शनिवार, 16 अगस्त 2025

श्रीकृष्ण के जीवन का सारांश..

जिस कृष्ण को हम पूजते है,उससे कुछ सीखते ही नही.. तो फिर पूजने से क्या होगा..??


श्रीकृष्ण के पूरे जीवन का सारांश यही है,की संघर्ष से मत भागो,हां अगर भाग सकते हो तो इतना दूर भागो की वो तुम्हारा पीछा न कर पाए..।।

जब जरासंध बार-बार मथुरा पे आक्रमण कर रहा था तब कृष्ण थककर वंहा से अपने सगे संबंधी और प्रजा को लेकर द्वारका आ गए...और खुद को इतना सुदृढ़ किये की उन्होंने, जरासंध के अखाड़े में ही भीम के द्वारा उसे परास्त किया।।

कृष्ण से श्रीकृष्ण की यात्रा इतना आसान नही थी..जिसके जन्म से पहले ही मृत्यु पहरा दे रहा हो,उसका जीवन कैसा हो सकता है..?

श्रीकृष्ण के जीवन के झलकियों को देखे तो ताउम्र वो संघर्षों और द्वन्दों से ही जूझते रहें..मगर चेहरे पर हमेशा मंद मुस्कान मृत्यु तक बनाये रखें..।।

मगर उन्होंने हरेक का निराकरण किया उससे भागे नही,उसका सामना किया...।।

हम किसी को भगवान या पुण्यात्मा तब कहना शुरू करते है..जब हम उनके आचरणों का अनुसरण नही कर पाते या फिर उसके आसपास भी नही होते, तो हम उन्हें भगवान मान लेते है..।।

भगवान मानना आसान है,मगर सही आचरण का अनुसरण करना कठिन है..।।

और हमारे भारतभूमि में कई पुण्यात्मा हुए जो उन आचरणों का अनुशरण करके आज पूजनीय बने हुए है..।।

कृष्ण को पूजना तब सार्थक होगा,जब हम उनके आचरण से कुछ सीखें.. वो बहुत विस्तृत है..आप उनमें से जो भी कुछ चाहे,वो ले सकते है..और उस आचरण का अनुसरण कर सकते है..।।

गुरुवार, 14 अगस्त 2025

भारत की आजादी 15 अगस्त को क्यों..??

आपने अक्सरहाँ सुना होगा.."भारत सोने की चिड़िया था"
कभी सोचा है क्यों..?

इसके अनेक कारण है,मगर इन अनेक कारणों का एक कारण भारत की भोगौलिक स्थिति है..
जिस कारण भारत मे विभिन्न संस्कृति-सभ्यता,भाषा,रहन-सहन,और आर्थिक विकास हुआ..।।

गंगा-सिंधु का उपजाऊ मैदान और मालाबार,कोरोमंडल तट ने भारत को समृद्ध ही नही बल्कि सोने की चिड़िया बनाया..।इन क्षेत्र ने भारत को इतना समृद्ध बनाया की, भारत में कई देशों से धन आना शुरू हो गया..आज जैसे अमेरिका आर्थिक रूप से केंद्र में है,उसी तरह एक समय भारत केंद्र में था..।

आखिर ऐसा क्या हुआ कि भारत का पतन होना शुरू हो गया..??.
●भारत की पतन की शुरुआत की नींव 1600 में ब्रिटेन में,ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना से शुरू होता है..इस कंपनी का पहला जहाज 1608 में सूरत में पहुंचता है..और मुगल शाशकों से टैक्स में छूट प्राप्त कर  मशालों और कपड़ो का व्यापार शुरू करते है..
(जैसे आज हरेक घर मे चीनी समान है, उसी तरह उस समय यूरोप के अधिकांश घरों में भारत के मशालें और कपड़े हुआ करता था।)

● औरंगजेब के मृत्यु के बाद कोई मजबूत मुगल शासक नही हुआ जिस कारण मुग़ल साम्राज्य बिखर गया और कई सूबा अलग होकर खुद को स्वतंत्र मानने लगा..जिसका फायदा अंग्रेज कंपनी ने उठाया..उसे अपना संरक्षण देकर..।।

प्लासी की लड़ाई(1757) और बक्सर की लड़ाई(1764) में अंग्रेजों की जीत और पानीपत की लड़ाई(1761) में मराठों की हार ने भारत को पूर्णतया कंपनी के अधीन बना दिया..।

अंग्रेज के खिलाफ विद्रोह की शुरुआत..??
●अंग्रेज के खिलाफ प्रथम विद्रोह जनजाति लोगों ने करना शुरू किया..
मगर संगठित होकर पहला विद्रोह 1857 में किया गया..जिसने ब्रिटेन की जड़े को हिला दिया..अगर राजवाड़े लोग अंग्रेज का सहयोग नही करते तो भारत को उसी समय ब्रिटेन से मुक्त कर दिया जाता..।(मगर उस समय इन रजवाड़ो का अंग्रेज को सहयोग करने का अपना कारण था)

● ब्रिटिश सरकार तक अपनी बात पहुँचाने के लिए 1885 में कांग्रेस का गठन किया गया..।

पहली बार डोमिनियन स्टेट की डिमांड..
भारत के प्रमुख नेताओं ने प्रथम विश्वयुद्ध में अंग्रेजो का बहुत सहयोग किया..यंहा तक कि भारत से 15 लाख सैनिक प्रथम विश्वयुद्ध में लड़े और लगभग 1 लाख की मृत्यु हो गई..
कांग्रेस ने इस सहयोग के बदले 1917 में पहली बार डोमिनियन स्टेट की मांग की..मगर बदले में जलियावाला नरसंहार किया गया..।
कांग्रेस ने दूसरी बार नेहरू रिपोर्ट(1928) के माध्यम से डोमिनियन स्टेट की मांग की मगर इसका विरोध ब्रिटेन सहित कनाडा,ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड और साउथ अफ्रीका के गोरी चमड़ी वाले नेताओं ने किया..।।
(डोमिनियन स्टेट-ब्रिटिश सरकार के अंतर्गत ही एक देश जिसकी अपनी सरकार हो..)

पहली बार पूर्ण स्वतंत्रता की मांग..
नेहरू रिपोर्ट को ठुकरा देने के बाद जवाहरलाल नेहरू और सुभाष चंद्र बोस जैसे युवा नेताओ ने 1929 के कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वराज की मांग की..

●दूसरा विश्वयुद्ध और डोमिनियन स्टेटस..
1939 से शुरू द्वितीय विश्वयुद्ध में ~23 लाख भारतीय सैनिक को ब्रिटेन की तरफ से युद्ध मे झोंक दिया गया..।
जब इसका विरोध भारत मे शुरू हुआ तो वंहा की सरकार ने कहा आप हमारा सहयोग करें युद्ध के बाद हम डोमिनियन स्टेट का दर्जा देंगें.. मगर भारतीयों ने मना कर दिया और पूर्ण स्वतंत्रता की मांग की...

इस पर ब्रिटेन के प्रधानमंत्री चर्चिल कहता है-
"सम्राट ने भारत मे ब्रिटिश साम्राज्य समाप्त करने के लिए मुझे PM नही बनाया है,भारत को छोड़ना साम्रज्य की हार होगा।"

दूसरे विश्वयुद्ध में ब्रिटेन कमजोर होता जा रहा था और उसके ऊपर अमेरिका का दबाव बढ़ता जा रहा था..।

इलियट रूजवेल्ट अपने किताब "as he saw it" में लिखते है-

फ्रेंकलिन रूजवेल्ट चर्चिल से कहते है- हिटलर और आपमें क्या फर्क है..?उसने यूरोप के एक हिस्से पे कब्जा किया है आपने दुनिया के एक चौथाई हिस्से पे कब्जा किया है..

चर्चिल- 1931 के वेस्टमिंस्टर कानून ने कनाडा,न्यूजीलैंड और दक्षिण अफ्रीका जैसे उपनिवेशों को पहले ही आजादी दे दिया गया है..

रूजवेल्ट- ये काफी नही है,भारत को जितना जल्दी हो सके 5-10 साल में डोमिनियन का दर्जा दीजिये..

चर्चिल भारत का नाम सुनते ही गुर्राया और कहा- मिस्टर प्रेसिडेंट इंग्लैंड एक पल के लिए भी अपना पसंदीदा जगह नही गवाना चाहेगा,जंहा के व्यापार ने इंग्लैंड को महान बनाया ,वह इंग्लैंड के मंत्रियों के शर्तो के हिसाब से चलता रहेगा..।

रूजवेल्ट- भारत एक आधुनिक सरकार,अच्छे स्वास्थ्य और शिक्षा का अधिकार है,अगर आप हरेक साल उसकी सारी दौलत छीन लेंगे तो उसे ये सब कैसे मिलेगा..।।

1946 का नोसैनिक विद्रोह...
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद ब्रिटेन आर्थिक रूप से बदहाल हो गया था,ऊपर से अमेरिका का दबाब और भारत मे 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन हर कस्बा तक पहुंच गया था..।

साथ ही ब्रिटेन के 1945 के आम चुनाव में चर्चिल की कंजरवेटिव पार्टी की हार और एटली की लेबर पार्टी की जीत से बहुत कुछ बदलने वाला था..क्योंकि लेबर पार्टी के सरकार से ब्रिटिश साम्राज्य को संभालना मुश्किल था..और साथ ही एटली उदारवादी था..
एटली ने कहा था-"ब्रिटिश शासन भारत के लिए विदेशी है,इससे भारत मे सुधार नही हो सकता।"

1946 का नोसैनिक विद्रोह ने अंग्रेज को मजबूर कर दिया.
मुम्बई में 11 यूनिट्स,20 हज़ार सैनिक,78 युद्धपोत 23 नेवी स्टेशन इस विद्रोह से जुड़ गया..

ब्रिटेन को समझ मे आ गया कि भारतीय सेना अब भरोसेमंद नही है..

15 अगस्त को आजादी क्यों...? 

 20 फरबरी 1947 को एटली ने कहा हम ब्रिटिश भारत को जून 1948 तक आजाद कर देंगे..।इसके लिए माउंटबेटन को भारत को अंतिम वायसराय बनाया गया..।
माउंटबेटन नेहरू,जिन्ना,पटेल और गांधी से मुलाकात की और 3 जून 1947 को माउंटबेटन प्लान पेश किया..जिसमे भारत पाकिस्तान की विभाजन की योजना थी..।।

4जून1947 को माउंटबेटन प्रेस कॉन्फ्रेंस करते है..
तब एक सवाल आता है..सर् आपने सक्ता सौंपने की तारिख क्या चुनी है..??
माउंटबेटन सोचने लगते है,क्योंकि उन्होंने कोई तारीख नही चुनी होती है..
और कुछ देर सोचने के बाद वो कहते है- 15 अगस्त 1947
(15 अगस्त माउंटबेटन के लिए अहम दिन था क्योंकि इसी दिन उसके नेतृत्व में जापान ने आत्मसमर्पण किया था)

इस घटना को याद करते हुए माउंटबेटन कहते है-'मैं ठान चुका था कि मैं ये साबित कर दूंगा की सब मेरा ही किया धरा है।हालांकि अचानक से अपने मर्जी से घोसित तिथि के कारण लंदन तक विस्फोट हो गया था..।।

अब पता चला कि हम 15 अगस्त को ही स्वतंत्रता दिवस क्यों मनाते है...।


शुक्रवार, 8 अगस्त 2025

भीड़ में..

भीड़ में अच्छा होना आसान है..
अकेले में अच्छा बने रहना मुश्किल है..।
भीड़ में हर रंग....रंग जाता है,
अकेले में हर रंग दिख जाता है..।
भीड़ में हर शब्द कोलाहल बन जाता है..
अकेले में हर शब्द स्पष्ट हो जाता है..।।
भीड़ में हर पहचान छुप जाती है.
अकेले में स्वयं से साक्षात्कार हो सकता है.।
भीड़ में हम कंही खो सकते है..
अकेले में अपनी पहचान बना सकते है..।
मगर..??
भीड़ में अच्छा होना आसान है..
अकेले में अच्छा बना रहना मुश्किल है..।।


शनिवार, 2 अगस्त 2025

हे भगवान कृपा करो..

मैं सुबह-सुबह रास्ते से जा रहा था..तो एक मंदिर दिखा..
मैंने भगवान से कहा-हे भगवान सदमार्ग पे ले चलो..
भगवान जी ने कहा- पहले कुमार्ग तो छोड़ो..।

क्या भगवान के कृपा के बिना आप कुमार्ग छोड़ सकते है..??
शायद बिल्कुल नही..।
मैंने बहुत प्रयास किया..न जाने कितनों के कसम खाये और तोड़े..अंत में,मैंने प्रयास करना ही छोड़ दिया..।
मगर अंतस मन से भगवान को कहा करता था..
 हे भगवान इस दलदल से निकाले..।
मेरा आवाज उन तक पहुंचा,और मैं इतना बीमार हो गया कि मुझमें खड़े होने का हिम्मत तक नही था..ये सिलसिला 1 सप्ताह से ज्यादा तक रहा..सारा दिन बिछावन पर ही लेटा रहता..।

भगवान के कृपा से आज मैं स्वस्थ हूँ..और उस दलदल से निकल चुका हूं..।
हां कभी-कभी वो दलदल मुझे अपनी तरफ खिंचता है,मैं उधर बढ़ भी जाता हूँ,मगर फिर भगवान उधर से खींच कर सदमार्ग पे ले आते है..।।

"भगवान कृपा करते है,उनपे विश्वास रखें..
 हां हमारी आवाज ही देर से पहुंचती है,
 शायद इसलिए कृपा होने में देर लग जाती है।।"



शोध का विषय ये है कि- किस तरह की आवाज भगवान तक पहुंचता है🤔..??

शुक्रवार, 1 अगस्त 2025

मैं थक गया हूँ..

मैं थक गया हूँ..
जबकि अभी तक सही दिशा में चला नही हूँ..
आधी उम्र यू ही सबके नजर से छिपी हुई गंदगियों में बिताया..
लोगों को लग रहा था कि मैं आगे बढ़ रहा हूँ..
मगर सच तो ये है कि उस गंदगियों का आदी हो गया था,
जब उस गंदगी से निकला तबतक सब कुछ खो चुका था..।।
जिस उम्र में लोग सफलता के ऊंचाइयों पे होते है,
मैं उस उम्र में,
एक सफलता के लिए लालायित हूँ..।।


अब वो कुछ कर नही सकता...
जो मैंने सोचा था..।
मगर ऐसा भी नही है कि,
मैं कुछ कर नही सकता..।
अभी भी बहुत कुछ कर सकता हूँ..
जो मैंने सोचा था..
यंहा तक कि उस से भी ज्यादा कर सकता हूँ..
क्योंकि अभी भी मेरे पास कुछ वक्त और उम्र बचे है..
कुछ करने को,खुद को बदलने को..
और खुद के ही नजर मैं गौरवान्वित महसूस करने को..।।

मंगलवार, 22 जुलाई 2025

स्वयं को खाली करें..

हमसब खुद को बदलना चाहते है,जिंदगी में कुछ नया पाना चाहते है,मगर अफसोस..
हममें से ~90% लोग खुद को नही बदल पाते..
आखिर क्यों..??
क्योंकि पानी से भरे गिलास को फिर से नही भरा जा सकता है..जबतक की गिलास को खाली न किया जाय..।

हमलोगों का भी हाल पानी से भरे गिलास की तरह है,हमसब खुद को बदलना तो चाहते है..मगर अपने अंदर जमी पुरानी आदतों को नही छोड़ पाते..।।
जबतक हम खुद को खाली नही करेंगे तबतक उसके जगह नई आदते नही ले सकता है..।।
ये आसान काम नही है..
क्योंकि हममें उतना ताकत नही है कि, खुद को खाली कर सकें..।


तो ताकत कंहा से लाये..?
इसे कंही से नही लाया जा सकता बल्कि जो ऊर्जा फालतू चीजों में बर्बाद हो रहा है, उसे चिन्हित करके उसे छोड़े और उस ऊर्जा को संचित करें..।।

अब आप खुद को खाली करें..
थोड़ा मनन कीजिये..
और सोचिये आप क्या-क्या छोड़ सकते है..जो आपके रास्ते का बाधक बन रहा है,और बन सकता है..।।
जब ही आप इन आदतों को छोड़ेंगे जिंदगी में नया बदलाव खुद-ब-खुद आ जायेगा..।।
जमा हुआ पानी बदबू देता है..अगर इसमें पानी का स्रोत खोल दिया जाय तो बदबू समाप्त हो जाता है...
इसी तरह गंदी आदतें भी आपको बदबूदार बना देगा..इसी लिए अच्छी आदतों को अपनाए और स्वयं को निखारें..
इसके लिए आपको सबसे पहले स्वयं को खाली करना होगा..।।


रविवार, 6 जुलाई 2025

मन हुआ था..

मन हुआ था, घर जाने को..
मगर फिर अहसास हुआ कि,
घर...घर कंहा है..
पापा के उम्मीदों का सपना तोड़ के आखिर कैसे उनका सामना कर सकूंगा
माँ के अरमानों को बिखेर कर आखिर कैसे सुकून से रह सकूंगा..
समाज की चुभती निगाहों का कैसे सामना कर सकूंगा..।।
सब कुछ भूल गया था मैं..
क्योंकि इतना थक चुका था मैं,
की दो पल घर पर बिताने को जी चाह रहा था..
रेलवे से फ्लाइट तक कि टिकट कटा कर जाने को तैयार था मैं..।।
फिर सारी उम्मीदों पे पानी फिर गया..
जब कोई अपना ने मुझे मेरा औकाद बताया..।।
किस मुँह लेकर घर जाऊँ..।

तबियत

तबियत बड़ी जोड़ की खराब है..
मन करता है घर को जाऊ..
मगर घर के दरवाजे भी बंद है..।

15 दिन होने को है..शरीर मानो जबाब दे रहा है..
आज बहुत मन हुआ घर चला जाऊं..
मगर घर पर जाकर माँ के ऊपर बोझ नही बनना चाहता..।।

माँ का कॉल का इंतजार कई दिनों से कर रहा हूँ..
मगर अब माँ का भी फोन नही आ रहा है..।।
अब शरीर साथ नही दे रहा है..
सोचा थोड़ा दिन घर पे बिताऊँ..

असफलता का बोझ अब सहन नही हो रहा है..
जिंदगी में,आगे का राह कुछ दिख नही रहा है..।
कहने वाले कह रहे है कि कोई नॉकरी कर लो..
किस मुँह से कहु..
इस 21 वी सदी में हम जैसे डिग्रीधारियों के लिए कोई ढंग का जॉब नही..।।

मंगलवार, 24 जून 2025

मैं क्या सोच रहा था..

सच हमेशा वो नही होता..
जो आप देखते है,और सुनते है..
सच इससे अलग भी हो सकता है..।।

अभी-अभी ऑटो से आ रहा था..और ऑटो में ग़दर फ़िल्म का गाना बज रहा था.."हो मैं निकला गड्डी लेकर...
वो गाना सुनके मैं भी गुनगुणाने लगा..
मगर बार-बार आवाज कम और ज्यादा हो रहा था..
जिसकारण मेरे अंदर ड्राइवर के प्रति नाराजगी उभरने लगा..
कुछ ही सेकंड के बाद ड्राइवर ने मुझसे कहा देखिए ना मोबाइल मैं क्या हो गया है..
आवाज खुद-ब-खुद कम हो जा रहा है..।
ये सुनते ही मुझे शर्मिंदगी महसूस हुआ..
मैं क्या सोच रहा था..
जबकि वास्तिवकता बिल्कुल इससे अलग था..।।

सोमवार, 23 जून 2025

सफल लोग...

दुनिया सिर्फ सफल लोगों को ही याद रखता है..
क्या आपको कोई असफल लोग याद है..??
आपके जेहन में जितने भी नाम होंगे..
(जान-पहचान वालों को छोड़कर😊)
वो कंही-न-कंही अपने जिंदगी में सफल जरूर होंगें..।

चलिए आंख बंद कीजिए..
और मन मे किसी भी क्षेत्र से किसी का नाम सोचिये..।
क्या आपने सोचा...??
अगर हां,तो आपके जेहन में उसका नाम क्यों आया..
क्योंकि वो अपने क्षेत्र में सफल है..।।

हममें से हरेक लोग सफल होना चाहते है..
और हममें से हरेक लोग(100%) जिंदगी में कभी-न-कभी सफल जरूर होते है..।।

तो फिर आखिर क्या होता है कि हम असफल हो जाता है..??
हम अपनी असफलता के लिए स्वयं ही जिम्मेदार होते है..
अगर हम/आप अगर अपनी असफलता के लिए दूसरों को कोसते है,तो वो इसलिये की हममें इतनी भी हिम्मत नही है कि हम सच्चाई को स्वीकार कर सकें..।।
असफलता की शुरुआत स्वयं से ही होती है..
सफलता त्याग मांगती है..
और हम कुछ त्यागने के लिए तैयार ही नही होते..।

हममें से शायद ही कोई होगा जो गांधी को नही जानता होगा..?
आखिर क्यों..??
क्योंकि गांधी ने अपना सर्श्व त्याग दिया..।।
शायद ही कोई युवा होगा जो भगत सिंह को नही जानता होगा..
क्यों..क्योंकि उन्होंने जिंदगी की भीख को ठुकरा कर फांसी के फंदे को चुना..।

सफलता त्याग से मिलती है..
आप जितना त्याग(काम,क्रोध,मोह,लोभ) करते जाएंगे आप सफलता के ऊंचाइयों पे उतना चढ़ते जाएंगे..।।

सफलता की ऊंचाई पठार की तरह नही बल्कि शूल की तरह है..
जो दूसरों को तो देखने में अच्छा लगता है..मगर स्वयं को चुभता रहता है..अगर इसके साथ तालमेल नही बिठाया तो जिंदगी का बुरा हश्र होता है..।।


हरेक दशक में कई नामचीन हस्ती उभरते है..
मगर अपने सफलता का रजत जयंती(25 वर्ष) भी नही मना पाते है..।
आप जंहा है वंहा से 10 वर्ष पीछे जाए और उस समय के हरेक क्षेत्र के लोकप्रिय लोगों का नाम सोचें..
उनमें से आज कितने लोग अपने सफलता को बरकरार रखें हुए है..।
आप जितने पीछे जाते जाएंगे उतने कम लोग को जानते जाएंगे..।।
मगर आगे हमारा भविष्य पड़ा हुआ है..अगर कोई हमें भी याद रखें.. कोई रखें या न रखें गाँव वाला ही रखें.. या फिर आनेवाली हमारी पीढियां ही याद रखें.. तो उनके लिए ही सही कुछ करना होगा...।
नही तो, हममें से जैसे कई लोग अपने बाप-दादा को कोसते है,उसी तरह हमारी आनेवाली पीढियां भी हमें कोसेगी..।।

अपने कमियों को त्यागे..और सफलता की और अग्रसर हो..।।
सफलता का एक ही रहस्य है..
"अपने लक्ष्य के प्रति सरस्व त्याग के लिए तत्परता,निरंतरता और कर्मठता.."
इन राहों पे चलकर आजतक कोई असफल नही हुआ है..।।
बुद्ध, महावीर से लेकर स्वामी विवेकानंद,अरविंदो..
अशोक,चंद्रगुप्त से लेकर गांधी,पटेल..
आर्यभट,वराहमिहिर से लेकर c.v.रमन,साराभाई..
कालिदास,हरिषेण से लेकर प्रेमचंद्र,दिनकर..

सबके सफलता का एक ही रहस्य था..
"अपने लक्ष्य के प्रति सरस्व त्याग के लिए तत्परता,निरंतरता और कर्मठता.."

शनिवार, 21 जून 2025

मैं रुका नही हूँ..

सब जिंदगी के दौड़ में कंहा से कंहा चले गए..
और मैं..
इस जिंदगी के दौड़ में कंही खो गया..।
दौड़ मैंने भी लगाया था..
मगर कंही पहुंच नही पाया..
एक ऐसे चौराहे पे खड़ा हूँ..
जंहा दलदल में फंसे जा रहा हूँ..
यंहा से हर रोज निकलना चाहता हूं..
मगर फिर इसी दलदल में धसते चला जाता हूँ..।।
एक ऐसी ऊर्जा की जरूरत है..
जो सबकुछ बदल दे..।।
वो ऊर्जा मेरे अंदर ही है..
मगर उसे कैसे विस्फोटित करू यही पता नही है..।।

सब जिंदगी के दौड़ में कंहा से कंहा चले गए..
और मैं..
इस जिंदगी के दौड़ में यंही का यंही रह गया..।
क्वांटम फिजिक्स एक ऐसा विज्ञान है..
जो क्षण में सब कुछ बदल देता है..
इसी क्वांटम मनो-मस्तिष्क की जरूरत है एक बार..
जो सबकुछ बदल कर एक नया स्वरूप दे..।।

सब जिंदगी के दौड़ में कंहा से कंहा चले गए..
और मैं..
इस जिंदगी के दौड़ में यंही का यंही रह गया..।
मुझे अफसोस नही की मैं यही का यही रह गया क्योंकि मैं अभी भी दौड़ रहा हूँ..और दौड़ता रहूंगा..
मगर अफसोस इस बात की है..की मैं कंहा दौड़ रहा हूँ..
जंहा मंजिल का कुछ पता ही नही है..
बस दौड़ रहा हूं, चल रहा हूँ,रेंग रहा हूँ..।।
मगर मैं रुका नही हूँ..।।

शुक्रवार, 20 जून 2025

सबकी अपनी-अपनी कहानी है..

सबकी अपनी-अपनी कहानी है,
हरेक के कहानी में गम की नुमानी है,
शायद ही कोई हो..
जिसकी कहानी में गम की नुमानी न हो..।
जिसके कहानी में गम की नुमानी न हो..
उसका यंहा रहना या न रहना..
दोनों बईमानी है..
सबकी अपनी-अपनी कहानी है.।


सबकी अपनी-अपनी कहानी,
अपनी-अपनी जुबानी है..।
मगर हरेक के कहानी में गम की नुमानी है...
किसी ने अपने कहानी को मजेदार बनाया है,
तो किसी ने अपने कहानी को बोझिल बनाया है..।
जबकि सबके कहानी में गम की नुमानी है..
तो फिर क्यों सबकी कहानी अलग-अलग सी है..
क्योंकि किसी ने गम को जिंदगी का हिस्सा बनाया,
तो किसी ने गम को साथी बनाया..
हममें से कुछ थे बड़े चालाक..
उन्होंने गम को अपने काबू में रखकर सफलता का इमारत बनाया..।।

सबकी अपनी-अपनी कहानी है,
हरेक के कहानी में गम की नुमानी है..।।

प्यार की पांति..

तुम मेरे अंतस मन मे ऐसे बैठे हो जैसे दो फेफड़े के बीच मे हृदय बैठा है..
तुम्हें जब भी भूल जाता हूँ..
मेरे अंतस मन में बैठी तुम्हारी यादें यू ही उभर आती है..
जैसे मुश्किलों में हृदय का धड़कना अहसास कराता है,जैसे वो भी शरीर का एक हिस्सा हो..।


आज फिर तुम मेरे सपनों में आई..
क्यों..??
मैं तो तुम्हें भूल चुका था..
मगर तुमने सपनों के द्वारा मेरे चेहरे पे फिर से मुस्कान लाया..।।
मेरे नीरस हो चुकी जिंदगी में फिर से थोड़ा खुशनुमा बनाने के लिए धन्यवाद..
यू ही कभी-कभी यादों में आकर मेरे बोझिल जिंदगी को
हल्का कर जाया करो..
यू ही मेरे यादों में आकर..
बेकार हो रही जिंदगी की महत्वता को बता जाया करो..
यू ही मेरे यादो में आकर..
कुछ हद से कर गुजर जाने का अहसास करा जाया करो..
यू ही तुम मेरे यादोँ में आकर..
अपना मौजूदगी का अहसास करा जाया करो..
नीरस हो गए चेहरे पे फिर से मुश्कान बिखेर जाया करो..।।

मंगलवार, 17 जून 2025

मछली..बस अब यादें ही रह जायेगी..

मुझे नही पता था..
शायद इसे भी पता नही था
आगे क्या होगा..।
आज इसका आशियाना मेरे हाथों से टूट गया..
और इसे मैंने एक बड़े आशियाने में फेंक दिया..।।

कुछ देर से मैं इसलिये उदास हूँ कि इसके प्रति मेरा लगाव था भी की नही..या फिर मैं मोह माया से ऊपर उठ गया हूँ..।

इसे मैंने पिछले साल खरीद कर लाया था,साथ मे दो गोल्ड फिश भी एक गोल्ड फिश तो कुछ दिनों में ही गुजर गई,और एक महीने अंतराल बाद..।इसने अपने आप को ढाल लिया था..।
ये ठीक मेरे स्टडी टेबल के सामने खिड़की पर रहता था..
कभी-कभी इसके हरकतों को निघारता रहता था..और जब मन खुश होता तो इसके नथुने से नथुने मिलाता था..।
जब भी पानी बदलता तब ये खुब उछल कूद करती..बहुत प्रयास के बाद मेरे पकड़ में आती थी..।।और पानी बदलने के बाद 1-2 दिन तक खूब उछल कूद करती थी..।इसने पानी को अपने रहने अनुकूल ढालना सीख गया था।।

हरेक सप्ताह की तरह इस सप्ताह भी पानी बदलना शुरू किया..
मगर मेरे अंदर कुछ जल्दबाजी था,जो इससे पहले कभी नही रहता था,मैंने आज पानी बदलने की शुरुआत भी कुछ गलत तरीके से किया..
मैंने मछली सहित पानी को बेसिन में उड़ेल दिया..इससे पहले मैंने ऐसा कभी भी नही किया था,मैंने शायद इसलिए ऐसा किया क्योंकि टब के नीचे गाद जम चुका था,शायद इस कारण मेरे अंदर घृणा का भाव पनपा हो और टब फूट गया हो..।।
शायद मछली ने प्रभु से कहा होगा,प्रभु जंहा घृणा हो,वंहा रहना सही नही है..।।इसिलिय टब फूट गया हो..।।

इससे पहले भी साफ करते वक़्त टब कई बार टकराता था,वो मैं सतर्क हो जाता था..मगर आज टकराते ही फुट गया..।।
मछली को मैंने 4 घंटे तक कटोरे में रखा,और 4:30 बजे जब घर से बाहर निकला तो इसे एक पॉलीथिन में रखा..और सोचा तालाब में उड़ेल दूंगा..।।
मगर जब में तालाब किनारे पहुंचा तो पानी का स्तर बहुत नीचे था..मैंने पॉलीथिन के अंदर हाथ डाला उसे पकड़ा..मगर जगह कम होने के वजह से वो ज्यादा उछल-कूद नही कर सका..
मैंने हाथों में पकड़ कर तालाब में फेंक दिया..
इसने हवा को तीरते हुए पानी में डुबकी लगाई और फिर ऊपर आई..शायद मेरे तरफ देखी..मैंने उसे देखा..और फिर उसने पानी की गहराइयों में तैरना शुरू कर दिया..और मेरे आंखों से ओझल हो गया..।।

ये तालाब गर्मी के समय सुख जाता है एक दो महीने के लिए,बस भगवान से दुआ करूँगा की अब ये तालाब कभी न सूखे।।


दाग धुलते है..

आपने कभी कपड़े धोये है..??
अगर हां,तो
धोने के बाद कपड़ा कैसा दिखता है..।
साफ दिखता है,हो सकता है कभी-कभी दाग पूरे नही हटते हो,मगर बार-बार प्रयास करने पर वो दाग हट जाते है..।
अगर तब भी नही हटता है, तो हम धोबी को दे देते है..।
मगर प्रयास नही छोड़ते..।।
दाग धुलते है..।।


जिंदगी का भी यही फलसफा है..
भले ही आपके जिंदगी में असफलता/अपयश के कई दाग लगे हो,अगर आप प्रयास करते रहेंगे तो एक दिन ये दाग धूल जाएंगे..।
सिर्फ धुलेंगे ही नही बल्कि आपके व्यक्तित्व को और बड़ा बनाएगा..।।
दरसल हम प्रयास ही नही करते..
एक-दो बार प्रयास करते है,और हम छोड़ देते है..।।
क्या हम उन कपड़ो के साथ ऐसा करते है..??
शायद नही,हमसे साफ न होने पर हम धोबी को देते है..।
इसी तरह जिंदगी में कई बार प्रयास करने पर असफल होने पर भी किसी अनुभवी व्यक्ति के पास जाए..
वो आपके शिक्षक,गुरु,माता-पिता,भाई-बहन कोई भी हो सकता है..।।
अगर इनके पास जाने से भी कतराते है तो उस परमपिता के पास जाए..।
उनके पास हरेक समस्याओं का समाधान है..।।

क्या हमारे पास धैर्य है..??
जब हम दाग को धोते है तो कई बार प्रयास करने के बाद दाग हटते है..इसे साफ करने में कभी-कभी मिनटों और घंटे भी लग जाते है..अगर तब भी नही होता,तो हम धोबी के पास कई दिन के लिए कपड़े को छोड़ देते है..।।

क्या व्यक्तित्व के दाग धुलने के लिए हमारे पास धैर्य है..??
शायद नही..
हम असफल होने के बाद खड़े तो होते है,कुछ कदम चलते है,सफलता न दिखने पर फिर हम थक हार जाते है..।।
आखिर क्यों..??
हम उन कपड़ो के साथ ऐसा व्यवहार तो नही करते,हम उसके दाग को धुलने के लिए अंत तक प्रयास करते है,जबतक दाग धूल न जाये..।।
इसी तरह जिंदगी में भी ताउम्र प्रयास करते रहना चाहिए जबतक असफलता/अपयश का दाग धूल न जाये..।।
क्योंकि दाग धुलते है..।।

शनिवार, 31 मई 2025

कोई इंसान बुरा नही होता..।।

कोई इंसान बुरा नही होता,बुरा तो हम होते है,
जो किसी को बुरा समझ लेते है..।।
बिना ये जाने की कौन किस परिस्थितियों में है..और किन परिस्थितियों से गुजर रहा है..।।
परिस्थितियां ही अच्छा और बुरा का निर्णय करता है..
न कि हम आप..
किसी को तबतक बुरा न कहें, जबतक आप उसके परिस्थितियों से वाकिफ न हो..।।





शुक्रवार, 30 मई 2025

राहें

हर राह में परेशानियां है..
चाहे हम कोई भी राह चुनें..
भले ही कांटो से सजी राहें हो,
या फिर फूलों से सजी राहें हो..
जोखिम दोनों में ही है..।।
कांटो से सजी राहों को देखकर जो राह बदल लेते है..
वो फूलों से सजी राहों में कंही खो जाते है..।।
ऐसा कोई नही है यंहा..
जिसने फूलों पे सजी राहों पे चलकर नया कीर्तिमान रचा हो..
नया कीर्तिमान रचने के लिए कांटो से भरी राहों से गुजरना ही होगा..।


बुधवार, 28 मई 2025

Word Menstrual Hygiene Day

मैं जब अपने गांव में रहता था..तब कभी-कभी मेरी माँ मुझसे कहा करती थी फूल तोड़ने के लिए..
कभी-कभी में बिना कुछ पूछे तोड़ लिया करता था,मगर कभी-कभी मैं कहता था कि दीदी को बोलो तोड़ लेने के लिए..
तो मेरी माँ कहती थी उसे नही तोड़ना है..।
मैं जिस समाज और परिवार से आता हूँ वंहा सिर्फ आज्ञा का पालन किया जाता है..।
बचपन में अक्सरहाँ ये सवाल जेहन में घूमता रहता था कि आखिर मेरी बहन को फूल क्यों नही तोड़ना है..??
इन सवालों का जबाब बहुत सालों बाद मिला..
गाँव-घर मे इन चीजो के बारे में लोग जिक्र नही करते है,बल्कि इसे अजीब नजरिये से देखते है..।।

बल्कि हमारे शास्त्रों और वेदों में इस लिया महिलाओं को मंदिर,पूजा,सार्वजनिक कार्यो से दूर रहने के लिए कहा गया जिससे हमारी माता और बहने 5 दिन तक आराम कर सके..।
मगर हमलोगों ने इसे एक अलग नजरिये से देखना शुरू कर दिया..।।

इसके प्रति जागरूकता के लिए सर्वप्रथम 2013 में जर्मनी की NGO "WASH United"ने जागरुकता अभियान चलाया..
2014 से पूरे विश्व मे 28 मई को Menstrual Hygiene Day मनाना शुरू किया गया..।


विश्व बैंक ने 2030 तक "पीरियड फ्रेंडली वर्ल्ड" बनाने का लक्ष्य रखा है..
विश्व बैंक के अनुसार 500 मिलियन महिलाओं के पास Menstrual Hygiene से संबंधित सुविधाएं नही है..।

•वंही भारत मे 35.5 करोड़ महिलाएं के पास Menstrual Hygiene से संबंधित सुविधाएं नही है..सिर्फ 12% भारतीय महिला ही सेनेटरी नेपकिन का रेगुलर इस्तेमाल करती है..।

भारत मे इसके प्रति जागरुकता बहुत जरूरी है,क्योंकि जागरूकता के अभाव में..
- ~12% लड़कियां इसे भगवान का अभिशाप मानती है।
- 4.6% लड़कियों को M.C(मेंस्ट्रुअल सायकल) की जानकारी नही है।
- 61.4% इसे सामाजिक सर्मिन्दगी मानती है।
- 44.5% सेनेटरी नेपकिन(पेड) की जगह कपड़ा इस्तेमाल करती है..।।

हम भारतीय आज मंगल,चांद पर  परचम फहरा रहे है,हम आज 4था सबसे बड़ा GDP वाला देश बन गए..
मगर आज भी हम अपनी माँ-बहनों का ख्याल रखने अक्षम है..।।



क्या आपको पता है..
जब हमारी बहन बेटी 10-12 साल की होती है तो उसे किन समस्याओं से गुजरना पड़ता है..
- हमारा थोड़ा कपड़ा गीला होता है तो हम असहज हो जाते है,उनमें से कई बच्चीयों को इररेगुलर साईकल से गुजरना पड़ता है..
-पेट के दर्द से जूझना पड़ता है
-मूड स्वेइंग जैसी समस्या एवं चिड़चिड़ापन जैसे स्वभाव से गुजरना पड़ता है..।
इन सब चीजों से पहली बार उसे जूझना होता है..।।

इन सब चीजों से अवगत कराने का दायित्व परिवार और समाज का है..जो धीरे-धीरे अग्रसर हो रही है..
कुछ राज्य सरकार मुफ्त में सेनेटरी नेपकिन स्कूल में आवंटित करती है..।
वंही जन औषधि केंद्र(8700) पर 1₹ में सेनेटरी नेपकिन मिल जाता है..।।
सुप्रीम कोर्ट में 2022 में समान राष्ट्रीय नीति बनाने को सरकार से कहा था..इस और कार्य किया जाना बाकी है..।।

 आज भी शिक्षा,जागरुकता और गरीबी के कारण एक बहुत बड़े वर्ग को इन समस्याओं से गुजरना पड़ रहा है..।।
खासकर पुरुषों को सर्वाधिक जागरूक होने की जरूरत है,जिससे उनका नजरिया महिलाओं के प्रति बदले..।।

हमसब को मिलकर 
-पीरियड फ्रेंडली सोशल एनवायरनमेंट बनाने की जरूरत है
-पीरियड एजुकेशन लेना और देना जरूरी है..
तब ही एक बेहतर समाज का हम निर्माण कर पाएंगे..

https://progenesisivf.com/blog/periods-information-in-hindi/

बाबा साहब अंबेडकर ने कहा था-
"अगर किसी देश की प्रगति देखना हो, तो वंहा की महिलाओं की स्थिति देखें"

संघर्ष जीवन का अभिन्न पहलू है...

संघर्ष सबके जिंदगी में है..
शायद ही कोई होगा जिसके जिंदगी में संघर्ष न हो..।
हमसब संघर्ष से बचना चाहते है..
आखिर क्यों..??


अपने आसपास नजर घुमाइए..
हरेक सजीव चीज को देखिए..
चाहे पेड़-पौधे हो या फिर कीड़े मकोड़े से लेकर पंछी,जानवर तक हरेक के जिंदगी में संघर्ष है..
ऐसा कोई नही है जो संघर्ष न कर रहा हो..
मगर हम आप जिसे संघर्ष कहते है,वो अन्य सजीव जगत के लिए सिर्फ एक दिनचर्या है..वो उनके जिंदगी का हिस्सा है..बिना इसके वो नही रह सकता..जिस दिन वो संघर्ष से बचने लगे उस दिन उनका वजूद ही खत्म हो जाएगा..।।
आज हम जिस पेड़-पौधों,कीड़े-मकोड़े, पंछी-जानवर को देख पा रहे है वो इस पृथ्वी पर संघर्ष के कारण ही बचे हुए है..।।

90% से ज्यादा जीव-जंतु,पेड़-पौधे इस पृथ्वी से विलुप्त हो चुके है..।
आखिर क्यों..??
क्योंकि वो संघर्ष नही कर पाए..।।

हमारे पूर्वजों ने भी बहुत संघर्ष किया है..इस कारण आज हम मनुष्य यंहा है..।।
मगर आज हम संघर्ष से बच रहे है..
जो बच रहे है वो नादान है क्योंकि उन्हें पता नही है..कि बिना संघर्ष के किसका उत्थान हुआ है..।।

गीता में श्रीकृष्ण कहते है- बिना कर्म/संघर्ष के कोई नही रह सकता,आप कुछ तो करोगे..।।

मंगलवार, 27 मई 2025

निंदा..एक नजरिया..

अपने आस-पास अक्सरहाँ आपने देखा होगा..
जिन्हें सिर्फ दूसरों की कमियां ही दिखती है..।
ये कौन लोग है..??
आप इन्हें किस नजर से देखते है..??



इस श्रेणी में दो तरह के लोग आते है..
पहले श्रेणी में वो लोग है जो आपके सामने ही आपकी कमियों को उजागर करते है..।
दूसरे श्रेणी में वो लोग है,जो पीठ पीछे आपके कमियों का मजाक उड़ाते है..।

जब आप युवा हो रहे होंगे तो आपको इन दोनों श्रेणियों के लोगों के प्रति आक्रोश और नफरत हो सकता है..।
मगर जब आप प्रौढ़ हो जायेंगें तब आप पहले श्रेणी वालों की कद्र करेंगे और दूसरे श्रेणी वालों की परवाह नही करेंगे..।
मगर अफसोस पहले श्रेणी वालों से हम शुरुआत में ही इतनी दूरियां बना लेते है कि वो हमारी कमियों को देखते हुए भी अनदेखा करने लगते है..।

कबीर दास जी कहते है-
"निदंक नियरे राखिये,आंगन कुटी छवाय,
 बिन पानी,साबुन बिना,निर्मल करे सुभाय ।।"

मगर वर्तमान में सिर्फ हम आप ही नही,बल्कि प्राचीन काल से ही, हम ऐसे लोगों के प्रति विद्रोही धारणा बना लेते है,जो हमारी निंदा करते है..।

अब वो समय नही, की लोग आपको सामने से निंदा करें..
क्योंकि प्रथम श्रेणी वाले लोग अब डरे हुए है..
क्योंकि उन्हें डर है कि, निंदा या कमियां निकालने पर आगे वाला व्यक्ति कोई गलत कदम न उठा ले..।।

"निंदा अक्सरहाँ हमे जीवन के नींद से जगाने का कार्य करता है,
मगर अफसोस नींद हमें इतनी प्यारी है कि,
हम निंदा करने वालों को अनदेखा कर उनसे मुँह फेर लेते है..।"

इसका क्या परिणाम होता है..??
आप सोचिये..??
सुबह स्कूल/कॉलेज/मीटिंग में जाना हो और आपको कोई उठाने आये और आप उसे झकझोर दे और कहें मुझे अभी नही उठना...
अब आगे क्या होगा..??

निंदा भी जीवन में इसी तरह से काम करता है..
अगर आगे से कोई आपकी निंदा या कमियां गिनाए तो मुस्कुराइए और उन्हें धन्यवाद दीजिये और उन कमियों को दूर कीजिये..।।
और अपने आप को भाग्यवान समझिए कि,
कोई तो है जो आपकी परवाह कर रहा है..।।

रविवार, 25 मई 2025

गमले का फूल..

मैं जैसा हूँ..
मुझे वैसा ही रहने दो..
मुझे मत छेड़ो..
तुम्हें लग रहा होगा कि,तुम मेरी मदद कर रहे हो..
मगर वास्तविकता तो ये है कि..
तुम मुझे कमजोर कर रहे हो..।
मैं जैसे खिल रहा हूँ,
मुझे वैसे ही खिलने दो..।।


तुम मुझे सींचो..
तुम मेरे आसपास से खरपतवार हटाओ..।
बस यही करो..
मगर जब तुम नही रहोगे...
तब क्या होगा..??
कौन सींचेगा..कौन खरपतवार हटाएगा..??

अगर जब तुम मुझे छोड़ के जाओगे..
तब तुम मेरे साथ क्या करोगे..।
किसी और के भरोसे छोड़ के जाओगे..
या फिर किसी को गोद दे के चले जाओगे..
या फिर अपने हाथों से दरिया या फिर मिट्टी में दफन कर जाओगे..
या फिर यू ही कड़कती धूप में तिल-तिल के मरने को छोड़ जाओगे..।।

जब कभी भी ग़र छोड़ के जाना हो..
तो मुझे मानसून की बूंदा-बांदी में छोड़ के जाना..
ये बारिश की बूंद जब मेरे पत्तियों और फूलों पे गिरेंगे..
तो मैं उत्साहित होऊंगा..
और मैं तुम्हें भूल जाऊंगा..।।
फिर जब कुछ महीनों बाद जब बारिश खत्म होगी और कड़कती धूप निकलेगी..
तो मुझे पानी की जरूरत होगी..
और मैं तुम्हें याद करूँगा..
और मुझे,मेरी गलतियों का अहसास होगा..
और मैं मुस्कुराउंगा और तुम्हें दुआएं दूंगा..।।

मैं जैसा हूँ..
मुझे वैसा ही रहने दो..
मुझे मत छेड़ो..
तुम्हें लग रहा होगा कि,तुम मेरी मदद कर रहे हो..
मगर वास्तविकता तो ये है कि..
तुम मुझे कमजोर कर रहे हो..।
मैं जैसे खिल रहा हूँ,
मुझे वैसे ही खिलने दो..।।

बुधवार, 21 मई 2025

अंतरराष्ट्रीय चाय दिवस...

क्या आपको पहली चाय की चुस्की☕ याद है..??

आज "अंतरराष्ट्रीय चाय दिवस"☕(21 मई) है..।



पहली बार चाय दिवस मनाने का पहल भारत मे "विश्व सामाजिक मंच" के द्वारा 2004 में किया गया और घोषणा किया गया कि हरेक साल 15 दिसंबर को चाय दिवस के रूप में मनाया जाय..इस पहल के बाद अन्य चाय उत्पादक देश भी संगठित होकर 15 दिसंबर को मनाना शुरू किये..

आगे चलकर 2019 से U.N.O(यूनाइटेड नेशन) के द्वारा FAO(फ़ूड एंड एग्रीकल्चर आर्गेनाईजेशन) के कहने से 21 मई को "चाय दिवस" के रूप में मनाया जाने लगा....
इस बार की थीम "बेहतर जीवन के लिए चाय☕"


क्या आपको पता है चाय उत्पादन से 13 मिलियन से ज्यादा लोगों को रोजगार मिलता है..।
मगर इनकी स्थिति दयनीय है(जो प्रत्यक्ष रूप से उत्पादन में जुड़े है)..एक तरह से इनकी स्थिति बंधुआ मजदूर की तरह है..।।

चाय☕ दुनिया में सबसे ज्यादा पिये जाने वाले पेय पदार्थ में दूसरे नंबर पर है..तो पहले नंबर पर कौन है🤔..??



क्या आपको चाय के इतिहास के बारे में जानकारी है..
इसका इतिहास कितना पुराना होगा..??
500 साल,1000साल,3000साल,5000साल..
कितना पुराना..??

इसका इतिहास लगभग 5000साल पुराना है..पहली बार चीनी सम्राट शेन नुंग ने इसका इस्तेमाल गलती से किया था..
क्या आपको पता है..
चाय का उत्पादन सर्वाधिक कंहा होता है..??


भारत अपने उत्पादन का 80% उपभोग कर लेता है..
भारत मे सर्वाधिक चाय का उत्पादन असम में होता है लगभग कुल उत्पादन का 52%..।।

क्या आपको चाय☕ की पहली चुस्की याद है..??
आपने चाय के टपरी पे सबसे ज्यादा किसके साथ चाय पिया☕ है..??(मैं एक का नाम लेना चाहूंगा जिसने चाय की टपरी की आदत लगाई..उस प्यारे दोस्त का नाम तरुण है..)
अगर आपको मौका मिले तो आप किसके साथ चाय☕ पीना चाहेंगे..??

चलिए चाय के चुस्कियों के साथ उन सुनहरे दिन को याद कीजिये ..
जिसने आपको सुनहरें यादें दिए है..।।
☕☕☕



मंगलवार, 20 मई 2025

क्या भगवान है...??जरा सोचियेगा..

भारत ही एक ऐसी भूमि है,जंहा इंसान भगवान बन सकता है..
अपने कर्मों के द्वारा..।।
जब हम अपने आदर्शो के आचरणों को अनुसरण नही कर पाते, तो उन्हें भगवान मान लेते है या फिर भगवान का अंश मान लेते है..।



शायद ही भारत का कोई ऐसा कोना हो..जंहा कोई भगवान न हो..भले ही उस कोने में इंसान न मिले मगर भगवान जरूर मिल जायेंगें..।
शायद ही ऐसा कोई जगह हो..जंहा भगवान का भग्नावशेष न हो..भले ही वंहा कोई जीवाश्म मिले या न मिले मगर भगवान का अवशेष जरूर मिल जाएगा..।।

मगर क्या सच में भगवान है..??
जरा सोचियेगा.. 
अच्छा ये बाद में सोचियेगा..।

कुछ सवाल से रूबरू होते है..
हम अपने भगवान को क्या-क्या उपमा देते है..सोचिये
करुणानिधि,दया के सागर,दुखभंजन,परमपिता न जाने और क्या-क्या..
क्या जब आप अपने भगवान को याद करते है तो वो किसी तरह का जबाब या सिग्नल देते है..??
शायद नही..अगर हां, तो आपमें सही बोलने की हिम्मत नही है,क्योंकि आप अभी भी डर रहे है..कंही बुरा न हो जाये..।।
अक्सरहाँ हमारा जबाब होता है हम में वो भाव नही है..इसीलिए शायद हमारी आवाज उन तक नही पहुंचती..।।
अच्छा...ये बात है..।

आप अपने माँ को किसी तरह से भी आवाज दीजिये..
गुस्सा होकर के,प्रेम से,दुखी से,हंस कर के..
हमें 99% उम्मीद है कि हम माँ को किसी तरह से आवाज दे वो जरूर जबाब देती है,चाहे वो कितना भी व्यस्त हो..।।
और आपका भगवान..??

आपको लग रहा है कि मैं पगला गया हूँ..और आपको भी मैं, पगला रहा हूँ..तो आप गलत है..।।

दरसल हम-आप भारत के वास्तविक अध्यात्मिक ज्ञान से रूबरू नही हुए है,या फिर बताया नही गया है..।।
हम वेदांत पढ़ते है,न ही उपनिषद पढ़ते है..
क्योंकि जब हम इसे पढ़ना शुरू करते है तो ये हमारे पुराने अवधारणाओं को चोट पहुँचाता है..और आज मनुष्य इतना सक्षम नही है कि इस चोट को सह पाए..।
हम जिस भगवान को आज पूजते है..उनका जिक्र न वेद में है,न ही उपनिषद में..उनका जिक्र स्मृति ग्रंथों में है,जो सबसे बाद में लिखा गया..ज्यादातर स्मृति ग्रंथ गुप्तकाल में ही लिखा गया..।।

कभी-कभी यूट्यूब और गूगल पर उपनिषद के श्लोक को भी देख और पढ़ लिया कीजिये....क्या पता कब आप मे बदलाव आ जाये और आपके अंदर "अहं ब्रह्मास्मि" का भाव जग जाए..।।

सच में आप ही ब्रह्मा है,आप से ही ये ब्रह्मांड है,बिना आपके इस ब्रह्मांड का कोई अस्तित्व नही है..।
आपको क्या लगता है..सही या गलत..।
आपको अगर गलत लगता है, तो आप गलत है..।।
क्योंकि आपके लिए ये ब्रह्मांड तबतक ही अस्तित्व में है जबतक आप अस्तित्व में है..आप खत्म,आपके लिए ये ब्रह्मांड खत्म..।।

उपनिषदों में बड़ी गूढ़ बातें कही गई है..
ये बातें अगर आप करना शुरू करें, तो आप विक्षिप्त और न जाने क्या-क्या समाज और परिवार ही कहना शुरू कर दे..।।

वो लोग पागल नही थे जिन्होंने महात्मा बुद्ध, महावीर, सुकरात ,मोहमद पैगम्बर,यीशु के ऊपर पत्थर फेंके और यातना दिया..
दरसल उनलोगों को इनकी बात समझ में नही आई..
वास्तविकता ये है कि अभी भी किसी को इनकी बात समझ मे नही आई है..
अगर समझ में आ गया होता तो हम-आप अभी भी उनके झंडे नही ढो रहे होते..
महात्मा बुद्ध ने कहा था-"अप्प दीपो भवः" कितने हुए..।।

वर्तमान में इन अवधारणाओं को तोड़ा भी नही जा सकता क्योंकि इसके ऊपर पूंजीवाद हावी हो चुका है..
भले ही आपको ये मालूम न हो कि दीवाली क्यों मनाया जाता है.. मगर हम मना रहे है..
भले ही हमें मालूम न हो कि क्रिसमस क्यों मनाते है..मगर हम मना रहे है..
भले ही हमें मालूम न हो कि ईद क्यों मनाते है..मगर हम मना रहे है..।।
क्योंकि पूँजीपति ताकतें आपको अब भूलने नही देगी...।।

तो क्या सोचा..
भगवान है...??

ऋग्वेद के 10वे मंडल में ब्रह्मांड की उत्पत्ति और भगवान के बारे में कुछ कहा गया है..

"को अद्धा वेद क इह प्र वोचत्कुत आजाता कुत इयं विसृष्टिः । अर्वाग्देवा अस्य विसर्जनेनाथा को वेद यत आबभूव ॥६॥"

आख़िर कौन जानता है,और कौन कह सकता है, यह सब कहाँ से आया और सृष्टि कैसे उत्पन्न हुई?
देवता स्वयं सृष्टि के बाद जन्मे हैं, तो कौन जानता है कि यह वास्तव में कहाँ से उत्पन्न हुआ है। (ऋग्वेद 10,129,6)

"इयं विसृष्टिर्यत आबभूव यदि वा दधे यदि वा न । यो अस्याध्यक्षः परमे व्योमन्त्सो अङ्ग वेद यदि वा न वेद ॥७॥"

कहाँ से सारी सृष्टि की उत्पत्ति हुई, कौन था निर्माता, क्या पता उसने इसे बनाया हो,या उसने इसे न बनाया हो। 
निर्माता, जो उच्चतम स्वर्ग से इसका सर्वेक्षण करते है, शायद वह जानते हो, या शायद वह भी नहीं जानते हो (ऋग्वेद, 10,129,7)

ऋग्वेद ने उस भगवान पे भी सवाल उठाया है..
जिस भगवान के बारे में हमारी धारणा है कि इसने ब्रह्मांड को बनाया है..।।
मगर ऋग्वेद के अनुसार इस भगवान की उत्पत्ति भी इस ब्रह्मण्ड की उतपति के बाद हुई है..।।

तो अब आप क्या सोचते है..
भगवान है..??
अगर नही भी है,तो आस्था रखें.. 
क्योंकि भगवान के प्रति आस्था,आपको विपरीत परिस्थितियों से उबरने में मदद करेगा..।।
आस्था और विश्वास ही वो शक्ति है,
जो इंसान को भगवान की और अग्रसर करता है..।
आस्था दिव्य शक्ति के प्रति..विश्वास स्वयं के प्रति..।।








सोमवार, 19 मई 2025

मौन...

मौन सभी समस्याओं का समाधान है..
जितनी बड़ी समस्या हो,उतना लंबा मौन धारण कीजिये...।
और चुप रहना कुछ समस्याओं का हल है,
हरेक समस्याओं का नही..।।



सवाल ये है कि..
आखिर मौन होता क्या है,
क्या चुप रहना मौन है..??
बिल्कुल नही..
तो फिर..??
मौन होके देखिए जबाब मिल जायेंगें..।
2मिनट ही सही,रखके तो देखिए..हां अभी..

हेलो..क्या हुआ..??
क्या आप मौन रह पाए..
अगर हां, तो आप झूठ बोल रहे है..
बुरा मत मानियेगे..क्योंकि आप जब मौन थे, 
तब भी आपके अंदर ढेर सारे विचार चल रहे थे..।।
तो आप ही बताइए..
क्या आप मौन थे..??

तो आखिर मौन कैसे धारण करें..??
आंख बंद करें और बैठ जाये..
तबतक जबतक कोई विचार मन मे न आयें..।
विचारशून्य होना ही मौन है..
मन का शांत होना ही मौन है..
मन से ही मौन की उत्पत्ति हुई है..।
जबतक मन वस में नही होगा तबतक हम मौन नही धारण कर सकते..।।
मन को कैसे वस में करें..??
शुरुआत आंख बंद करके सांस को देखें..।
अगर जाप(मंत्र,नाम) करते है,तो उसे काल्पनिक रूप से अपने भृकुटि पे आंख बंद करके लिखे..।
इससे मन नियंत्रित हो जाएगा..।।

जब मन नियंत्रित हो जाएगा तो खुद-व-खुद मौन धारण हो जाएगा..।।



रविवार, 27 अप्रैल 2025

वीर कुंवर सिंह...1857 के क्रांति के नायक

अगर आपका उम्र 80 साल है,और आपसे आपका सारा जायदाद(संपत्ति) छीन लिया जाय तो आप क्या करेंगे..??

आज की ज़ेनरशन वो सबकुछ जानती है जो उसके लिए उपयोगी नही है..।।
मगर क्या आज का जेनरेशन "वीर कुंवर सिंह" को जानता है..??
आज हमारे प्रधानमंत्री जी ने अपने "मन की बात"में वीर कुंवर सिंह का चर्चा किया..कुछ ने गूगल पे सर्च किया होगा..शायद नही किया होगा..क्योंकि मन की बात आज की जेनरेशन सुनती कंहा है...😊।।



चलिए कोई नही..
मैं आपको ले चलता हूँ 1857 के उस समर में..
जिस समर में अंग्रेज सभी को एक तरफा धूल चटा रहा था..
मानो भारतीयों की जान की कोई कीमत ही नही है..
गाँव के गाँव और बस्तियों के बस्तियां जला दी गई..जिन्होंने भी क्रांतिकारियों का मदद किया, उसे अंग्रेजो ने खुलेआम चौराहे पे फांसी पे लटकाया या तोप में बांधकर उड़ा दिया..
इससे भी मन नही भरा तो हमारी माताओं और बहनों को स्तनों को काट लिया गया..वो दानव यहीं तक नही रुके उन्होंने जननांगों में मिर्ची के पॉवडर डालकर तड़पने के लिए छोड़ देते थे..।।
ये अंग्रेज इतने असभ्य थे इतने कुकर्मी थे कि जब आप इतिहास पलटोगे तो आपको घिन्न आएगी..
मगर अफसोस हम इतिहास पढ़ते ही नही..
इसीलिए तो हम आज भी मानसिक रूप से गुलाम है..।।

1857 के क्रांति में अंग्रेज ने अपने हरेक विरोधियों को कुचल दिया..मगर एक ऐसा विरोधी था, जिसे अंग्रेज हरा नही पाया..
वो थे..80 साल के "वीर कुंवर सिंह"..
डलहौजी ने नया फरमान लाया जिसका कोई संतान नही है, उसका जमींदारी और क्षेत्र ब्रिटिश सरकार का हो जायेगा..।
मगर वो अपना जमींदारी अपने भाई अमर सिंह को देना  चाहते थे..।

इसी बीच मंगल पांडेय को फांसी पे चढ़ाते ही,सैनिकों में विद्रोह भड़क उठा, और सैनिकों का आक्रोश पटना तक पहुंच गया..दानापुर छावनी के 7वी,8वी और 40वी रेजिमेंट के सिपाही वंहा से हथियार लेकर जगदीशपुर पहुंच गए और कुँवर सिंह से कहें कि आप हमारा नेतृत्व करें..
कुँवर सिंह इन सैनिकों को लेकर आरा के जेल पर चढ़ाई कर दिये और वंहा से सभी कैदियों को रिहा कर दिए..और अपने सैनिकों में शामिल कर लिए..।

इस विद्रोह को दबाने के लिए डगलस आया..जो कुँवर सिंह के हाथों युद्ध मे मारा गया..।
फिर विंसेट आयर आया इसने आरा शहर पे कब्जा तो कर लिया मगर कुँवर सिंह को नही पकड़ पाया..।

कुँवर सिंह अपने सैनिकों को लेकर बलिया,गोरखपुर, मिर्जापुर,बनारस,कानपुर,प्रयागराज,बांदा ,रीवा एवं अन्य क्षेत्र तक गए और अंग्रेज से लड़ने के लिए इनसे सहयोग मांगा..
इनके इस उम्र में इतना हौंसला देखकर सब लोगों ने इन्हें अपना-अपना सहयोग देने का वादा किया..मगर..
इसमे से रीवा के राजा अंग्रेज से मिले थे इन्होंने कुँवर सिंह को कैद करने का सोचा मगर रीवा के सिपाहियों के मदद से वंहा से वो निकल गए..।

जब कुँवर सिंह अवध(सबसे धनाढ्य प्रदेश) पहुंचे तो उनका स्वागत अवध की रानी "बेगम हजरत महल" ने शानदार तरीके से किया..उन्होंने आजमगढ़ की जमींदारी वीर कुंवर सिंह को दे दिया..।
जब अंग्रेज को ये बात पता चला तो वो घबरा गया और आजमगढ़ में ही कुँवर सिंह को घेरने का योजना बनाया..
डनबर ने आजमगढ़ को चारों और से घेर लिया..
और यंहा "अतरौलिया का युद्ध" शुरू हुआ..
जिसमें कुँवर सिंह के हाथों डनबर की मृत्यु हुई..।।

ये खबर हवा की तरह कलकत्ता तक पहुंच गया..
जब ये खबर गवर्नर जेनरल "लार्ड केनिंग" को पता चला तो वो चिंतित हो गया...
उसने कुँवर सिंह के ऊपर 20 हज़ार का इनाम की राशि घोषित किया..(वर्तमान में अगर आकलन करें तो 2 करोड़ से ज्यादा) 
कुँवर सिंह को घेरने के लिए चारो और से सेना आजमगढ़ भेजा गया..
जब कुँवर सिंह को ये बात पता चला तो उन्होंने अपने सैनिकों को दो भागों में बांट लिया..एक को युद्ध मोर्चा पे लड़ने के लिए भेजे और एक के साथ जगदीशपुर के लिए निकल गये..।
अंग्रेज को लगा कि वो जीत रहे है,मगर कुँवर सिंह तो उनके हाथों से निकल रहे थे..।
जब ये बात अंग्रेज को पता चला तो उनके जनरल पागल हाथी की तरह बेकाबू हो गए..आजमगढ़ की जनता पर बेरहम अत्यचार किये..जो भी आया सबको मौत के घाट उतार दिया गया..।
कुँवर सिंह को पकड़ने के लिए ली ग्रांड के नेतृत्व में एक टुकड़ी भेजा गया..।

22 अप्रैल 1858 को गंगा नदी को पार करते वक़्त ली ग्रांड की सेना ने अंधाधुंध गोलियां चलाना शुरू किया..एक गोली कुँवर सिंह के बांह में आकर लग गई..उन्होंने तुरंत तलवार निकाला और उस हाथ को दूसरे हाथ से काटकर गंगा में बहा दिया...जिससे गोली की जहर पूरे शरीर मे ना फैल जाए..।।
ली ग्रांड की सेना ने जब इन्हें चारों और से घेर लिया तो इस अवस्था मे भी वो साहस से लड़ें और ली ग्रांड की सेना को हरा कर जगदीशपुर पहुंचे..।।

खून बहुत बह जाने के कारण इनकी तबियत खराब होने लगी और 26 अप्रैल 1858 को इस महान योद्धा ने अपना शरीर त्याग दिया..
जब इनकी मृत्यु हुई तो इनके किला पे यूनियन जैक का झंडा नही बल्कि जगदीशपुर का झंडा फहरा रहा था..।

1857 के क्रांति के इकलौते नायक जिसे अंग्रेज जीते जी नही हरा पाया...

1857 के क्रांति के इकलौता नायक जिसके ऊपर अंग्रेज को 20 हजार का इनामी राशि रखना पड़ा..

1857 के क्रांति के इकलौता नायक जो सिर्फ अपने क्षेत्र तक ही नही बल्कि पूरे उत्तर भारत से लेकर मध्य भारत तक अंग्रेजो से लड़ा..

1857 के क्रांति के इकलौते नायक जो सिर्फ क्षेत्रीय स्तर पर नही बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर उभरे..।।

अंग्रेज इतिहासकार ने इनके बारे में कहा-
"भाग्य मनाओ की ये बूढा है,अगर जवान होता तो क्या होता"

V. D सावरकर ने अपने किताब "1857 प्रथम स्वंतंत्रता संग्राम" में 7 क्रांतिकारियों की चर्चा की है जिसमे से वीर कुंवर सिंह एक है..।।

अब जरा आप सोचिये..
एक 80 साल का बूढा जिसने अंग्रेज हुकूमत को नाक में दम कर दिया..अंग्रेज उनसे जीते जी नही जीत पाया..हर बार मुँह की खानी पड़ी...।।
मगर आज की युवाओं की दशा क्या है..??
दशा इसलिए है क्योंकि कोई दिशा नही है..।।

आप तो युवा है..
और स्वतंत्र है..
तो फिर ये दशा क्यों है..??
जिस बुराइयों के बेड़ियो से बंधे है..
उन्हें तोड़ दे..।
जिस मोह में फंसे है..
उसे मरोर दे..।
अब नही तो और कब..।
80 साल का बूढा कुँवर सिंह अंग्रेज सामज्र्य को अपने अंगुलियों पे नचाया..
आप तो युवा है...
और स्वतंत्र है..
तो फिर ये दशा क्यों है..??


गुरुवार, 24 अप्रैल 2025

पापा से शिकायत है..

पापा से शिकायत है..
अगर हां,
तो खुद को पापा के जगह पर रख के देखो..।
पापा आपसे नाराज है..
आखिर क्यों..??
पापा कभी नाराज नही होते,
बल्कि वो अपने संतति को हारते हुए और किसी तरह की कालिख लगते हुए नही देखना चाहते है..।

पापा को हर रोज उनका सामना करना होता है,
जिनसे आप नजरें तक मिलाना नही चाहते..।।
पापा को हर रोज उनका सामना करना होता है,
जो उन्हें हारता देखना चाहते है..
वो जब उनसे नही जीत पाते है, 
तो वो उम्मीद अपने संतति से लगाते है..
मगर जब संतति भी उस पे खरा नही उतरता है..
तब सोचो..
उनपे क्या बीतती होगी..।।

अब वो फिर उनसे कैसे नजरें मिलाते होंगे..
उनपे कैसे कटाक्ष का वार होता होगा..।

इस जंहा में सिर्फ पापा ही है,
जो आपको आगे..और आगे..बढ़ते देखना चाहते है..।।

पापा से शिकायत है...??
क्यों..??
पापा की मजबूरियों को समझों..
समाज और परिवार से बंधी बेड़ियों को देखों..
उनपे दायित्व निर्वहन के बोझ को देखों..
इस सारी विपरित परिस्थितियों के बावजूद वो तुम्हारे सुनहरे भविष्य के लिए सपने संजो रहे है...
क्या ये मामूली बात है..।

पापा से शिकायत है..।।
अगर हां...
तो खुद को पापा के स्थान पर रखकर देखों..।।



बुधवार, 23 अप्रैल 2025

विश्व पुस्तक दिवस..

चलिए आज विश्व पुस्तक दिवस पर कुछ किताब और कहानियों को याद करते है...।



आपको पहली पुस्तक याद है..जिसे आपने खुद से पढ़ा था..??
क्या आपको उसकी सुंगंध याद है..??
और क्या-क्या याद है..।।


मुझे वो पुस्तक आज भी याद है..
जिसे मैंने कई बार पलटा और उसके इंक के सुंगंध को कई बार सुंघा..
उस पुस्तक का नाम "बाल भारती" था वो दूसरी क्लास की पुस्तक थी..
इस पुस्तक को देखते ही कई कहानियां याद आ गई..।।
अब आप याद कीजिये..
आपके द्वारा पढ़ी जाने वाली पहली पुस्तक कौन सी थी..??

पुस्तक पढ़ने के कई फायदे है..
मगर अफसोस किताबों से दूरियां बढ़ती जा रही है..और pdf का अंबार इतना लग गया है कि हमें मालूम ही नही की कौन सा pdf किस चीज का है..??

शायद आपके द्वारा पढ़ा गया पहला पुस्तक का नाम याद आ गया होगा...अगर नही तो छोड़िए..
आपने आखरी पुस्तक कौन सी पढ़ी थी या पढ़ रहे है..??

मैं तो गौहर रज़ा का "मिथकों से विज्ञान तक"को पढ़ कर खत्म करने वाला हूँ.. 


अच्छा आखरी सवाल...
आपको सबसे ज्यादा कौन सी बुक ने प्रभावित किया..जिसे आप फिर से पढ़कर बौर नही होंगे..??

मुझे सबसे ज्यादा प्रभावित ब्रायन ट्रेसी की "लक्ष्य"(Goal) ने प्रभावित किया..और रामधारी सिंह दिनकर की "रशिमरथी" ने..मैं जब भी उदास होता हूँ तो रशिमरथी को पलटता हूँ और ऊर्जा प्राप्त करता हूँ..।।

बस ये आख़री है..
आपको वो पहली कहानी याद है जो आपके मन-मस्तिष्क में अभी तक छपा हुआ है..??
हां मेरे मन मस्तिष्क में छपा हुआ है, 9th क्लास में प्रेमचंद्र की कहानी "ईदगाह"पढ़ी थी..उसका पात्र हामिद आज भी याद है..।।

आज अपनी मनपसंद की किताब और पत्रिका पढ़ना बहुत आसान है..क्योंकि एक क्लिक में वो हार्डकॉपी और सॉफ्टकॉपी में उपलब्ध हो सकता है..
मगर अफसोस हममें पढ़ने की लालसा ही खत्म होती जा रही है...आखिर क्यों..??
खुद सोचियेगा...।।

किताब पढ़ने के अनेक फायदे है...

यूनिवर्सिटी ऑफ सक्सेस के एक अध्ययन में पाया गया कि सिर्फ 6 मिनेट पढ़ने से 68% तक तनाव कम होता है..यह योग या टहलने से भी ज्यादा असरदार है..
"पढ़ने से दिमाग काल्पनिक दुनिया मे चला जाता है, जो जीवन की चिंताओं से ध्यान हटाता है,और रक्तचाप कम करता है"

• अगर रोज 20 मिनट पढ़े तो साल के अंत तक 18 लाख शब्दों के संपर्क में आ जाएंगे।जिससे भाषा शैली में सुधार होता है।
एक अध्ययन में पाया गया कि-"किताब पढ़ने से हमदर्दी की भावना जागृत होती है"।

एक रिसर्च बताती है कि जो लोग किताब पढ़ते है, उनके जिंदगी से तनाव घटता है,नींद बेहतर आता है और भावनात्मक सेहत सुधरता है..यही नही किताब पढ़ने वाले कि उम्र आम लोगों के अपेक्षा 20% ज्यादा होता है..।

2013 में न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन के अनुसार,नियमित पढ़ने वालों की यादाश्त बेहतर होती है साथ ही अल्जाइमर का खतरा  20% तक कम हो जाता है..।।

क्या सोच रहे है..
आज आपके हाथ मे सिर्फ मोबाइल ही नही बल्कि विश्व की सबसे बड़ी लाइब्रेरी पड़ी हुई है..सिर्फ सर्च करने तक कि देरी है...।।मगर जो मजा कागजों को पलटते हुए,इंक की सुंगध लेते हुए पढ़ने में जो मजा है,वो किंडल और pdf पढ़ने में नही..।।


हिन्दू अपने ही देश में असुरक्षित हैं...

जरा सोचिए...
क्या यूरोपीय देश में, कोई ईसाई खुद को असुरक्षित महसूस करेगा..??
क्या कोई मुस्लिम देश में, कोई मुसलमान खुद को असुरक्षित महसूस करेगा..??
क्या कोई बौद्ध अनुयायी म्यांमार और थाईलैंड में खुद को असुरक्षित महसूस करेगा..??

क्या कोई हिन्दू,हिंदुस्तान में असुरक्षित महसूस करेगा..??
शायद कल सुबह तक हम खुद को सुरक्षित महसूस पा रहें थे..
मगर कल दोपहर की घटनाओं ने हिंदुओं को हिंदुस्तान में भी असुरक्षित कर दिया है...

जिस तरह कल कश्मीर में ना जाति पूछा, न भाषा पूछा, न राज्य पूछा..
धर्म पूछ कर गोली मार दिया...
जिन्होंने नही बोला उसे नंगा करके मारा गया...।।
ये घटना रूह को कंपा देने वाली है...।



आज हिंदुओं से ज्यादा मुस्लिम के ऊपर दायित्व बढ़ गया है..
उन्हें खुलकर विरोध करना होगा..
अगर वो आज विरोध नही करते है तो वो संदेह के नजर से देखें जाएंगे...।।
पाकिस्तान यही चाहता है..।।
हमारी सरकार को अब इस कायराना हरकतों की निंदा नही बल्कि उनके आकाओं को सदा के लिए नींद में भेज देने की जरूरत है..।
भारत मे जो उनके समर्थक है उन्हें लाल चौक पे चुनवाने का समय आ गया है..।।
अगर सरकार कड़ा कदम नही उठाती है तो..
फिर से किसी चौराहे पे धर्म पूछ के किसी हिन्दू को गोली न मार दिया जाय...।।

मंगलवार, 22 अप्रैल 2025

पोप फ्रांसिस की जीवन-यात्रा..

"हम मृत्यु नही, जीवन के लिए बने है.." पोप फ्रांसिस ने मरने से पहले दुनिया को ये आखरी संदेश दिया था..। 


हममें से बहुत बड़ी आबादी पोप फ्रांसिस को नही जानते होंगे..??
क्योंकि वो एक सेलेब्रिटी या राजनेता नही थे..
जिस तरह हिंदू धर्म के प्रमुख शंकराचार्य होते है और बौद्ध धर्म के प्रमुख दलाई लामा होते है..
इसी तरह पोप फ्रांसिस कैथोलिक ईसाइयों के सबसे बड़े धर्मगुरु थे..।।

पोप फ्रांसिस पहले गैर-यूरोपीय पोप बने...
इनका जन्म अर्जेटीना की राजधानी बीयूनर्स आयर्स में हुआ..
जॉर्ज मारियो बरगोगिल्यो(असली नाम) पादरी बनने से पहले अर्जेटीना के एक नाईट क्लब में बाउंसर का काम करते थे..
फिर उन्होंने एक केमिकल लैब में काम करना शुरू किया..
फिर उन्होंने अर्जेटीना के कॉलेज में साहित्य और मनोविज्ञान के शिक्षक के रूप में पढ़ाया..
उन्होंने 21 के उम्र में जेसुइट समुदाय से जुड़े..फिर अर्जेटीना में ही पादरी बन गए..
ये अपने माँ-बाप के साथ इटली आ गए और यही बस गए.
2001 में पॉप जॉन पॉल ii ने उन्हें कार्डिनल बनाया..और
2013 में 266वे पॉप की उपाधि दी गई..।

मैं आज से पहले इनसे उतना वाकिफ नही था..बस इनके मौन मुस्कान का कायल था..
जब भी कभी अखबार या टेलिविज़न पे देखता तो इन्हें मुस्कुराते देख बस मैं भी मुस्कुरा दिया करता था..।।

इनके व्यक्तित्व पे इनके जीवन का गहरा छाप था..
हम अक्सरहाँ हार जाते है..
मगर इनका जीवन यात्रा बताता है कि हार मानना गुनाह है..
क्योंकि भविष्य के गर्भ में क्या छुपा है कोई नही जानता..

एक नाईट क्लब का बाउंसर, पोप बनकर पहली बार रोम की जेल में कैद महिलाओं का पाँव धोता है..।।(परंपरा के अनुसार पोप ईस्टर से पहले गरीबों का पाँव धोते है)इन दोनों घटना को जोड़ने की कोशिश कीजिये..।।



पोप होने के नाते उन्हें भव्य अपोस्टोलिक पैलेस में रहना था, मगर उन्होंने साधारण गेस्ट हाउस को चुना..।



पोप बनने पर 'रिंग ऑफ द फिशरमैन' पहनाते है,ये सोने की रिंग शक्ति का प्रतीक होता है..मगर उन्होंने चांदी का रिंग पहना..।

•जब वो आर्कबिशप थे, तो उन्होंने कभी महंगी गाड़ियां में  नही बैठे।हमेशा पब्लिक बस और मेट्रो से सफर करते थे..
पोप बनने के बाद भी वो बस से सफर करते थे..
(एक हमारे यंहा के भी संत लोग है..)

•वो अक्सरहाँ लोगों की मदद करने के लिए रात में निकल जाया करते थे..जिससे किसी को पता न चले..।।
(आज हम किसी की मदद करने से पहले सेल्फी लेते है)

उनकी जीवनयात्रा प्रेरणादायी है..
कंहा नाईट क्लब के बाउंसर(गार्ड) से वो कैथोलिक ईसाई के प्रमुख धर्म गुरु बने..।।
धैर्य रखें,और आगे बढ़ते रहें, और उस परमात्मा पे विश्वास रखें.. क्या पता किस मोड़ पे सफलता बाहें फैलाकर आपका इंतजार कर रहा हो..।

आज दुनिया की अधिकांश आबादी उदासी में डूबती जा रही है, और उस उदासी को दूर करने के लिए वो जिसका सहारा ले रही है..वो उसे और गहरे उदासी में धकेल रही है..।
ऐसे समय मे पॉप फ्रांसिस का अंतिम संदेश को याद करें-
" हम मृत्यु के लिए नही,जीवन के लिए बने है।।"