यों न रखें..??
अगर आप किसी के अपेक्षा पे नही उतरते तो ये आपकी कमी है..अपनी कमियों को दूर करके कम-से-कम अपनों के अपेक्षा पे तो खड़े उतरे..।
दरसल हममें सबसे बड़ी ये कमी है कि हमें अपनी कमियां नजर नही आती..इस वजह से हमसे की गई अपेक्षा को जब हम पूरा नही कर पाते तो अपेक्षा हमें बोझ लगने लगती है..।।

आपसे सब अपेक्षा नही रखते..
जो आपके हितैषी होते है..
वही आपसे अपेक्षा रखते है..।।
जिस रोज लोग आपसे अपेक्षा रखना बंद कर दे तो सोच लीजिये.. 
आप या तो गलत दिशा पे जा रहे है,या फिर आप मृतप्राय हो चुके है..।।

अपेक्षा बोझ नही,दायित्व है..
अगर आप नाकाबिल होते है, तो आपको अपेक्षा हमेशा बोझ लगेगी..
अगर आपसे कोई अपेक्षा रखता है,या रखें हुए है..
तो मुस्कुराइए😊... 
की आप जिंदा है..
और जिंदा व्यक्ति कुछ भी कर सकता है..

रविवार, 26 जनवरी 2025

गणतंत्रता दिवस के मायने..

आज 26 जनुअरी है..
इससे बचपन की कुछ यादें जुड़ी हुई है..
हां सच में,कुछ ही यादें जुड़ी हुई है..।।

हमारी(~70% से ज्यादा की) परवरिश और शिक्षा वैसी जगह पर हुई, जंहा पे, शिक्षक को भी पूर्णतया 26 जनुअरी की महत्वता का पूर्ण ज्ञान नही था/है..।।




आज भी भारत की ~50% से ज्यादा आबादी को पता नही होगा कि हम 26 जनुअरी क्यों मनाते है..??
- स्कूली बच्चों के लिए बस एक उत्सव होगा..
- कामगार लोगों के लिए ये एक छुट्टी का दिन होगा..
( वैसे भी आज संडे है...90% से ज्यादा कामगार लोग मन ही मन बोल रहे होंगे साला एक छुट्टी मारा गया..क्योंकि हमें काम से प्यार नही बल्कि आर्थिक उपार्जन का एक साधन मात्र है)
-नेताओं के लिए झंडोत्सव का दिन होगा..

सच कहूं तो किसी के लिए ये खास दिन नही होगा..
ना ही सरकार चाहेगी की ये कोई खास दिन हो..सिर्फ छुट्टी के सिवा..।।

हम 26 जनुअरी क्यों मनाते है..??

आज भी भारत के बहुत बड़ी आबादी को स्वतंत्रता और गणतंत्रता के बारे में पता नही है..

आज के ही दिन हमारा संविधान लागू हुआ,और पूरा देश का वागडोर अब किसी के हाथ मे नही बल्कि संविधान के हाथ मे था..
और इस संविधान को शक्ति "हम भारत के लोग" से मिल रही थी..
हमारे संविधान निर्माताओ ने कई सपने देखें थे..कुछ साकार हुए,और कुछ को साकार करने का प्रयत्न कर रहे है,और कुछ का सिर्फ दिखावा कर रहे है..

हमारे संविधान निर्माताओं ने - सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय का सपना था..अभी तक कोई सपना पूरा नही हुआ है..

सामाजिक न्याय में बहुत हद तक सुधार हुआ है..मगर अभी भी आपको ढेर सारे ऐसे घटना देखने को मिल जाएगा जो आपको विचलित कर देगा..4 दिन पहले की बात है राजस्थान में एक दलित की शादी पुलिस और फ़ोर्स के सरंक्षण में करवानी पड़ी क्योंकि दूल्हा घोड़ी पर चढ़ करके जा रहा था..क्योंकि उस परिवार वर्षों पहले घोड़ी पे चढ़ने के वजह से दूल्हा की हत्या कर दी गई थी..

आर्थिक न्याय...अब आप ही बताए कि कितना न्याय हुआ है..
हां आज 90 के दशक जैसी गरीबी नही है..मगर आज आय की असमानता आजादी के बाद से बढ़ती ही जा रही है..
 " भारत के 1% लोगों के पास आय का 40.1% है,वंही
     भारत के 10% लोगों के पास आय का 77% है.."

राजनीतिक न्याय:- आज कोई आम आदमी M.L.A और M.Ps का चुनाव नही लड़ सकता क्योंकि आज इस चुनाव में जिनके पास पैसा और रुतबा है,उन्हें ही पार्टी टिकट देती है..भले ही आपने समाज मे कितना योगदान दिया है..इससे पार्टी को कोई मतलब नही है..

हमारा संविधान 5 तरह की स्वंतंत्रता की बात करता है:-
" विचार,अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना"
आज अगर आप किसी भी सरकार के खिलाफ गलत विचार और अपना अभिव्यक्ति रखते है..तो आप सरकार के रडार पर आए चाहे नही आये मगर आप उनके अनुयायी के राडार पर जरूर आ जाएंगे(वर्तमान हरेक राष्ट्र का यही हाल है)

-आज एक दूसरे के प्रति कितना विश्वास रह गया है हम-आप जानते ही है..
-धर्म और उपासना..आज बहुत सारे लोग धर्म और उपासना के बारे में कुछ नही जानते मगर इसके बारे में बड़ी-बड़ी बातें करते है..।।

फिर हमारा संविधान "प्रतिष्ठा और अवसर की समानता" की बात करता है..
अगर आप किसी सरकारी दफ्तर में जाते है तो कितना प्रतिष्ठा मिलता है..
जंहा तक अवसर की समानता की बात है..ये तो मजाक बन कर रहा गया है..
जब आप इसकी मांग करेंगे तो आपके ऊपर सिर्फ ज्यादती होगी..
हाल ही में बिहार में एक घटना घटी.. BPSC के अभ्यार्थियों ने री-एग्जाम की बात की क्योंकि 11 हज़ार छात्रों का एग्जाम दुबारा लिया जा रहा था..सरकार ठंड के रातों में पानी से भिंगो कर लाठी से बुरी तरह मारा..
(BPSC के 12 दिसम्बर वाले एग्जाम से 6%छात्र पास हुए, और 4 जनुअरी वाले एग्जाम से 20% से ज्यादा छात्र पास हुए)

कंहा है अवसर की समानता..??
अगर आप हिंदी भाषी राज्य में जन्म लेते है तो आपका औसत मासिक आय 9 हज़ार के आसपास होगा..
और आप गैर हिंदी भाषी राज्य में जन्म लेते है तो आपका मासिक आय ~27हज़ार होगा..

उत्तर भारत के स्कूल में, 10 में से शायद 2 ही बच्चे 10वी क्लास तक स्कूल में कंप्यूटर का इस्तेमाल कर पायेगा..
वंही दक्षिण भारत मे 10 में से 9 छात्र स्कूल में कंप्यूटर का इस्तेमाल कर पाते है..
कंहा है समानता..??

सरकार को क्या करना चाहिए:-
सरकार को कुछ नही भारत के हरेक नागरिक को अपने "मौलिक अधिकार"  और "मौलिक कर्तव्य"का ज्ञान अनिवार्य करना चाहिए..
जिस तरह सरकार ने "सर्व शिक्षा अभियान" चलाया उसी तरह सरकार को " सबको मौलिक अधिकार और मौलिक कर्तव्य का ज्ञान हो" का अभियान चलाना चाहिए..

मगर सरकार नही चलाएगी..
क्योंकि आज भारत मे कुछ चंद ही लोग है, जिन्हें मौलिक अधिकार का भान है,जब ये अपने अधिकार को लेकर सड़क पर उतड़ते है तो इन्हें दमन करने में सरकार को सहूलियत होता है..
अगर सबको मौलिक अधिकार का भान हो जाएगा तो सरकार तब कैसे दमन कर पायेगी..?

सभी को 26 जनुअरी को ढेर सारी शुभकामनाएं..
"गणतंत्रता दिवस" की शुभकामनाएं देकर आपको असमंजस में नही डालना चाहता..
क्योंकि कंही आप ये न सोचने लगे कि गणतंत्र क्या होता है..??


शुक्रवार, 24 जनवरी 2025

क्या चमत्कार होता है..

हम मनुष्य आज से ही नही बल्कि जब से सोचने-समझने की शक्ति हासिल किया, तब से ही चमत्कार शब्द का ईजाद किया..


क्या सच मे चमत्कार होता है..??
सच कहूं तो शायद नही..
प्राचीनकाल से ही मनुष्य चमत्कार की बात करते आया है..
जो चीज उन्हें समझ नही आता था,या फिर जो चीज वो नही कर पाते उसे वो चमत्कार मान लेते थे..

हम आज भी तो यही कर रहा है..
हमें जो चीज समझ मे नही आता उसे चमत्कार मान बैठते है..
और उसकी पूजा करना शुरू कर देते है..
हमारे समाज मैं कई ऐसे लोग मिल जाएंगे जो आज भी किसी चमत्कार के आस मैं बैठे हुए है..ऐसे लोगों के जीवन में कभी चमत्कार नही होता..

अगर चमत्कार होता है तो किसके साथ होता है..??
अगर आपने चमत्कार के बारे मे सुना है तो कुछ हद तक सही ही होगा..मगर आपने किसके बारे मे सुना है..
मुझे पूरा उम्मीद है कि आपने कोई भी चमत्कार किसी आम आदमी के जीवन मे घटित होने के बारे में नही सुना होगा..।।

चमत्कार अक्सरहाँ कठिन परिश्रमी और दृढ़निश्चयी व्यक्ति के ही जीवन में घटित होता है..दरसल ये कोई चमत्कार नही बल्कि उनके परिश्रम का फल होता है..
जब हम उस स्तर का मेहनत नही कर पाते तो उसे चमत्कार मान लेते है..।।

अगर चमत्कार होता तो,
वो किसी के भी जीवन में हो सकता था/है..।
मगर नही,
चमत्कार उन्हीं के जीवन में होता है,
जो अपने परिश्रम,साहस,दृढ़ता,धैर्य और विश्वास से अपने कर्तव्य पथ पे अड़िग रहते है..
अक्सरहाँ उन्ही के जीवन में चमत्कार होता है..।।

क्या आप भी अपने जीवन में चमत्कार लाना चाहते है..
तो कठिन परिश्रम,साहस,दृढ़ता, धैर्य और आत्मविश्वास की क्षमता को विकसित करें.. 
तब देखिए जिंदगी में चमत्कार कैसे होता है..
ये चमत्कार आपको नही बल्कि औरों को दिखेगा..।।

सच कह रहा हूँ..

सच कह रहा हूँ,
थक चुका हूं मैं,
सच कह रहा हूँ
मर चुका हूं मैं..।।

सच कह रहा हूँ,
मैं बस, जिंदा बोझ सा बन के रह गया हूँ..
एक चमत्कार के आस में जीवन व्यतीत कर रहा हूँ,
सच कह रहा हूँ,मर चुका हूं मैं....

सच कह रहा हूँ..
आधे से ज्यादा जिंदगी जाया कर चुका हूं मैं..
बची हुई उम्र को भी जाया करने की और बढ़ा जा रहा हूँ मैं..
सच कह रहा हूँ मैं,मर चुका हूं मैं...

अब कोई उम्मीद नही है किसी से..
सबके उम्मीदों पे,
पानी फेर दिया है मैंने..
कइयों के सपनों के साथ खिलवाड़ किया है मैंने..
अपने ही हाथों से,स्वयं का सत्यानाश किया है मैंने..
सच कह रहा हूँ,मर चुका हूं मैं..

सांस चलने से कोई जिंदा नही होता...
ना ही हांड-मांस की गठरी को ढोकर कोई जिंदा होता..
जिंदा लोगों की पहचान तो है,
नित नए परिवर्तन लाकर जिंदगी में आगे बढ़ते रहना..
सच कह रहा हूँ मैं,मर चुका हूं मैं..

मैं तो कब का मर चुका हूं...
बस सांसे चल रही है..
अगर जिंदा भी हूँ तो 1-2 लोगों के लिए..
अन्यथा मैं तो कब का मर चुका हूं..।।

सच कह रहा हूँ,मर चुका हूँ मैं..
अब लगता है,थक चुका भी हूँ..

क्या इसी तरह,मर के मरना है..
या फिर अच्छी तरह से मरना है..
ये भी नही निर्णय कर पा रहा हूँ मैं..
सच कह रहा हूँ मर चुका हूं मैं..

मैं इस तरह से मर कर मृत्यु को शर्मसार नही करना चाहता..
मैं तो इस तरह मरना चाहता हूं की, 
मृत्यु मेरी आलीगं को आतुर हो..
जब मेरा मृत्यु आलीगं करें..
तो मृत्यु भी हर्षित हो..
पूरा फ़िजा पुष्पित और ये जंहा सुगंधित है..।।

मैं इस तरह नही मरना चाहता..
मैं इस तरह असफलता का बोझ नही ढोना चाहता..

मैं अपनी असफलता को सफलता मैं परिवर्तित करूँगा..
मैं अपनी मृत्यु को उत्सव मैं परिवर्तित करूँगा..
मैं अपने प्रयास से स्वयं का निर्माण करूँगा..।

मैं सच कह रहा हूँ..
मैं फिर से एक नया शुरुआत करूँगा..
अपनी मृत्यु का बहुत विस्तार करूँगा..
मैं यू ही अब अपने जीवन को जाया नही करूँगा..
मैं स्वयं का निर्माण करूँगा..।।

सच कह रहा हूँ..
मैं फिर से एक शुरुआत करूँगा..।।



खुद को अकेले छोड़े

आज हम चारों और से घिरे हुए है,आंतरिक और बाह्य दोनों तरफ से घिरे हुए है..
हमें इस बात का भले ही अहसास न हो कि हमारे आस-पास कोई नही है,मगर वास्तविकता तो ये है कि हमारे आसपास एक पूरी आभासी दुनिया है..
आप इससे जबतक भागने की सोचेंगे तबतक बहुत देर हो चुकी होगी..क्योंकि आप इस दलदल में इतना फंस चुके होंगे कि, इसके बिना आप रह ही नही पाओगे..
आप दो कदम तो बाहर निकलने के लिए बढ़ाओगे..मगर आप फिर इसके और आकर्षित होकर इस दलदल में कूद जाओगे.।।

ये दलदल,ये आभासी दुनिया हमारे-आपके हाथ मे ही है..
ये स्मार्टफोन..
जरा सोचिए इसने आपसे क्या-क्या छीना है...??
इसने आपसे सबकुछ छीन लिया है..
आपका नींद,चैन,सुकून, आंनद.. सबकुछ..
अगर आप असफल है..तो इसका सबसे बड़ा योगदान इस स्मार्टफोन का भी होगा..।।
आपने आखरी बार कब 2 घंटे भी एकांकी समय गुजारा था..
शायद आपको याद नही होगा..

स्मार्टफोन तक तो ठीक था..अब तो स्मार्टवॉच भी अच्छी तरह से हमारी चैन छीन रहा है..

दुनिया पर वही राज करते है..
जिनके पास सोचने और समझने की शक्ति है..
आज स्मार्टफोन और सोशल मीडिया हमारे सोचने और समझने की शक्ति ही छीन रहा है..
हमारा अपना कोई विचार ही नही है..
जिसका विचार पसंद आये हम उसके साथ हो लेते है..मगर ये नही सोचते कि क्या सही है या क्या गलत..।

हमारी स्थिति सच मे गुलामों जैसी हो गई है...
• आपने अपना समार्टफोन इसलिए लिया होगा क्योंकि आपने कंही ऐड देखा होगा..
•आज हम ~60% से ज्यादा सामना कंही न कंही ऐड देख के ही लेते है..चाहे वो खाने का हो या फिर पहनने का..

आज हम खुद से कुछ कर ही नही रहे है,हमसे तो किसी न किसी रूप में कराया जा रहा है..

एक घंटा एकांतवास में गुजारे..
जंहा सिर्फ और सिर्फ आप ही हो..
आपका स्मार्टवॉच भी न हो..
देखिए जिंदगी में कैसा बदलाव आता है...।।



गुरुवार, 23 जनवरी 2025

सुभाष चंद्र बोस..

1905 के "स्वदेशी आंदोलन" के समय एक किशोर बंगाली क्रांतिकारियों का फोटो पेपर से काट कर दीवाल पे चिपकाता है..जिसको देखकर ब्रिटिश सरकार के कर्मचारी उसके पिता ने घबराकर उसे फाड़कर फेंक दिया..

15 साल की उम्र में अपने माता को पत्र लिखता है-
"क्या हमारे देश की हालत बद-से-बदतर ही होती जाएगी, क्या भारत माता का कोई लाल अपने हितों को छोड़कर अपना पूरा जीवन माँ के प्रति समर्पित नही करेगा..??"
ये पत्र लिखने के बाद कुछ समय के बाद ही वो स्वंतंत्रता सेनानी हो गए... जिनके देशभक्ति को गांधीजी ने सर्वोत्तम बताया..

वो व्यक्ति नेताजी सुभाष चंद्र बोस थे..


इनके पिता ने बड़े प्यार से इनका नाम सुभाष रखा जिसका मतलब अच्छा बोलने वाला होता है...उनके पिता ने कल्पना नही की होगी कि वह अपने भाषण क्षमता का इस्तेमाल वे लोगो मे क्रांतिकारिता का जोश भरने के लिए करेंगे..

1940 में 11वी बार गिरफ्तार करके बोस को  कलकत्ता के प्रेसिडेंसी जेल में डाल दिया वंहा तबियत अस्वस्थ होने के बाद उन्हें घर मे ही नजरबंद कर दिया गया.. 
17 जनुअरी 1941 को आधी रात को बीसवीं सदी की सबसे बड़ी साहसिक राजनीतिक पलायन किया..जबतक अंग्रेज़ को पता चला तबतक वो काबुल जाने के लिए पेशावर पहुंच गए..फिर वो मास्को गए वंहा से बर्लिन पहुंच गए..

"अगर किसी राष्ट्र के पास सैन्य ताकत नही है,तो वह अपनी आजादी को बचाने की उम्मीद नही रख सकता ।"

जर्मनी से वो फिर जापान पहुँचे और वंहा 'आज़ाद हिंद फौज' के नेता बन गए..इनके फ़ौज में ~50 हजार फ़ौज थे..
 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में सभी नेताओं को जब गिरफ्तार कर लिया गया था,तब आजाद हिंद फौज अपने चरम पर था..वो भारत के पूर्वी क्षेत्र में घुसने में कामयाब रही.

मगर तबतक जापान ने आत्मसमर्पण कर दिया..कुछ महीनों के बाद बोस रुस के लिए निकले..ताइपे में ईंधन भराने के बाद ज्योहीं प्लैन हवा में उड़ा , आग लग गई..जिसका कोई साक्ष्य नही है..
मगर बोस कंहा गए पता नही चला..
इस घटना पे जॉर्ज ऑरवेल कहते है- दुनिया के लिए ये अच्छा हुआ।

इसके लिए 3 आधिकारिक आयोग बने,आखरी आयोग 2006
में बना जिसमे मान लिया गया कि उनकी मृत्यु 1945  में ही हो गया था..।।
भारत के बाहर उन्हें जो प्रतिष्ठा मिली थी.. उनके मृत्यु के बाद भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनका असर बना रहा..

1921 में अपने भाई शरत को पत्र में लिखा था-
"जिंदगी में कोई संघर्ष न हो,
तो उसका आधा मजा चला जाता है ।"


मंगलवार, 21 जनवरी 2025

नास्त्रेदमस

"नास्त्रेदमस" का नाम सुनते ही आपके जेहन में क्या आता है..
एक भविष्यवक्ता, जिसके कई भविष्यवाणी सच हुए है..।

इसके अलावा हममें से शायद ही किसीको पता होगा कि उन्हें ने मानव समुदाय के लिए और क्या किया...।।



हममें से अक्सरहाँ लोगों को "यूरोप के प्लेग त्रासदी"(ब्लैक डैथ) के बारे में जानकारी होगी..
ये त्रासदी ऐसा था कि, यूरोप की आबादी 50% से कम हो गया था..

ये समय 1528 का था जब "नास्त्रेदमस" ने इस त्रासदी में अपने पत्नी और 2 बच्चों को खोया..
इसके बाद वो प्लेग को समझने का प्रयास करने लगे...
औरों लोगों को समझाने का प्रयास किया कि- ये कोई भगवान का कहर नही बल्कि एक बीमारी है...
लोगों में अंधविश्वास इतना था कि, लोग घाव के जगह चूहे को पकड़कर सहलाते थे..उनका विश्वास था कि इससे घाव ठीक हो जाएगा..।।

नास्त्रेदमस ने अपने आस-पास अध्ययन करने पर पाया कि-
प्लेग का सबसे बड़ा कारण अस्वच्छता है..
उन्होंने ही सर्वप्रथम यूरोप के लोगों को पानी उबालना सिखाया और उस पानी का इस्तेमाल करना सिखाया..

उन्होंने प्लेग से मरे रोगी को अच्छी तरह दफ़नानं सिखाया..
उन्होंने पूरे यूरोप को स्वछता का पाठ सिखाया..
कुआँ,नाला,तालाब,नदी को स्वछता के प्रति लोगों को जागरूक करने में सफल रहे..

उनके इस प्रयास के कारण उन्हें यूरोप में प्लेग का डॉक्टर के नाम से लोग पुकारने लगे..
मगर हम उन्हें किस रूप में जानते है..।।

आज हममें से कई लोग यूरोप की स्वछता की बात तो करते है..
मगर इसके पीछे जिसका अहम योगदान था उसके बारे में हम नही जानते...।।

"कोई जरूरी नही की हम सबकुछ जाने ही..
जरूरी ये है कि हम जिसे जाने,उसे अच्छी तरह जाने..."





आप अपने बच्चों के साथ कितना समय बिताते हैं..

वर्तमान में जिंदगी कितनी आसान हो गई है..
2010 से पहले तक लगभग हरेक चीज के लिए लाइन लगाना पड़ता था..
मगर वर्तमान में लगभग किसी चीज के लिए लाइन लगाना नही पड़ता है..
मगर फिर भी,समय नही बचता....
आखिर ये समय कंहा चला जाता है..??

वर्तमान में हमारे पास इतना समय नही बचता की हम अपनों बच्चों के साथ समय बिताए...।।
बच्चों के साथ रहने का मतलब बच्चों के साथ समय बिताना नही है..
आप जरा गौर कीजियेगा..
जब आप बच्चों के साथ होते है तो क्या करता है..
अगर बच्चा रोये तो आप यूट्यूब पे वीडियो लगा के दे देते है,
या TV पे कार्टून लगा देते है,या फिर कुछ खाने को दे-देते है..
मगर आप ये जानने की कोशिश नही करते कि आखिर वो रो क्यों रहा है...
आजकल ये चलन बढ़ता जा रहा है..
हमारे-आपके बच्चें आजकल अपने परिवार के जगह मोबाइल के साथ व्यतीत करते है..
क्योंकि उसका रोना और उसका मटरगस्ती हमें पसंद नही आता..
इसीलिए हम उसके हाथ में एटम बम रूपी मोबाइल हाथ मे धरा देते है..जो बहुत ही घातक है..।।



क्या आपको याद है..
आपने आखरी बार किसी बच्चे के साथ मटरगस्ती कब किया था..
या फिर उसके साथ सफर पे कब गए थे..
या उसके साथ बातचीत करते हुए कब सोये थे..

वर्तमान में हम इतना एकांकी हो गए है की, जो हमारे साथ है,उसके साथ होते हुए भी हम नही है..क्योंकि हमने एक अपना ही दुनिया रच लिया है..ये दुनिया यूट्यूब, इंस्टाग्राम, और फेसबुक है..इस दुनिया के लिए हमारे पास इतना समय है कि हम खाना-पीना यंहा तक कि सोना भूल जाते है..।।

इसके चक्कर मे हम अपने बच्चों को समय नही दे पा रहे है..
हम 3 से 6 घंटों तक विन्ज़ो वाच करते है मगर बच्चों के ऊपर 30 मिनट भी क्वालिटी टाइम नही बिताते..।।

आखिर क्यों...??
हाल ही में एक रिपोर्ट के अनुसार 10 में 7 परिवार वालों ने माना कि वो अपने बच्चों से ज्यादा समय स्मार्टफोन(सोशल मीडिया) पे देते है,जिस कारण बच्चों और पेरेंट्स में दूरियां बढ़ी है..।।






रविवार, 19 जनवरी 2025

अपना-अपना आसमां

शहर में सबका अपना-अपना आकाश है,
कई बदकिस्मती लोग ऐसे है,
जिनके हिस्से में आकाश क्या, प्रकाश तक नही है..
शहरों में आकाश का दायरा भी,
पैसों से खरीदा जाता है,
जिसके पास जितना पैसा है,उसके हिस्से में उतना आकाश और प्रकाश है..।
मगर ये भी बदकिस्मती लोग है..
क्योंकि इन्हें बाहर की हवा के जगह AC की हवा पसंद है,
सूर्य की प्रकाश के जगह कृत्रिम प्रकाश पसंद है।



इस शहर से दूर....
एक गाँव है..
जंहा पूरा आसमां हमारा है,
जंहा पूरा प्रकाश हमारा है..।।
हम में ही, वो काबिलीयत नही,
जो आसमां और प्रकाश को समेट पाऊ..।।



अब इस गाँव को भी, 
शहर में कमाने वालों की नजर लग गई है,
शहर से गाँव मे जब से पैसे आने लगे है..
सबके घर की छड़दिवाली(boundary wall) बढ़ने लगी है,
और आंगन,दरवाजे गायब होने लगे है..।

बचपन मे आंगन से चाँद देखा करते थे,
अब तो छत पे जाकर देखना पड़ता है,
शहरों के तो छत भी बिक चुके है,
अगर मन हुआ भी तो,चांद का दीदार दुर्लभ है..।।

शहर में सबका अपना-अपना आकाश है..।।



शुक्रवार, 17 जनवरी 2025

हम भारत के लोग...

कुछ चीजें हमारे हाथ में नही होती..
जैसे कि हमारा जन्म कंहा और किस परिवार में होगा..।।

मगर हमारा जन्म कंहा और किस परिवार में हुआ है,ये हमारे पूरे जीवन को निर्धारित करता है..।

अगर कोई बच्चा बिहार,झारखण्ड,ओडिशा और U.P में पैदा होता है,और दूरी ओर एक बच्चा गोवा, दिल्ली, चंडीगढ़ में पैदा होता है,तो उसके जन्म से हो दोनों के बीच मे आय का 6 गुणा अंतर होगा..।।

- उसी तरह अगर कोई बच्चा स्कूल जाएगा तो उसे कंप्यूटर और इंटरनेट की सुविधा मात्र 11-18% स्कूल में ही है,वंही केरल में 98% स्कूलों में इस तरह की सुविधा है..।।

हमारे संविधान निर्माताओं ने "अवसर की समानता " की बात की..
मगर आज भारत में दिन-प्रतिदिन असमानता बढ़ती जा रही है..

2021-22 की एक रिपोर्ट(स्टेटिक रिसर्च डिपार्टमेंट) के अनुसार भारत के 10% आबादी के पास कुल आय का 77% है..।।

•वंही "इकोनॉमिक्स टाइम्स" की 2024 के रिपोर्ट के अनुसार भारत के 1% लोगो के पास कुल आय का 40.1% है..।।



भारत मे ये असमानता पिछले 6 दशक में सर्वाधिक है..।
इस रिपोर्ट के अनुसार प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल में इकोनॉमिक ग्रोथ तो हुआ है,साथ ही अमीर और गरीब के बीच मे खाइयां बढ़ी है..।।



अमीर और गरीबी के बीच की खाइयां हो या फिर विकसित और अविकसित राज्य हो,इसके पीछे सबसे बड़ा हाथ हमारे राजनेताओं का है..
अगर आर्थिक विकास का सही बंटवारा होता तो, कम से कम शिक्षा,स्वास्थ्य और रोजगार के लिए लोगों के एक राज्य से दूसरे राज्य के लिए पलायन न करना पड़ता..।।


मंगलवार, 14 जनवरी 2025

प्रयास से परिणाम मिलते है

असफलता का स्वाद हम सबने चखा है..
अगर आपने नही चखा है तो आप बदकिस्मती लोगों में से एक हो,क्योंकि सफलता का मजा असफल होने के बाद ही आता है...।
इसीलिए जब असफल हो तो घबराए नही,बल्कि अपनी असफलता से सीखे..
और सीखने का प्रयास निरंतर जारी रखें,
क्योंकि " प्रयास से ही परिणाम मिलते है।"

ऐसा इस धरा पे कोई नही है,जिसे बिना प्रयास के ही सफलता मिल गया हो..
सबने अथक परिश्रम करके कोई मुकाम को हासिल किया है..
मगर कुछ लोग होते है,जो अथक प्रयास तो निरंतर करते रहते है,मगर उन्हें वो परिणाम नही मिलता...
शायद नियति उन्हें कंही और ले जाना चाहती है,और वो, कंही और जाना चाहते है..।।

धैर्य रखें,और प्रयास जारी रखें..परिणाम जरूर मिलेगा..।।

•थॉमस अल्वा एडिसन कई प्रयास के बाद बल्ब का आविष्कार कर पाए..।।
•KFC के संस्थापक हारलैंड सैंडर्स के कई असफल प्रयास के बाद KFC अस्तित्व में आया..

 ऐसे ढेर सारे उदाहरण हमारे गली मोहल्ले में मिल जाएंगे..
जो कल तक तो कुछ नही थे,मगर अचानक उनके जिंदगी में बदलाव आ गया..
ये कैसे हुआ..??
क्योंकि उन्होंने प्रयास नही छोड़ा..निरंतर जिंदगी में प्रगति के लिए वो प्रयास करते रहें..।।

विश्वास रखें- "प्रयास से परिणाम मिलते है"

सोमवार, 13 जनवरी 2025

शास्त्री जी की 59वी पुण्यतिथि..??

हमने 11 जनुअरी को लालबहादुर शास्त्री जी की 59 वी पुण्यतिथि मनाई है,अगर वो राजनीतिक भेंट नही चढ़ते तो शायद हम इसदिन को उनके पुण्यतिथि के रूप में नही मनाते..।

लालबहादुर शास्त्री जी ने ताशकंद समझौता के बाद अंतिम फोन अपनी पत्नी को किया,
पत्नी ने कहा -ये आपने क्या कर दिया..
शास्त्री जी ने कहा जब तुम ऐसा कह रही हो,तो देश क्या कह रहा होगा..
मगर मैं एक खुशखबरी ला रहा हूँ,जिसे सुनकर तुम खुश हो जाओगी..
मगर उनके मृत्यु के साथ ही ये खुशखबरी भी खत्म हो गई..।

ताशकंद में अम्बेसडर T.N कौल थे,(जो इंद्रा गांधी के रिश्तेदार था) और उनके कुक मोहम्मद जॉन(सरकारी कुक) था,जिसने शास्त्री जी को पीने के लिए दूध दिया था।मोहम्मद जॉन रिटायरमेंट के बाद पाकिस्तान चला गया, और भारत से उसे पेंसन मिलता रहा.. ।और T.N कौल को फॉरेन सिकरेट्री बना दिया गया।।



1965 के युद्ध में पाकिस्तान की हार हुई मगर उससे ज्यादा बेइज्जती अमेरिका का हुआ,क्योंकि उसके सेबर जेट,और पेटेन्ट टैंक जो दुनिया की सबसे ज्यादा ताकतवर हथियार माना जाता था,उसे हमारे केनबरा और नेट ने उसके हथियार को ऐसी-तैसी कर दिया था..।।

सरकार के अनुसार शास्त्री जी की मृत्यु heart attack  से हुई थी,मगर उनके परिवार के अनुसार उनकी मृत्यु जहर से हुई..।उनका शरीर नीला हो गया,और फुल गया था,जो जहर के कारण ऐसा होता है।
कांग्रेस के नेता महावीर प्रसाद भार्गव ने संसद में कहा कि रूसी सरकार ने पोस्टमार्टम के लिए कहा था मगर हमने मना कर दिया..उस समय के गृह मंत्री ने कहा कि ऐसा कोई बात नही हुआ था..।
1990 के दशक में L.P singh अपनी किताब लिखते है जो उस समय के गृह सचिव थे,जिन्होंने अपनी किताब में इस बात को लिखा कि रूसी सरकार ने पोस्टमार्टम के लिए कहा,और हमलोगों ने मना कर दिया था।
शास्त्री जी के ताशकंद यात्रा से पहले एक IB अधिकारी ताशकंद गया था और उसने अपने रिपोर्ट में कहा कि यंहा रहने की व्यवस्था अच्छा नही है,जिस कारण उसे वंहा से हटा दिया गया।

शास्त्री जी के डॉक्टर, डॉ चुक की मृत्यु चण्डीगढ़ जाते हुए ट्रक से एक्सीडेंट हो गया जिसमें सिर्फ एक बच्चा बचा(लड़की) बाकी सब मर गया,उस ट्रक का कोई पता नही चला।वंही शास्त्री जी के पर्सनल अटेंडेंट रामनाथ की भी मृत्यु इसी तरह से हुई,क्योंकि इन दोनों ने शास्त्रीजी की मृत्यु के ऊपर आवाज उठाई थी..।

1990 के दशक में सोवियत रसिया टूटनी शुरू हो गई जिससे पुरानी बातें सामने आने लगी,भारत मे रशियन एम्बेसी से एक मैगज़ीन आया करती थी जिसका नाम "सोवियत लैंड" था।1991 में एक आर्टिकल छपती है जिसे लिखने वाला KGB का फॉर्मर अफसर था,जिसने लिखा कि शास्त्री के पूरे कमरे को हमने टेप किया था(हरेक सरकार करती है),जब शास्त्री को सीजर आया तो हमें लगा कि कोई गड़बड़ है,मगर इसकी बात कोई नही कर रहा है,हमने उस समय इसलिये नही बताया कि भारत को लगता कि हम टेप कर रहे है।मगर भारत सरकार ने रसिया से शास्त्री जी के अंतिम समय के टेप नही मांगी..

शास्त्री जी की मृत्यु के पीछे कभी अमेरिका, कभी रसिया तो कभी अंदरूनी हाथ बताया जाता है..।

अमेरिका के साथ शास्त्री जी के संबंध अच्छे थे क्योंकि वो ताशकंद जाने से पहले अमेरिकन राष्ट्रपति से बात करके गए थे,और अमेरिका भी चाह रहा था कि ये संधि हो जाये...हाल ही में ढेर सारे अमेरिकन रिकॉर्ड सामने आए है,मगर शास्त्रीजी से जुड़े हुए एक भी साक्ष्य नही मिले..

जंहा तक रसियन की बात है,उसने भारत सरकार से शास्त्री जी की पोस्टमार्टम करने की अनुमति मांगी ,मगर नही दिया गया, KGB ने हरेक कुक को हिरासत में लेकर उससे पूछताछ की...एक रसियन कुक ने कहा कि मोहम्मद जॉन ही आखरी समय शास्त्री जी को दूध दिया...भारत सरकार ने उसके ऊपर कुछ नही किया..।।
जंहा तक भारत सरकार की बात है तो उस समय के अम्बेसडर TN कौल तथ्यों को तोड़ मरोड़कर पेश किया..सच सामने नही आने दिया गया...और TN कौल की प्रोन्नति होती रही...।

वो खुशखबरी क्या थी जो शास्त्री जी अपनी पत्नी को सुनाने वाले थे-
"कुछ इतिहासकार का कहना है कि शास्त्री जी ताशकंद समझौता पे हस्ताक्षर करने के लिए इस लिए राजी हुए की,उन्होंने शर्त रखा कि उन्हें नेताजी सुभाष चन्द्र बोस से मिलाया जाए, रसिया राजी हो गया और उन्हें साइबेरिया ले जाया गया और वंहा पे वो नेताजी से मुलाकात किया,और उसी रात ताशकंद समझौता पे हस्ताक्षर करने के बाद उनकी मृत्यु हो गई।।
मालूम नही सच क्या है...।।"

शास्त्रीजी की मृत्यु राजनीतिक भेंट चढ़ गई..आज तक सरकार ने कोई भी रिकॉर्ड लोगों के सामने नही लाया.जिससे सच का पता चल सके..
जिसने हमें-"जय जवान,जय किसान" का नारा दिया...वो घटिया राजनीति के भेंट चढ़ गया...।
मगर कभी न कभी सच तो सामने आएगा..।।

अनुज धर ने शास्त्री जी पर ढेर सारे रिसर्च किये जिसपे "द ताशकंद फाइल्स" नामक फ़िल्म(   https://youtu.be/ikblK9gzKxA?si=WbagNxTcDtFo5TSo  ) आई थी,और उन्होंने बुक भी लिखा..







जब कुछ ना समझ आये..

सुबह-सुबह बाइक से आ रहा था..
और मेरे सामने एक मौन मुस्कान लेकर एक बूढ़ी महिला सामने आ गई,वो असमंजस में थी कि इधर जाऊ की उधर..मैंने अपनी गाड़ी स्लो किया और वो, एक तरफ से मुस्कुराते हुए निकल गई..।।


ऐसी घटनाएं हममें से अक्सरहाँ लोगों के साथ कभी-न-कभी हुआ ही होगा..मगर हम इससे सीखते क्या है..??

जब जिंदगी में हताश और निराश हो, और कोई रास्ता ना दिखे, तो सबकुछ ऊपर वाले के ऊपर छोड़ दे,विश्वास के साथ...।।
वो आपके लिए बेहतर ही करेंगे..विश्वास रखें वो बेहतर रास्ते पे ले जाएंगे..।।

मगर आज हममें, विश्वास और धैर्य की कमी है..।।
जिस वजह से भगवान अच्छा तो करना चाहते है,मगर उससे पहले ही हम कुछ और कर बैठते है..।।
"जब कुछ न समझ में आये,तो एकबार सबकुछ उसके ऊपर छोड़के देखे,सबकुछ अच्छा होगा"।।

रविवार, 12 जनवरी 2025

स्वामी विवेकानंद: संघर्ष से विवेकानंद की यात्रा..

अगर मैं पुछु..50,100,1000 साल पहले के लोग के नाम बताए..
तो आप किन-किन लोगों के नाम बता पाएंगे..।।



अच्छा जिन लोगों के नाम आपके जेहन में आ रहे है...
आखिर उनका ही नाम क्यों आ रहा है..??

"जिसका संघर्ष जितना बड़ा होता है,
 वो उतने ही लंबे समय तक याद किये जाते है ।"

आपके जेहन मैं जिनका-जिनका नाम आया है उन सबों ने संघर्ष करके ही अपनी छाप छोड़ी है..।
हम जब उस स्तर के संघर्ष नही कर पाते,तो उनके संघर्ष को कम दिखाने के लिए उन्हें देवत्व स्वरूप मानने लगते है, उनके महानता के अनेक मनगढंत कहानियां रचने लगते है..।।

आज उस संघर्षरत संन्यासी का जन्मदिन है,वो हट्टा-कट्टा इंसान थे,जो कम-से-कम 80 साल तो अवश्य जीते,मगर उनकी मृत्यु 39 साल की उम्र में हो गई।
और हमने क्या किया जब तक जिंदा रहे तबतक तो उनकी मदद नही की और हमने उनके मरने के बाद उन्हें महान बना दिया..।।
आज उसी संन्यासी का जन्मदिन है जिनके नाम पर हम
"युवा दिवस"मनाते है,उनका नाम "स्वामी विवेकानंद" था।।

स्वामी विवेकानंद से क्या सीखे...??
उनसे नही उनके संघर्ष से हमें सीखनी चाहिए,जो हमें बताया नही जाता..।।
आखिर वो शिकागो कैसे गए..??
वो वंहा समय से पहले पहुंच गए थे वो समय उन्होंने कैसे गुजारा..।।
जब वो उपनिषद के विचारों को पश्चिम में फैला रहे थे,तो भारतीय ही उनके कार्यो में रोड़ा डाल रहे थे,यंहा तक कि उन्हें दुराचारी और ठगी कह कर बदनाम किया जा रहा था..।।
 "बिहारीदास देसाई"को 20 जून 1894 में लिखित पत्रों में उन्होंने अनेक बातों का जिक्र किया है,जो ज़्यादती भारतीय ही उनके साथ कर रहे थे..
यंहा तक कि भारत के अखबारों में उनके चरित्र पर प्रश्न उठाये गए..तो इनके बारे में जब उन्हें गुरुभाई ने बताया तो उन्होंने आक्रोशित होकर कहा -"ये गुलाम मानसिकता के लोग मेरे बारे में क्या कहेंगे,जब हमें गुलामी की मानसिकता जकड़ लेती है तो हमारे अंदर ईष्या पैदा हो ही जाती है"।

उन्होंने अपने पत्रों में लिखा कि भारतीय लोग मेरे कार्यों के लिए  1 पैसे तक कि मदद नही कर रहें है,और जो पश्चिम में करना चाहते है,उन्हें भी करने से रोक रहे है..।।

अपने मिशन को साकार करने के लिए जितने संसाधन की जरूरत थी,वो उनके जीवनकाल में कभी उपलब्ध नही हुए ।
वे सालों-साल प्रतिदिन भाषण देते, पदयात्रा करते,विदेश जाते और जनसाधारण तक वेदांत और सनातन धर्म की शिक्षा देते..।

स्वामीजी ने बहन निवेदिता के लिखे पत्रों में कहा कि,आजकल मेरी तबियत ठीक नही रहती,शायद देर रात तक रोज भाषण देने के कारण,और एक-एक पाइ का हिसाब रखने के कारण..।

जबतक स्वामी विवेकानंद जिंदा रहे तबतक उन्हें वो सम्मान हमनें नही दिया..यंहा तक कि उन्होंने अपने माँ के घर के लिए अग्रिम पैसा बेचने वालों को दिया था,वो पैसा भी इसने ये सोच के घपला कर लिया कि ये संन्यासी है,तो कोर्ट नही जाएगा...।।
हमने सिर्फ उन्हें यातना ही दिया है..

उन्होंने अंतिम समय मे "रामकृष्ण मिशन" की स्थापना की..
विवेकानंद लिखते है कि इस मिशन के बारे में इतना दुष्प्रचार किया जा रहा था कि हम गुरुभाइयों के लिए चावल तो बन जाता था,मगर नमक के अभाव में सिर्फ चावल ही खाना पड़ता था..।।मगर वो शुकुन के क्षण थे..क्योंकि मैंने अपना कार्य कर चुका था..।।

बंगाल के लेखक "मणिशंकर मुखर्जी"लिखते है कि स्वामी विवेकानंद को अभास था कि अगर हम अपने स्वास्थ्य की परवाह किया तो मैं अपने कार्यो को नही कर पाऊंगा..
जब उनकी मृत्यु हुई तो उनके अनेक पत्र-आलेखों से पता चलता है कि उन्हें 31 प्रकार की बीमारी थी..।।
और ये बीमारी उनके निरंतर अपने लक्ष्य प्राप्ति की और अग्रसर होने के कारण हुआ..।।
आज वो हमारे बीच नही है, मगर उनके द्वारा किया गया संघर्ष आज भी पूरे विश्व को, रामकृष्ण मिशन के रूप में सिंचित कर रहा है..
आज विश्व के लगभग हरेक देश मे रामकृष्ण मिशन की शाखा है,और इनका धेय्य "मानव सेवा ही भगवान की सेवा के रूप मे है"।।

स्वमी विवेकानंद से हम बहुत कुछ सीख सकते है-
मगर वर्तमान में सबसे ज्यादा अगर उनसे सीख सकते है तो उनसे यही सीख सकते है कि- 
"संघर्ष चाहे कितना भी बड़ा क्यों ना हो,
परिस्थितियां भले ही कितना भी, विपरीत क्यों न हो,
अपने लक्ष्य से कभी नही हटना है,
चाहे इसके लिए सरस्व क्यों ना दांव पे लगाना पड़े"

मगर आज के युवा क्या कर रहे है...
थोड़ी सी ही परेशानियां में हताश और निराश ही नही बल्कि मौत को गले लगा लेते है..
जो बिल्कुल गलत है..।।

स्वामी जी को भविष्य की पीढ़ियों से बहुत आस थी..
मगर आज की पीढ़ी को अगर वो कंही से देख रहे होंगे तो बहुत निराश होंगे..
क्योंकि स्वामी जी अपने गुरु भाई से कहा करते थे कि हमें मध्यम वर्ग के युवाओं से सबसे ज्यादा उम्मीद है..क्योंकि ये ही क्रांति के वाहक है,ये ही बदलाव के वाहक है..
मगर आज के मध्यम वर्ग के कुछ युवा तो नेटफ्लिक्स,ऐमज़ॉन प्राइम वीडियो,इत्यादि पे विन्ज़ो वाच करके रात गुजारते है,जिन युवाओं को मैदान में होना चाहिए और शरीर को हष्ट-पुष्ट बनाना चाहिए वो युवा आज स्मार्टफोन पे अपने शरीर को नष्ट कर रहे है..।।
स्वामी विवेकानंद को जिन लोगो से डर था,उनका डर सही था क्योंकि आज भी भारत मे कुछ चंद लोगी का ही वर्चस्व है,जो आज भी बदलाव को पाँव से कुचल रहे है,और अपने अनुसार देश की दशा और दिशा तय कर रहे है..।।

मगर कभी-न-कभी तो विवेकानंद का स्वप्न जरूर पूरा होगा-
         "उठो,जागो और अपने लक्ष्य की प्राप्ति करो।"

https://mnkjha.blogspot.com/2023/01/blog-post_12.html

शुक्रवार, 10 जनवरी 2025

अच्छे और बुरे इंसान कौन होते है..??

सबसे बुरे इंसान कौन होते है..??

वैसे कोई बुरा नही होता,हरेक इंसान में अच्छाइयां होती ही है..

वैसे कबीर दास जी कहते है-

"बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोई,जो दिल खोजा आपना मुझसे बुरा न कोई।"

मगर ऐसे इंसान से हमेशा दूरियां बनाके रखें,

जो दूसरों की निंदा पीठ-पीछे करता है,

जो दूसरों का मजाक पीठ-पीछे उड़ाता है,

ऐसे इंसान में चाहे कितनी भी अच्छाईयां क्यों न हो..

उनसे दूरियां बनाके रखें..

ऐसे इंसान किसी के नहीं होते..

और इनसे बुरा कोई नही होता..क्योंकि ये आपके साथ तबतक ही होते है,जबतक इनका स्वार्थ आपसे सधता है।।


सबसे अच्छे इंसान कौन होते है ...😊??

जो किसी भी परिस्थितियों में, दुश्मन तक कि निंदा नही,बल्कि प्रसंशा करते है,वो सबसे अच्छे इंसान है..🙂

ये अगर आपकी निंदा आपके सामने करते है,तो आप अपनी खुशनसीबी समझें..।

कबीरदास जी कहते है-

"निंदक नियरे राखिये,आंगन कुटी छवाय,बिन पानी,साबुन बिना,निर्मल करे सुभाय।"

क्योंकि आजकल जो आपके हितैषी है,(माँ-बाप,भाई-बहन,शिक्षक,मित्र इत्यादि) वो भी आपकी निंदा आपके सामने करने से बचते है,क्योंकी आजकल हमें इनकी बात भी बुरी लगने लगी है...।।

पहले ऐसा नही था..मगर अब ये चलन बढ़ता जा रहा है..।

क्योंकि हमारी शिक्षा आधुनिक जो होती जा रही है..

ये हमें पैसा कमाना तो सिखा रहा है,

मगर परिस्थितियों से सामना करना नही है।।





बुधवार, 8 जनवरी 2025

महिलाएं सबसे ज्यादा असुरक्षित कंहा है..

एक बात पूछता हूँ...
महिलाएं या लड़कियां सबसे ज्यादा सुरक्षित कंहा है..??


शायद आप जो जबाब सोच रहे है... वो गलत हो....


हाल ही में UN(यूनाइटेड नेशंस) द्वारा जारी घरेलू हिंसा रिपोर्ट में बताया गया है कि-
" महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित स्थान घर है ।"
जबकि सुरक्षित स्थान घर के बाहर सार्वजनिक स्थान और कार्यस्थल है..।

2023 में 85 हज़ार महिलाओं एवं बालिकाओं की हत्या जानबूझकर किया गया, (ये आंकड़े ज्यादा भी हो सकते है)
इसमें 60% हत्याएं किसी साथी या परिवार के द्वारा किया गया..प्रतिदिन 140 महिलाओं एवं बालिकाओं की हत्या उनके अंतरंग साथी या परिवार के सदस्य द्वारा कर दी जाती है..।।
(यानी जबतक आप इसे पढ़ के खत्म करेंगे तबतक किसी पारिवारिक सदस्य के द्वारा ही किसी महिला की हत्या कर दिया गया होगा)

आपको जानकर हैरानी होगी कि,इस तरह की हत्या सर्वाधिक अफ्रीका में किया जा रहा है..
वंही घरेलू हिंसा सर्वाधिक अमेरिका में किया जा रहा है,UN के अनुसार 1 लाख महिलाओं पर 1.6 महिलाओं पे किया जाता है..।।
•वंही यूरोप(1लाख/0.6) और एशिया(1लाख/0.8) में ये दर कम है..।

हो सकता है वास्तविकता इससे और भयावह हो..क्योंकि कुछ मामलों को दबा दिया जाता है..

•वंही UN रिपोर्ट के अनुसार पुरषों की अधिकांश हत्या घर के बाहर होता है,80% वंही महिला की 20% होती है..।।

महिलाओं के लिए घर सुरक्षित नही है, वंही पुरुष घर के बाहर सुरक्षित नही है..।।

जरा सोचियेगा..
आखिर क्यों महिलाओं के लिए घर सुरक्षित नही है...
क्या आप उनमें से तो नहीं,जिसके कारण कोई महिला या बालिकाएं या फिर गर्भ में पल रही बची असुरक्षित महसूस कर रही है..।।

आखिर क्यों कोई ऐसा करता है...??
"की महिला घर में ही असुरक्षित महसूस करती है"....

मंगलवार, 7 जनवरी 2025

हम मनुष्यों ने कई कीर्तिमान रचें..

इस अथाह समुन्द्र की कोई थाह नही है..(अब है)
इस खुले आसमां का कोई किनारा नही है..
इसी तरह मनुष्य की जिजीविषा का कोई अंत नही है..।
मनुष्य आज कंहा नही है..
अगर जंहा नही है..
वंहा का इसे पता नही है..
अन्यथा ये हर जगह है,
जंहा नही है,
वंहा जाने का प्रयत्न कर रहा है..।।



हम मनुष्यों ने कई कीर्तिमान रचें..
हमने अपने स्वार्थ के लिए,
अपनों का भी बलिदान दिया..
हम यू ही आज सभ्य नही कहलाते..
हमने कई सभ्यताओं का नाश कर,
आज सभ्य हुए है..
हम मनुष्यों ने कई कीर्तिमान रचे है..।

जितनी परतें खोलते जाऊंगा..
हमारी असभ्यता का परत-दर-परत खुलता जाएगा..
हम मनुष्यों ने कई कीर्तिमान रचें है..
हमारे कारण आज प्रकृति के कई जीव-जंतु और पेड़-पौधे
विलुप्त हो गए..
कितने आज विलुप्ति के कगार पे है..
आज हम मनुष्यों के कारण ऐसा कोई जगह नही जो सुरक्षित है..
हम मनुष्यों ने कई कीर्तिमान रचें है..
विकास के नाम पर हम खुद को नाश करने के कगार पे ले जा रहे है..।।
शायद ही पृथ्वी का कोई कोना हो,जो आज शांत हो..
हम मनुष्यों ने अपनी आहटों से सबकी शांति भंग कर दी है..।


हम मनुष्यों ने कई कीर्तिमान रचें..
हमने अपने स्वार्थ के लिए,
अपनों का भी बलिदान दिया..
हम यू ही आज सभ्य नही कहलाते..
हमने कई सभ्यताओं का नाश कर,
आज सभ्य हुए है..
हम मनुष्यों ने कई कीर्तिमान रचे है..।।

सोमवार, 6 जनवरी 2025

एलिफेंटा की यात्रा

"यात्रा हमेशा आपके जीवन में बदलाव लाता है..
अगर यात्रा आपके जीवन में बदलाव नही लाता तो वो यात्रा व्यर्थ है..।।"

मैं सोचता हूँ, आज हम कितना विकसित हो गए है..
मगर जब एलिफेंटा जैसी गुफाओं में खुदी आकृति,कलाकृति को देखता हूँ ,तो आश्चर्यचकित होता हूँ..
आज हमारे अंदर धैर्य की बिल्कुल ही कमी है..
मगर इन कलाकृतियों,आकृतियों को तराशने में कितना धैर्य रखना पड़ा होगा ये हम सोच के ही घबराते है..।।

वो क्या कलाकार रहें होगा..
वो कैसा हथौड़ी-छैनी रहा होगा..
जिसने पहाड़ में छुपी शिव की प्रतिमा को सबके सामने ला दिया..
जो आज भी जीवंत दिखलाय दे रहा है..
जिसे देखकर आप भाव-विभोर हो जाओगे..
आप उस तेजोमयी आभा से सरोबोर हो जाओगो..।





https://en.m.wikipedia.org/wiki/Elephanta_Caves