रविवार, 19 जनवरी 2025

अपना-अपना आसमां

शहर में सबका अपना-अपना आकाश है,
कई बदकिस्मती लोग ऐसे है,
जिनके हिस्से में आकाश क्या, प्रकाश तक नही है..
शहरों में आकाश का दायरा भी,
पैसों से खरीदा जाता है,
जिसके पास जितना पैसा है,उसके हिस्से में उतना आकाश और प्रकाश है..।
मगर ये भी बदकिस्मती लोग है..
क्योंकि इन्हें बाहर की हवा के जगह AC की हवा पसंद है,
सूर्य की प्रकाश के जगह कृत्रिम प्रकाश पसंद है।



इस शहर से दूर....
एक गाँव है..
जंहा पूरा आसमां हमारा है,
जंहा पूरा प्रकाश हमारा है..।।
हम में ही, वो काबिलीयत नही,
जो आसमां और प्रकाश को समेट पाऊ..।।



अब इस गाँव को भी, 
शहर में कमाने वालों की नजर लग गई है,
शहर से गाँव मे जब से पैसे आने लगे है..
सबके घर की छड़दिवाली(boundary wall) बढ़ने लगी है,
और आंगन,दरवाजे गायब होने लगे है..।

बचपन मे आंगन से चाँद देखा करते थे,
अब तो छत पे जाकर देखना पड़ता है,
शहरों के तो छत भी बिक चुके है,
अगर मन हुआ भी तो,चांद का दीदार दुर्लभ है..।।

शहर में सबका अपना-अपना आकाश है..।।



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