हमारी उम्र ज्यों-ज्यों बढ़ती जाती है..
त्यों-त्यों लोगों की अपेक्षा हमसे बढ़ती जाती है..
और हम अपेक्षाओं के बोझ के तले दबते जाते है..।
हम चाहकर भी इन अपेक्षाओं का उपेक्षा नही कर सकते..
क्योंकि हमसे अपेक्षा हमारे माँ-बाप और हमारे हितैषी रखते है..
जिनके अपेक्षाओं को पूरा करना हमारा कर्तव्य होता है..।
मालूम नही कब ये अपेक्षा एक बोझ सा लगने लगता है..।
शायद ये अपेक्षा तब बोझ लगने लगता है,
जब हम किसी के अपेक्षाओं पे खड़े नही उतड़ते..।
वैसे भी माँ-बाप और चाहने वाले क्यों न अपेक्षा करें..
क्योंकि उन्होंने हमारा लालन-पालन किया है..
अगर वो हमारा लालन-पालन न करते तो हमारा क्या होता..??
अगर वो गर्भ में ही मेरा दमन कर दिया होता तो..??
इसीलिए हमसे अपेक्षा रखना उनका अधिकार है..
आखिर उनके अपेक्षा में कंही-न-कंही हमारा ही भला छुपा होता है..
सच कहूं तो माँ-बाप ही है,जो हमेशा हमारे कल्याण के बारे में सोचते है..।
मगर हम जब सक्षम नही होते तो उनके कल्याण में हमें,उनका स्वार्थ नजर आने लगता है..
वास्तविकता तो ये है कि..हम ही नाकाबिल है, जो अपने कमजोरियों को छुपाने के लिए उनके ऊपर दोषारोपण करते है..।।
आखिर आपसे कोई अपेक्षा क्यों न रखें..??
अगर आप किसी के अपेक्षा पे नही उतरते तो ये आपकी कमी है..अपनी कमियों को दूर करके कम-से-कम अपनों के अपेक्षा पे तो खड़े उतरे..।
दरसल हममें सबसे बड़ी ये कमी है कि हमें अपनी कमियां नजर नही आती..इस वजह से हमसे की गई अपेक्षा को जब हम पूरा नही कर पाते तो अपेक्षा हमें बोझ लगने लगती है..।।
आपसे सब अपेक्षा नही रखते..
जो आपके हितैषी होते है..
वही आपसे अपेक्षा रखते है..।।
जिस रोज लोग आपसे अपेक्षा रखना बंद कर दे तो सोच लीजिये..
आप या तो गलत दिशा पे जा रहे है,या फिर आप मृतप्राय हो चुके है..।।
अपेक्षा बोझ नही,दायित्व है..
अगर आप नाकाबिल होते है, तो आपको अपेक्षा हमेशा बोझ लगेगी..
अगर आपसे कोई अपेक्षा रखता है,या रखें हुए है..
तो मुस्कुराइए😊...
की आप जिंदा है..
और जिंदा व्यक्ति कुछ भी कर सकता है..
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