एक चौराहे पे एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को मार रहा था..
उस झगड़े को देख रहें लोगों में से..
एक ने कहा- अच्छा कर रहा है,जो मार रहा है..
दूसरा व्यक्ति ने कहा- आह, कैसे मार रहा है,थोड़ा भी दया नाम की चीज नही है..
तीसरे व्यक्ति ने कहा- इस दोनों का रोज का है..
जरा आप बताइए इस दोनों में से कौन सही है और कौन गलत है..??
शायद आप निर्णय नही कर पाएंगे कि कौन सही है और कौन गलत है..क्योंकि आपको परिस्थितियों का ज्ञात नही है..।।
मगर क्या हम सोशल मीडिया के युग मे ऐसा कर पा रहे है..
शायद नही..
हम बिना असलियत को जाने ही सही और गलत बोलने लगते है..हम यंही तक नही,बल्कि अपने मत पे मतैक्य होने पर लड़ने भी लगते है..।।
"जो चीज हमें सत्य लग रहा है,जरूरी नही की वो दूसरे के लिए सत्य है..क्योंकि काल,परिवेश और परिस्थितियों के अनुसार सत्य भी बदल जाता है।।"
"वास्तविकता ये है कि हम में खुद ही इतनी खामियां है कि हमें दूसरों में सिर्फ खामियां ही दिखती है..
जिसदिन हममें अच्छाइयों का अंकुर फूटना शुरू हो जाएगा..
उस दिन से दूसरों के बुराइयों में भी हमे अच्छाइयां दिखनी शुरू हो जाएगी..।।"
इसलिए दूसरों के विचार से असहमत होने से पहले परिस्थितियों का ज्ञान होना जरूरी है..।।
एक और छोटा सा वास्तविक घटना सुनाता हूँ..
एक घर मे एक बच्चें का जन्म हुआ,ये खबर सुनकर अर्धनारीश्वर लोग बधाइयां मांगने के लिए आये..
उस परिजन और आसपास वाले लोगों ने अर्धनारीश्वर से झगड़ा किया जिसमें एक अर्धनारीश्वर का हाथ टूट गया..वो लोग थाना गए रिपोर्ट लिखवाने थानेदार ने रिपोर्ट नही लिखा..
अगले दिन अर्धनारीश्वर लोगों ने उन पुलिस वालों को मारने के लिए दौड़ाना शुरू किया..
अब आप सोचिए..किसने सही और किसने गलत किया..??
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