इस अथाह समुन्द्र की कोई थाह नही है..(अब है)
इस खुले आसमां का कोई किनारा नही है..
इसी तरह मनुष्य की जिजीविषा का कोई अंत नही है..।
मनुष्य आज कंहा नही है..
अगर जंहा नही है..
वंहा का इसे पता नही है..
अन्यथा ये हर जगह है,
जंहा नही है,
वंहा जाने का प्रयत्न कर रहा है..।।
हम मनुष्यों ने कई कीर्तिमान रचें..
हमने अपने स्वार्थ के लिए,
अपनों का भी बलिदान दिया..
हम यू ही आज सभ्य नही कहलाते..
हमने कई सभ्यताओं का नाश कर,
आज सभ्य हुए है..
हम मनुष्यों ने कई कीर्तिमान रचे है..।
जितनी परतें खोलते जाऊंगा..
हमारी असभ्यता का परत-दर-परत खुलता जाएगा..
हम मनुष्यों ने कई कीर्तिमान रचें है..
हमारे कारण आज प्रकृति के कई जीव-जंतु और पेड़-पौधे
विलुप्त हो गए..
कितने आज विलुप्ति के कगार पे है..
आज हम मनुष्यों के कारण ऐसा कोई जगह नही जो सुरक्षित है..
हम मनुष्यों ने कई कीर्तिमान रचें है..
विकास के नाम पर हम खुद को नाश करने के कगार पे ले जा रहे है..।।
शायद ही पृथ्वी का कोई कोना हो,जो आज शांत हो..
हम मनुष्यों ने अपनी आहटों से सबकी शांति भंग कर दी है..।
हम मनुष्यों ने कई कीर्तिमान रचें..
हमने अपने स्वार्थ के लिए,
अपनों का भी बलिदान दिया..
हम यू ही आज सभ्य नही कहलाते..
हमने कई सभ्यताओं का नाश कर,
आज सभ्य हुए है..
हम मनुष्यों ने कई कीर्तिमान रचे है..।।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें