पिता रेलवे स्टेशन पर कुली का काम करते थे,और माँ किसी के घर पर साफ-सफाई का काम करती थी..
वो जन्म से ही लगातार बीमार रहती थी..4 साल के उम्र में निमोनिया हो गया,बचते-बचते बच गई.. मगर कुछ समय बाद पोलियो ग्रस्त हो गई..इस बार उनका बायां पैर लगभग लकवाग्रस्त हो गया..
डॉक्टरों का कहना था...ये फिर कभी इस पाँव का इस्तेमाल नही कर पायेगी..
अब आपको क्या लगता है..
क्या ये लड़की कभी दौड़ पाएगी..??
अगर दौड़ पाएगी भी तो कितना दौड़ पाएगी..??
क्या इतना तेज दौड़ पाएगी, की दुनिया इसे याद रखें..??
हां वो लड़की सिर्फ दौड़ी ही नही,
बल्कि 1960 के रोम ओलंपिक में इतना स्पीड दौड़ी की 3 गोल्ड मैडल जीत गई..
100मीटर,200मीटर,4×100मीटर रिले में..
वो विल्मा रुडोल्फ थी..
जिसने असंभव को संभव बनाया..
मगर इसमें उनके परिवार वालों का भी अहम योगदान था..
वो अपनी माँ के साथ हरेक सप्ताह अपने घर से 80km दूर इलाज के लिए जाती थी..ये सिलसिला 2 साल तक चलता रहा..
उसके बाद घर पर ही दिन में 4 बार इनके पाँव को मसाज किया जाता था..ये सिलसिला 8 साल तक चला..
और 12 साल के उम्र में उन्होंने लेग ब्रेस और आर्थोपेडिक जूते उतार कर फेंक दिया..
और अपने स्कूल में सबसे पहले बास्केटबॉल खेलना शुरू किया फिर दौड़ना शुरू किया..
वो क्या चीज था..
जिसने विल्मा रुडोल्फ को दौड़ने के लिए मजबूर किया..??
इच्छा शक्ति,दृढ़ संकल्पता और सतत प्रयास के द्वारा परिणाम बदला जा सकता है..
क्या आप तैयार है..अपने उन अवगुणों के अपंगताओ को त्यागने के लिए..??
विश्वास रखें...प्रयास से परिणाम बदलते है..।।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें