मंगलवार, 31 दिसंबर 2024

नव वर्ष मंगलमय हो..😊

कल भी आज की तरह ही सूरज उगेगा..
चिड़िया आज की तरह ही चहचहाएँगी,
नदिया आज की तरह ही बहेंगी..
प्रकृति में कुछ बदलाव नही होगा..
बदलेगा तो सिर्फ हमारा कैलेंडर और हमारा उत्साह..।।

मगर हम इस उत्साह को कब तक बरकरार रख सकते है..??

मगर क्या हम खुद को कैलेंडर की तरह बदल पाएंगे..??

थोड़ी देर रुकिए..और सोचिए..
2024 शुरू होने से पहले आपने खुद के अंदर परिवर्तन लाने के बारे में क्या सोचा था..और उसपे आपने कितना अमल किया..और आज आप कंहा है..।।

छोड़िए ये सब..
2025 का प्लान बनाइये..
इस वर्ष आप क्या पाना चाहते है,और क्या छोड़ना चाहते है..
इसे लिखिए और प्लानिंग बनाइये..
क्योंकि बिना रोडमैप के आप कंही नही पहुंच पाएंगे..
आप चलना शुरू तो करेंगे..
मगर ज्यादा दूर तक नही चल पायेंगे.. अगर चलेंगे भी तो भटक जाएंगे..
इसलिये थोड़ा रुकिए और 2025 में क्या पाना चाहते है और क्या छोड़ना चाहते है,उसके बारे में रोडमैप तैयार कीजिये..।।

और इस नव वर्ष को नए जीवन के रूप में परिवर्तित कीजिये..
नव वर्ष मंगलमय हो



मैंने मुस्कुराना सीख लिया है..😊

मैंने मुस्कुराना सीख लिया है..
जब भी खुद को आयने में देखता हूँ तो मुस्कुराता हूं,
जब भी पंछियो को पंख फैला कर उड़ते देखता हूँ तो मुस्कुराता हूँ..
जब भी सूर्य की लालिमा को देखता हूँ तो मुस्कुराता हूँ..
जब भी प्रकृति की लीला देखता हूँ तो मुस्कुराता हूँ
मैंने मुस्कुराना सीख लिया है..।।



अब मैं दुःखी नही होता..
क्योंकि दुःख तो जीवन का हिस्सा है..
इसे आने से कोई नही रोक सकता..
मगर ये मेरे ऊपर कितने समय तक हावी रहे,
इसका निर्णय मेरे हाथ मैं है..
इसीलिए मैं अब इसे ज्यादा देर तक अपने ऊपर हावी नही होने देता..
मैंने मुस्कुराना सीख लिया है..।।

हमारी  मुस्कान सबसे बड़ा गहना है,
जो प्रकृति से उपहार मैं मिला है..
हम जब भी मुस्कुराते है..
प्रकृति भी मुस्कुराती है..।।

सोमवार, 30 दिसंबर 2024

अपनी समस्या से खुद निपटे..

अपनी समस्या से हमें खुद को ही जूझना पड़ता है..



यंहा कोई और नही है जिसे आपकी समस्या की परवाह पड़ी हुई है...क्योंकि आपकी समस्या के बारे में आपके सिवा किसी को नही पता है..
इसीलिए कोई चाह करके भी आपकी मदद नही कर सकता..

हां सिर्फ माँ-बाप ही आपका साथ लंबे समय तक दे सकते है,बिना आपके समस्या को जाने हुए भी..
इसीलिए जितना जल्दी हो सके अपने समस्या से निपटने की कोशिश करें....


भारत विश्वगुरु कब बनेगा..??

अगर आपको इतिहास में रुचि है,या फिर आप इतिहास को जानते है तो आपको भली-भांति पता होगा कि भारत प्राचीन और मध्यकाल में,पूरे विश्व मे अपना प्रमुख स्थान क्यों रखता था..??



भले ही आज हम आर्थिक प्रगति कर रहें है..और आर्थिक रूप से हम GDP के मामले में टॉप 5 देशों में आते है,मगर उसका दूसरा पहलू ये है कि पर कैपिटा GDP इनकम के मामले में हम टॉप हंड्रेड देशों के सूची(141) में भी नही आते..।

आखिर क्यों..??

प्राचीन काल मे भारत की जनसंख्या विश्व की जनसंख्या का लगभग 33% था, वंही GDP विश्व के GDP का 33-35% था

और मध्यकाल में भारत की जनसंख्या विश्व की जनसंख्या का ~28% था, वंही GDP विश्व के GDP का 30-33%...

आखिर फिर क्या हुआ कि भारत पिछड़ गया....??

ये सबको पता है कि 1700 ईस्वी के बाद भारत ब्रिटेन के चंगुल में फंसता गया और भारत को निचोड़ता गया..भारत को  निचोड़ कर ही यूरोप में औद्योगिक क्रांति की शुरुआत हुई,और यूरोप इस क्रांति से इतना संपन्न हुआ कि पूरे विश्व पे अपना छाप छोड़ा जो अभी भी दिख रहा है..।

मगर 1947 में हमें आजादी मिल गई भले ही हमें उस तरह से नही मिली,मगर मिल गई..फिर आखिर क्या हुआ की हम खड़ा होना तो शुरू किए मगर अभी तक उस अवस्था मे खड़े नही हो पाए ...??

क्योंकि हमने नींव ही गलत जगह गाड़ी...या फिर हमने नींव गाड़ी ही नहीं..??हमने अंग्रेजो द्वारा बनाये गए महलों में बैठ कर ही रणनीतियां बनाना शुरू किया.. जिसका भुगतान आज तक हमें करना पड़ रहा है..।।

भारत तबतक समृद्ध रहा जबतक बिहार,पूर्वी उत्तर प्रदेश और बंगाल समृद्ध रहा...सिर्फ आर्थिक ही बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक रूप  में भी समृद्ध था..जब तक ये क्षेत्र फिर से समृद्ध नही होंगे तबतक भारत कभी भी समृद्ध नही होगा,न ही कभी भारत की फिर से विश्वगुरू बनने की महत्वाकांक्षा पूर्ण होगी..इसलिए इस क्षेत्र का समृद्ध होना बहुत जरूरी है..

आखिर ये क्षेत्र पिछड़े क्यों..??

क्योंकि इन्हें आजादी की कीमत अभी भी चुकानी पड़ रही है,पहले अंग्रेजों ने फिर अंग्रेजी मानसिकता के लोगों ने..

शुरुआत में अंग्रेज का विरोध इस क्षेत्र से प्रबल हुआ, तो अंग्रेजों ने पहली अपनी राजधानी बदली और फिर धीरे-धीरे अपना पूरा व्यापार समेटकर दक्षिण की और पूर्वी और पछिमी तट पे ले के चले गए आज ये क्षेत्र समृद्ध है..

आजादी के बाद भी ये क्षेत्र समृद्ध नही हुए..क्योंकि इन्होंने आजादी के जो स्वप्न देखे थे वो आजादी के बाद दुःस्वप्न में बदल गए..आजादी सिर्फ समृद्ध लोगों को ही मिले.. आर्थिक और सामाजिक रूप से जो पिछड़े थे वो आज भी बड़ी संख्या में पिछड़े ही है..

इनके हक के मांग के कारण बार-बार हड़ताल के कारण बची खुची कंपनी भी यंहा से पलायन हो गए..

वर्तमान में ये क्षेत्र आज भी शैक्षणिक,और आर्थिक रूप से पिछड़ा हुआ है..

महाराष्ट्र, तमिलनाडु,कर्नाटक,केरल,आंध्रप्रदेश के 10वी पास बच्चों को नॉकरी ढूंढने में उतनी तकलीफ नही होती, जितनी तकलीफ बिहार,ओडिशा,U.P, झारखंड और बंगाल के स्नातक पास छात्रों को होती है,क्योंकि इनकी शिक्षा का स्तर आजादी के बाद गिरता ही गया..

यही हाल आर्थिक रूप में भी है.... 

आप खुद सोचिए जब उत्तर भारत समृद्ध था तो पूरे विश्व का नेतृत्व करता था..मगर आज..हम कंहा है..??

मगर अब समय का पहिया घूम रहा है..ज्यों-ज्यों उत्तर भारत भी समृद्ध होता जाएगा भारत फिर से पूरे विश्व को दशा एयर दिशा तय करेगा..।।


शुक्रवार, 27 दिसंबर 2024

आर्थिक सुधार के नायक...मनमोहन सिंह

हजारों जबाबों से अच्छी है मेरी खामोशी..
न जाने कितने सवालों की आबरू रखी...।



ये उक्तियां भारत के 13वे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी की है..
इनके बारे में अक्सरहाँ कंहा जाते था कि ये हमेशा मौन रहते थे..
इसके पीछे कारण था,ये कोई राजनीतिज्ञ नही बल्कि ब्यूरोक्रेट्स थे..जो हमेशा अनुशाषित और सधे शब्दों का इस्तेमाल करते थे...।

इनका जन्म पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में हुआ..
बचपन मे ही माँ के मृत्यु के बाद इनका लालन-पालन इनके दादा-दादी ने किया..।
इनका जीवन कोई ऐशो-आराम वाला नही था इन्होंने लालटेन में अपनी पढ़ाई शुरू की थी और कैम्ब्रिज तक गए..
और उसके बाद पंजाब विश्वविद्यालय में प्रोफेसर बने..
1971 में वाणिज्य मंत्रालय में आर्थिक सलाहकार बने..
1972 में वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार बने..
1982-85- RBI के गवर्नर रहे
1985-1987 तक योजना आयोग के प्रमुख

1991 में P. V नरसिम्हा राव ने वित्त मंत्री बनाया..
और उन्होंने आर्थिक बदलाव की नींव रखी और भारत का बाजार पूरे विश्व के लिए खोल दिया..
(ये काम चीन ने 1978 में ही कर चुका था...)
इसके कारण इन्हें विपक्षि पार्टियों सहित खुद के पार्टियों से भी आलोचना सुननी पड़ी..
मोन्टेन सिंह आहुलियावल अपनी पुस्तक में जिक्र करते है कि,नरसिम्हा राव ने सिंह से कहा अगर ये प्लानिंग सफल रही तो इसका श्रेय हमदोनो लेंगे..अगर असफल हुआ तो इसका श्रेय आपको लेना होगा..
यंहा तक कि जब इनकी आलोचना संसद में बहुत होने लगी तब इन्होंने इस्तीफा देने का मन बना लिया..
तब इन्हें अटल बिहारी वाजपेयी ने समझाया कि आप अब ब्यूरोक्रेट्स नही, बल्कि अब आप राजनीतिज्ञ है..इसीलिए अब आप,अपनी चमड़ी मोटी कर लीजिए..
विपक्ष का काम ही है आलोचना करना..।

इनकी आत्मा अब भी बैचैन होगी..
जब इन्होंने 2014 में प्रधानमंत्री का पदभार संभाला तो इन्होंने पहले कार्यकाल में तो बहुत कुछ किया मगर दूसरे कार्यकाल में नही कर पाए..
ये भारत को जिस आर्थिक रास्ते पे ले जाना चाहते थे वंहा तक ले जाने में सफल नही हो पाए..क्योंकि इनके हाथ बंधे हुए थे..।मगर अपने प्रधानमंत्री कार्यकाल में इन्होंने कुछ अभूतपूर्व कार्य किये..
मनरेगा
•राइट टू इनफार्मेशन
•आधार
•इंडो-अमेरिका परमाणु ट्रीटी
•फ़ूड सेक्युरिटी बिल..

मगर इनकी आत्मा अब भी बैचैन होगी क्योंकि ये भारत को जिस आर्थिक सुधार पे ले जाना चाहते थे वंहा ले जाने में नाकाम रहे..।।

अमेरिकन राष्ट्रपति बराक ओबामा ने 2010 के टोरंटो G-20 सम्मेलन में कंहा था- जब मनमोहन सिंह बोलते है,खासकर आर्थिक मुद्दे पर तो सारी दुनिया सुनती है।इन्होंने सिर्फ न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया को बेहतरीन लीडरशिप दी है..।
ओबामा ने अपनी पुस्तक" अ प्रॉमिस्ड लैंड" में मनमोहन सिंह को असाधारण व्यक्ति कहा है..

जापान के पूर्व P. M सिंजे आबे के सहयोगी तोमोहिको तानिगुची 2014 में जब भारत आये तो उन्होंने कहामनमोहन सिंह को सिंजे आबे अपना गुरु मानते है..।

जब 2013 में यूरो क्राइसिस हुआ तो जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल ने इनसे सलाह ली थी..।।

•इन्होंने 2016 में demonetization के बारे में भी कहा था,जब विपक्ष बोल रही थी कि 2025 तक हमारा GDP 10% से बढ़ेगी तो इन्होंने कहा था इससे हमारे GDP पे 2% तक स्लो डाउन रहने का डर है..जो बाद में हुआ भी..।

इन्होंने एकबार कहा था...
" मुझे उम्मीद है कि इतिहास मेरा मूल्यांकन करते समय ज्यादा उदार होगा.."

आर्थिक सुधार का नायक अब हमारे बीच में नही है..
मगर उनके द्वारा बनाया गया मार्ग आज भी है..जिसपे चलकर भारत आज पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गई है और भविष्य में तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की और अग्रसर है..।।



सोमवार, 23 दिसंबर 2024

हम उदास क्यों होते है..

जब भी हम अतीत और भविष्य के बारे में सोचते है तो उदासी खुद-ब-खुद छा जाती है..
चाहे अतीत अच्छा हो या बुरा उदासी छा ही जाती है..



आखिर हम अतीत और भविष्य में क्यों झांकते है..??
क्योंकि जब भी हमारा वर्तमान अनिश्चितताओं से भरा होगा  हम अतीत और भविष्य में झांकेंगे ही..इसे चाहकर भी हम नही रोक पाएंगे...
जैसे भूख लगने पर कुछ भी खा लेते है..
प्यास लगने पर कुछ भी पी लेते है..
भले ही इसका परिणाम कुछ भी हो उसके बारे में हम नही सोचते,
उसी तरह जब भी हमारा वर्तमान अनिश्चितताओं से भरा होगा तो हम वर्तमान और खासकर भविष्य के बारे में कुछ भी सोचेंगे.. चाहे उसका परिणाम कुछ भी हो..
वो अच्छा भी हो सकता है और बुरा भी..।।

आखिर इससे छुटकारा कैसे पाया जाए..??
अपने वर्तमान का आंकलन करें..
आप अभी क्या कर रहे है और क्यों कर रहे है..
जो आप कर रहे है..क्या वो आपको अपनी मंजिल तक ले जा रहा है..
क्या आपको अपनी मंज़िल(लक्ष्य) का भी पता है..??
अगर नही, तो ताउम्र भटकते रहेंगे..
अपने मंज़िल(लक्ष्य) के बारे में इत्मीनान से सोचे भले ही इसके लिए 1 दिन या 1 सप्ताह या फिर 1 महीने का ही समय क्यों न लगे इसपे समय लगाए..
जब आपको अपने मंज़िल का पता चल जायेगा तो आप खुद-ब-खुद अतीत और भविष्य में झलकियां मारना बंद कर देंगे..।।
और आपकी उदासी खुद-ब-खुद बंद हो जाएगी..

हमारे उदासी का सबसे बड़ा कारण हमारा लक्ष्यविहीन जिंदगी है..
इसीलिए अपने लक्ष्य का चयन कीजिये..
और अपने लक्ष्य को पाने के लिए पूरा वर्तमान झोंक दे..
जब आपका वर्तमान पूर्णतया लक्ष्य प्रेरित होगा तब आपके जिंदगी में उदासी के लिए जगह ही नही बचेगा..।


रविवार, 22 दिसंबर 2024

कोई बुरा नही होता..

एक महिला ट्रैन के 3rd AC में सफर कर रही थी,उनके पास 1 ही टिकट था मगर उनके साथ 2 और व्यक्ति था T.T आया और उनसे कहा तुमलोग फिर आ गए मना किया था..इस पर महिला ने कहा खाना खाने आया है,TT ने कहा मैं सबकुछ जानता हूँ उनदोनों में बहस होने लगा..
इन परिस्थितियों में TT सही था और वो महिला गलत.. क्योंकि महिला उनसे गलत बहसबाजी कर रही थी..।

इस परिदृश्य को देखकर कोई भी, उस महिला को गलत ही कहेगा..

वंही एक दूसरी परिस्थिति में...
उस महिला का सीट RAC था जिस पर वो, और एक व्यक्ति एक बच्चे के साथ था रात मे वो बच्चा रातभर पाँव भांजता है जिसके कारण उसे कभी-कभी चोट भी लगता है..
मगर वो एकबार भी उसे बच्चे को भला-बुरा नही कहती..
ये परिस्थिति उसे अच्छा बनाता है..।।




इस वाकया से यही पता चलता है की..
कोई भी व्यक्ति न ही बुरा और न ही अच्छा होता है..
बल्कि परिस्थितियां उसे अच्छा और बुरा बनाता है..।।

जो लोग परिस्थितियों के साथ सामंजस्य बैठा लेते है..
वो अक्सरहाँ औरों के नजर में अच्छे दिखते है,
जो सामंजस्य नही बिठा पाते वो लोगों के नजर में बुरा बन जाते है..
ये सिर्फ उनकी गलती नही बल्कि उनकी परवरिश,शिक्षा और समाज भी इसके लिए जिम्मेदार है..।।

इसीलिए कोई इंसान बुरा नही होता बल्कि परिस्थितियां किसी को अच्छा या बुरा बनाता है..।।
इसीलिए हमें कोई अधिकार नही किसी को बुरा कहने का..
शायद आप जिसे बुरा कह रहे है उसके साथ कुछ समय गुजारने के बाद आपका नजरिया बदल जाये...।।

चलो खुद को बदलते है..

हमलोग कछुआ और खरगोश की कहानी बचपन से ही सुनते आ रहें है..
इस कहानी में अभी तक खरगोश जीत नही पाया है..
आखिर क्यों..??
कभी इस और ध्यान गया है..आखिर क्यों हर बार खरगोश ही हार रहा है..
क्योंकि वो खुद को बदलना नही चाहता..
उसे हर बार लगता है की वो बीच मे आराम करके फिर से दौड़कर जीत जाएगा..मगर वो हर बार इसी तरह से हारता है..।।




हम मनुष्य का भी तो यही हाल है..
हम हर बार हारते है..
मगर खुद को बदलना नही चाहते..।।
क्यों..??
क्योंकि खुद के अंदर बदलाव लाना सबसे मुश्किल कार्य है..।


हम दूसरों पर प्रभाव डालने के लिए अपने अंदर बदलाव तो लाते है..

मगर जो कमियां हमारे अंदर है,जिसे मेरे सिवा कोई नहीं जानता, उसे दूर करने का हम प्रयास नही करते..अगर करते भी है तो निरर्थक प्रयास करते है..।।

क्योंकि हमें उन कमियों की आदत हो गई है,या फिर कह सकते है कि हमारी कमियां इतना विराट हो गई है कि हम उससे हर बार निरर्थक प्रयास करके हार जाते है..।

क्या उससे जीता नही जा सकता..??

अगर वोटिंग कराया जाए तो 100% हां में ही जबाब आएगा..
मगर जब उसे अमल में लाने की बात हो तो 95% लोग असफल हो जाते है..।
सिर्फ 5% लोग ही अमल में ला पाते है..
और वही 5% लोग दुनिया को अपने अनुरूप चलाते है..।।

क्या हम उस 5% में नही आ सकते..?
क्यों नहीं..
सिर्फ उन कमियों को दूर करके जिसे सिर्फ हम जानते है..
चलिए आज से शुरू करते है...
सबसे पहले अपने कमियों को लिखते है..
हमारी कमियां हमारे अच्छाइयों से कम ही है..😊

मगर हमारी कमियां सिर्फ हमारे अच्छाइयों पे ही हावी नही बल्कि पूरे जीवन पर हावी हो जाता है..।।

चलिए उसे दूर करते है..
और इस बीतते हुए साल के साथ अपने कमियों को भी अलविदा कहते है..
और नए वर्ष में नया शुरुआत करते है😊..।।



बुधवार, 18 दिसंबर 2024

दूसरों में कमियां निकालना बंद कीजिए..

आपने अक्सरहाँ सुना होगा या फिर कभी आपके साथ भी हुआ होगा..
की आपने किसी को अच्छा बोला मगर उसे बुरा लग गया..
कभी सोचा है क्यों..??
क्योंकि हमारी बोलनी की शैली पर सबकुछ निर्भर करता है..

एक उदाहरण से समझिए..
●आप कहते है की ये रेस्टुरेंट खराब है..
वंही दूसरा कहता है कि इस रेस्टुरेंट का फास्टफूड अच्छा नही है..
●वंही आप किसी बच्चे को कहते है..
-तुम बहुत बदमाश है..
वंही दूसरा कहता है..आप बहुत चंचल है..

हमारे शब्दों का चयन बहुत मायने रखता है..
आप किस शब्दों का कंहा चयन करते है,
किसके लिए करते है..
ये बहुत महत्वपूर्ण है..।

आप जरा याद कीजिये..
आपका रिलेशन किसके साथ खराब है..
और गौर कीजिये क्यों खराब हुआ..
कंही-न-कंही आपके या उनके बातों में कुछ ऐसे शब्दों का मिश्रण रहा होगा..
जो आपको या उनको तकलीफ पहुँचाया होगा

शुक्रवार, 13 दिसंबर 2024

बिहार की धरती बांझ हो चुकी है...

बिहार की धरती बांझ हो चुकी है.. फिर से एक हलधर की जरूरत है ..

जो पूरे बिहार को अच्छी तरह से कुरेदकर..

इसके बांझपन को नाश करें..

फिर से एक चाणक्य की जरूरत है..

जो बिहार की जड़ता खत्म कर..

एक नया कीर्तिमान रचें..

फिर से एक शेरशाह की जरूरत है..

फिर से एक जयप्रकाश नारायण की जरूरत है..

जो पूरे देश के युवाओं के जड़ता को तोड़कर

एक आंदोलन खड़ा कर..

सक्ता पे आसीन जर हो चुके नेताओं को उखाड़ के फेंके..

बिहार की धरती बांझ हो चुकी है..

फिर से एक हलधर की जरूरत है..

जो इसके बांझपन को मिटाये...


कंहा हो तुम..

अब तुम्हारी कमी खलती है..
कंहा हो तुम..
जंहा भी हो..
अब आ जाओ..
अब तुम्हारी कमी खलती है..।।

बुधवार, 11 दिसंबर 2024

हमारे भगवान..

आपने कभी ध्यान दिया है..
हम जैसे होते जा रहे है..
वैसे ही अपने भगवान को गढ़ते जा रहे है..

आपने आज से 5-6 साल पहले तक इतना उग्र,क्रोधी भगवान का स्वरूप सोशल मीडिया पे या वॉलपेपर के रूप में नही देखा होगा..
जैसा आजकल लोग सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पे स्टेटस लगाते है या फिर शेयर करते है..।।



अगर आपके देखने का नजरिया थोड़ा अलग है तो..आप लोगों के इस तरह के कार्य से आप उन्हें पहचान सकते है कि वो किस तरह के लोग है...।।

आज कल जिस तरह से हम Hi-tech होते जा रहे है,और समाज से कटते जा रहे है,उसी तरह से भगवान को भी hitech बनाते जा रहे है और उन्हें एकाकी बनाते जा रहे है .

पहले के पुराने भगवान को देखे वो अकेले नही दिखेंगे..
अब के फोटो देखे वो अकेले ही दिखेंगे..

पहले के भगवान के फ़ोटो में उनका स्वरूप सौम्य, और मंद मुस्कान लिए होता था,और अब के मांसल शरीर के साथ क्रोध से आंख लाल लिए..

पहले के भगवान के फोटो में प्राकृतिक परिवेश दिखता है..
अब नही दिखता..क्योंकि हम प्रकृति को नष्ट करते जा रहे है..

पहले के देवियों के तस्वीरों में उनके वस्त्र और आभूषण शालीनता लिए हुआ था..अभी के वस्त्र और आभूषण तड़क-भड़क होता जा रहा है..।।



आखिर क्यों..??
क्योंकि हम खुद ऐसे होते जा रहे है..

हम जैसे होते है..उसी तरह का स्वरूप भी भगवान का गढ़ते है..।।





शनिवार, 7 दिसंबर 2024

सपने अगर अपने हो..

कभी सपनों को मरने मत देना..
क्योंकि सपने जरूर पूरे होते है..
अगर सपने अपने हो..
जिसे आपने देखा है..
वैसे सपने जरूर पूरे होते है..।।



कभी-कभी हम
जिंदगी के भागदौड़ में 
अपने सपनों को भूल जाते है..
इसीलिए वो सपने हकीकत में तब्दील नही हो पाते..
इसीलिए सपनों को संजो के रखे..
क्योंकि सपने अगर अपने हो तो जरूर पूरा होता है..।

अगर सपनें पूरे नही होते..
उसके लिए भी हम खुद ही जिम्मेदार है..
हर अपराध के लिए हम स्वयं ही कसूरवार है..।
ये आरोप प्रत्यारोप का समय नहीं..
बल्कि एकबार फिर से बिखरे हुए सपनों को समेटकर..
उसे पूरे करना का समय है..।।

अगर सपने अपने हो तो वो जरूर पूरे होते है..
अगर पूरे नही होते है..
तो एकबार फिर से सबकुछ दांव पे लगा कर पूरा करने का प्रयत्न करें..
क्योंकि सपने अगर अपने हो तो वो जरूर पूरा होते है..।

शुक्रवार, 6 दिसंबर 2024

हमारे हिस्से की लड़ाई..

कभी-कभी हमारे हिस्से की लड़ाई दूसरे भी लड़ रहे होते है..
और हमें पता नही चलता..
कभी सोचा है इसके बारे में..
उस और हमारा कभी ध्यान ही नही जाता..


हमें लगता है,
हमें खुद ही अपने हिस्से की लड़ाई लड़नी होती है..
मगर ऐसा नही है..
कुछ लोग और भी होते है,जो आपके हिस्से की लड़ाई लड़ रहे होते है..
या तो वो कभी दिखते है,या फिर नही दिखते..
या फिर हमें ताउम्र समझ मे ही नही आता..
और हम गलतफहमी पाल लाते है कि ये सब कुछ हमने ही किया है..।।
इसीलिये जब सफल हो..
तो अपने अंदर कृतिज्ञता का भाव जरूर रखें..
अगर हो सकें तो किसी जरूरतमंद के हवनकुंड(जीवन) मे अक्षत की आहुति कम-से-कम जरूर दे..
मगर अफसोस ये शौभाग्य सब को नही मिलता..
कुछ को अगर मिलता भी है तो वो उसका सदुपयोग नही कर पाते..
और कुछ लोग नए कीर्तिमान रच देते है..।।

कंहा से शुरुआत करू...
चलिए शुरू से ही शुरुआत करते है...
अगर हमारे पूर्वज खड़े होने के लिए असहनीय पीड़ा नही सहे होते तो शायद आज हम मानव समुदाय पे कोई और राज 
करता..जरा कल्पना कीजिये..
अगर हड़प्पा काल में हमारे पूर्वज उतना उन्नतशील नही होते तो आज हमें ये गुमान नही होता कि ये सबसे उन्नत और सबसे बड़ी सभ्यता थी..
अगर वैदिक काल मे हमारे ऋषियो ने वेद की ऋचा नही रची होती..तो आज हम गुमान नही करते..
अगर महाजनपद काल मे बिम्बिसार,घनानंद,अशोक,नही होता तो दुनिया का सबसे बड़ा मगध साम्राज्य नही बनता..
अगर गुप्त काल उन्नतशील नही होता तो विश्व की सबसे बड़ी यूनिवर्सिटी नालंदा नही होती..और वराहमिहिर, आर्यभट, कालिदास, धन्वंतरि इत्यादि जैसे विद्वान नही होते..।
अगर हमारे पूर्वज एकजुट हुए होते तो मध्यकाल में मुस्लिम आक्रांता हमपे राज नही करते..अगर वो दक्षिण भारत विजय कर लेते तो..तो स्थापत्यकला की ऊंचाइयों को छूने वाला मंदिर ना होता
अगर मुगलकाल सुदृढ़ नही होता तो कुछ ऐतिहासिक इमारत का निर्माण नही होता,अगर वो कमजोर ना होते तो अंग्रेज हमपे राज ना करते..
अगर हमारे क्रांतिकारी नेता अपना बलिदान नही देते तो आजादी की आवाज घर-घर मे बुलंद नही होता..अगर गांधी,नेहरू,बोस,पटेल,अंबेडकर, आजाद,भगत, बिस्मिल्लाह कितनों का नाम लू अगर ये ना होते तो भारत शायद ऐसा न होता..
अगर आज हम यंहा है..और मनुष्य या भारतीय होने पे नाज कर रहे है..
तो इसके पीछे लंबा संघर्ष चला है और ये चल रहा है...
●हम अभी जिस अवस्था मे है इसके पीछे भी लंबा संघर्ष चला है...
हम कल्पना भी नही कर सकते..
हमारे एकल सेल(स्पर्म) को करोड़ों सेल से संघर्ष करके
अंडाशय तक कि यात्रा करनी पड़ी है..
फिर 9 महीने तक हमारी माँ को संघर्ष करना पड़ा है..
फिर जन्म लेते ही..आपके साथ-साथ कइयों का संघर्ष चालू हो गया है..
और ये संघर्ष अभी भी चालू है..और अनवरत चालू रहेगा..


इसीलिए जब भी आप जीवन मे संघर्ष कर रहे हो..
तो जान लीजिए कुछ और लोग भी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से आपके साथ संघर्ष कर रहे है..और आपको भी बेहतर दुनिया के लिए संघर्ष करना है..

इसीलिए उदास मत होइए..
बल्कि अपने संघर्ष को अपना कवच बना कर सफलता का पताका फहराइये..।।



सोमवार, 2 दिसंबर 2024

माफ करना जरूरी क्यों है

क्या आप किसी ने नाराज़ हैं, क्योंकि उसने आपके साथ कुछ बुरा किया था और क्या आपको लगता है कि वह माफ़ी का अधिकारी नहीं है?

कितनी हास्यास्पद बात है कि हममें से अधिकांश लोग ये मानते हैं कि यदि हम किसी को माफ़ नहीं करेंगे तो उसे कष्ट होगा, जबकि सच्चाई इसके बिल्कुल विपरीत है। यदि हम किसी को माफ़ नहीं करते तो कष्ट हमें ही होता है।



किसी के आपके साथ बुरा करने पर उसे माफ़ न करना आपको दुःख के एक लंबे रास्ते पर ले जाएगा और उस पूरी यात्रा में आपको पता भी नहीं चलेगा कि आपके दिमाग़ में कितने नकारात्मक विचार घूम रहे हैं, और आपको कमज़ोर, उलझा हुआ एवं निराश बनाते जा रहे हैं।

जब हम किसी को क्षमा नहीं करते तो हम उसके जैसे बनने लगते हैं। जितनी अधिक नफ़रत हम उससे करते हैं, उतना ही अधिक हम उसके जैसे बनते जाते हैं। हमें पता भी नहीं चलता कि कब हम ख़ुद को एक क्षुब्ध, असभ्य और हृदयहीन व्यक्ति के रूप में बदल लेते हैं।

अतः हमेशा याद रखें- माफ़ी वास्तव में, माफ़ कर देने वाले के लिए होती है!

(ये लेख स्नेह देसाई द्वारा लिखित है,जो "अहा जिंदगी" पत्रिका में प्रकाशित हुई थी..)


रविवार, 1 दिसंबर 2024

आप खुद से कितना प्यार करते है..

आपने आखरी बार आयने में खुद को कब देखा था..??
कैसा बेतुकी सवाल है..आपको लग रहा होगा..
मगर मैं, फिर पूछता हूँ आपने आखरी बार खुद को आयने में कब देखा था..??


शायद आपको याद नही हो,या फिर आप अभी भी मेरे सवाल को समझ नही पा रहें होंगे..
चलिए प्रश्न को आसान करते है..
आपने आयने के सामने खुद को देखकर कब मुस्कुराया था..??
और अपने खूबसूरती पे नाज किया था..
थोड़ा याद करें..।।
अगर नही याद आ रहा है तो आप गंभीर स्वास्थ्य समस्या से घिरे होंगे,या घिरने वाले है..
इसीलिए आज से ही आयने में खुद को देखकर मुस्कुराना शुरू कीजिए..

हाल ही में,
मैं लसेन्ट द्वारा प्रकाशित हेल्थ रिपोर्ट पढ़ रहा था..
(Global burdens disease study 1990-2021)

जो मैं यंहा बताने जा रहा हूँ...
आपको जानकर हैरानी होगी कि जितना भी क्रोनिक(खतरनाक) बीमारी है,वो महिला के अपेक्षा पुरुषों में ज्यादा होता है..
कुछ आंकड़ो से समझते है..

• समय से पहले मृत्यु, महिला के अपेक्षा पुरुषों की ज्यादा होती है।
वैश्विक स्तर पर COVID-19 से महिला के अपेक्षा पुरुषों की मृत्यु 45% ज्यादा हुआ..

इसी तरह हृदय (heart) से जुड़े रोगों से मरने वालों पुरुषों की संख्या महिला से 45% ज्यादा थी,जबकि ये यूरोपियन देशों में 49% तक देखा गया..।

वंही मानसिक समस्या से जुड़ा मामला, वैश्विक स्तर पर महिला से ज्यादा पुरुषों में 35% ज्यादा देखा गया।
(गरीब देश मे ये मामला ~50% तक ज्यादा है)

वंही डाइबिटीज के मामले में 1990 के दशक में 1 लाख पर पुरुषों की संख्या महिलाओ से 56 अधिक हुआ करता था,जो  2021 तक बढ़कर 147 हो गया है..।

इसी तरह कैंसर,किडनी,अर्थराइटिस, बैक पैन की समस्या भी महिला के अपेक्षा पुरुषों में ज्यादा है..।।

https://www.healthdata.org/news-events/newsroom/news-releases/lancet-public-health-global-study-reveals-stark-differences

इस रिपोर्ट में अलग-अलग कारण बताए गए है..
मगर आपके अनुसार ऐसा क्यों हो सकता है...
फिर से मैं,वहीं सवाल पूछता हूँ,आपने आखरी बार आयने के सामने कब मुशकुराया था..
सवाल मैं ही जबाब है..

महिलाओं के साथ अच्छी बात ये है कि वो सजने सवरने के लिए आयने के सामने खड़ी होती है,इस सिलसिले में कभी-कभी चेहरे पे मुस्कान आ जाती होगी,और सारा बोझ उत्तर जाता होगा..

मगर हम पुरुषों के साथ ऐसा नही होता,हम तो बाल भी इसलिए छोटा रखते है कि संवारने का झंझट न रहे..
यंही गलती कर जाते है..

कुछ समय निकालिये खुद से प्यार करने के लिए..
क्योंकि जब हम खुद से प्यार करने लगते है,तो सिर्फ बीमारियां ही नही हरेक समस्या खुद-ब-खुद दूर भागने लगती है..।।

विश्वास नही होता..
आयने के सामने जाइये और खुद को देखिए..

मैं जानता हूँ..
अभी भी आयने के सामने में खुद को देखने की जहमत बहुत लोग नही उठा पाएंगे..
आप उनमे से तो नही..
प्लीज उठिए और खुद को आयने में देखिए...
और एक बेहतर भविष्य का निर्माण कीजिये..।।




शुक्रवार, 29 नवंबर 2024

चलो फिर से जीते है..

क्या आपको बच्चों की किलकारिया परेशान करता है..??
अगर हां...
तो आपको सोचने की जरूरत है..
की, क्या आप जिंदा है या फिर मशीन बन(मर) चुके है..।

बच्चे का स्वभाव ही होता है..
हँसना,रोना,चिल्लाना,चीखना और चुप रहना और बहुत कुछ एक साथ करना..
सबसे बड़ी बात ये है कि.. 
बच्चें एक समय मे ही ये सब एक साथ कर सकते है..
और हम सब ज्यों-ज्यों बड़े होते है..
ये सब पीछे छूट जाता है..

क्या आपको याद है..
आपने आखरी बार कब खुल के हंसा था या फिर रोया था..
आपने आखरी बार कब जोर से चीखा या चिल्लाया था..
या फिर आपने आखरी बार कब चुपी रखी थी..

शायद आपको याद न हो..
थोड़ जोर देंगे तो कंही याद आ जाये..जोड़ दीजिये..

आपको ये बात जरूर याद होगी..
आपको आखरी बार गुस्सा कब आया था..
(मुस्कुराइए😊 आपकी यादाश्त अच्छी है.)

सबसे अजीब बात ये है की..
हमें गुस्सा कंही भी किसी के ऊपर आ जाता है,कभी-कभी तो इस गुस्से के कारण रिस्ते तक खराब हो जाते है..
और शायद इसका बाद में अफसोस भी होता है..
कभी-कभी ये अफसोस ताउम्र बना रहता है..।

मगर सोचा है आखिर हमें गुस्सा आता ही क्यों है..??
क्योंकि हमनें अपने बचपना को दफना दिया है..

आपको याद है..
आप बचपन मे ढेर सारे झगड़े किये होंगे..
मगर वो झगड़े सुलझ गए होंगे..
(शायद ही कोई आपका बचपन का दुश्मन हो)
क्योंकि उस समय हमारे अंदर 'अहम' (ego)नही होता था,
मगर वर्तमान में हम लबालब ego से भरे हुए है..
वो अक्सरहाँ हरेक के बात पे,कभी भी बाहर छलक जाता है..
ना वो व्यक्ति देखता है और ना ही परिस्थिति..।।

इसका हल क्या है..
चलो फिर से जीते है..
और बच्चों की किलकारियां और हंसी ठठोली को महसूस करते है..
चलो फिर से जीते है..
बच्चों के साथ कुछ पल बच्चें हो जाते है..
चलो फिर से जीते है..
और बचपन को समझने की कोशिश करते है...
चलो फिर से जीते है..

गुरुवार, 28 नवंबर 2024

हरेक चीज का महत्व है...

हमारे जिंदगी में हरेक चीज का महत्व है..
बशर्ते हमें किसी चीज की महत्वता का पता हो..।
आपके आस-पास जो भी कुछ है..
उस हरेक चीज का महत्व है..
वो वंहा इसलिये है क्योंकि उसकी वंहा जरूरत है..।
वो अलग बात है कि हमें पता नही है..
की इसकी क्या जरूरत है..।

इसी तरह मैंने अपने जिंदगी में गंध का महत्व को समझ..
मुझे 3 तरह की गंध बहुत रोमांचित करता है..
और मुझे अतीत का सफर करा देता है..।

● पहला सुंगंध कोयले की धुंए की है जो मुझे बचपन की यादों में ले जाता है..
● दूसरी सुगंध एक अगरबत्ती की है शायद,जो मुझे किशोरावस्था में ले के चला जाता है(इस अगरबत्ती की ढूंढने की कोशिस करता हूँ,अभी तक मिला नही है)
● और तीसरी सुगंध फूल की है जो मुझे किसी की याद दिला देती है..

मालूम नही चौथी सुगंध कैसी होगी,और इसका कैसा प्रभाव होगा..

अगर आप जिंदा है तो हरेक चीज को महसूस करेंगे..
चाहे हवा का स्पर्श हो,या फिर चांद की रोशनी का..
या चिड़ियों का चहचहाटो का,या फिर बच्चों की किलकारियों का..
ये सब चीज अगर आपको रोमांचित करता है..
तो आप जिंदा है..।।

किस से बात करू...

कभी-कभी मन होता है..
किसी से बात करू..
फिर सोचता हूँ..
किस से बात करू..
अगर कोई जेहन में आ भी गया..
तो फिर सोचता हूँ..
उससे क्या बात करूं..

अगर गलती से.. 
किसी को फ़ोन मिला भी दिया..
तो उधर से आवाज आती है..
क्या बात है,कॉल किया..।

फिर सोचता हूँ..
क्या जरूरी है...कोई बात हो, 
तब ही कॉल करू...

मगर सच तो यही है..
हमसब ने खुद को वैसा ही बना लिया है..
कोई बात हो तब ही कॉल करो..
अन्यथा बात मत करो..

अगर गलती से भी किसी का कॉल आये..
तो पहले, क्या बात है.. मत पूछना..
पहले पूछना, क्या हाल है..।।

कभी-कभी मन होता है..
किसी से बात करू..
फिर सोचता हूँ..
किस से बात करू..
अगर कोई जेहन में आ भी गया..
तो फिर सोचता हूँ..
उससे क्या बात करूं..


रविवार, 24 नवंबर 2024

जबतुम थक जाओ..

जब तुम थक जाओ..
तो थोड़ा रुक जाओ..
ना कि रुक कर वहीं रह जाओ..
बल्कि वंहा से आगे बढ़ जाओ..

कौन हैं यंहा..
जो थका हुआ है..
कौन है यंहा..
जो रुका हुआ है..
यंहा कोई नही.. 
जो थका हुआ है..
यंहा कोई नही 
जो रुका हुआ है..
जो यंहा रुक गया,
जो यंहा थक गया..
फिर उसका कंहा अस्तित्व रहा..

सर् उठा के आसमां की और देखो..
चांद तारे दिख रहे है, इसलिए..
क्योंकि वो थके नही है..
अपने आसपास देखो..
जो दिख रहे है..
वो इसलिए दिख रहे है..
क्योंकि वो थके नही है..।

ये ब्रह्मांड सिर्फ उसे ही स्वीकारता है..
जो थका नही है..
जो थक गया है..
उसे ब्रह्मांड भी नही स्वीकारता है..।।

इसीलिए जबतुम थक जाओ..
तो थोड़ा रुक जाओ..
ना कि रुक कर वंही रह जाओ..
बल्कि वंहा से आगे बढ़ जाओ..।।


इक खालीपन सा है..



एक खालीपन सा है..
सच मे एक खालीपन सा है..
एक ऐसा खालीपन जो कूड़ा-कचराओ से भरा हुआ है..
ऐसा ही खालीपन सा है..

कुछ नया भरने को मन है..
मगर इन कूड़ा-कचराओ से निकले कैसे है..

इक खालीपन सा है..
इसको फिर से नए सिरे से भरने को मन है..
शुरुआत कैसै और कंहा से करू..
इक खालीपन सा है...

या सच में..
मैं अपनी बचीं हुई संभावनाओं को भी खो रहा हु..
क्या ये उस और तो खालीपन का इशारा नही कर रहा है..
सच मे इक खालीपन सा है..

शुक्रवार, 15 नवंबर 2024

कितना मुश्किल है..

कितना मुश्किल होता है,
बिना सपनो के जिया जाना..
सच कहता हूं..
इससे भी मुश्किल होता है..
सपने न पूरा होने का मलाल ले कर ताउम्र जिया जाना..
काश ये होता है,काश ये करता..
ताउम्र इस काश के सहारे 
सपने न पूरे होने का मलाल लेकर जिया जाना..।।
कितना मुश्किल होता है..
उस बड़े सपने का न पूरा होना..
उससे भी मुश्किल होता है..
छोटे सपनों को भी न पूरा कर..
ताउम्र जिया जाना..।।

मगर आप हार नही मानते हो, तो..
आपके सामने हमेशा एक विकल्प होता है..
उसे पूरा करने के लिए..
जुट जा,जी जान लगा दे..
जो कर सकता है,
वो सब कर ले..
इतना कर ले..
की भविष्य में सपने ना पूरे होने का मलाल न रहे..

कितना मुश्किल होता है..
बिना सपनों के जिया जाना..
उससे भी मुश्किल होता है..
सपनों का न पूरा होने का मलाल ले कर ताउम्र जिया जाना..
मगर हमेशा एक विकल्प होता है..
उस अधूरे सपनों के ऊपर मरहम लगाने का..
अगर ये भी न लगा पाया..
तो सच मे ..
कितना मुश्किल है बिना सपनो के जिया जाना..

रविवार, 10 नवंबर 2024

मंजिले मिल ही जाती है..अगर पता हो

हम में से बहुत कम लोग ही होते है,जो अपने मंजिल तक पहुंच पाते है..
इसके अनेक कारण है..
सबसे बड़ा कारण है कि हममें से बहुधा लोगों को पता ही नही है कि जाना(मंजिल) कंहा है..
कुछ लोग अनमने ढंग से शुरुआत करते है,और कुछ रुकावट के कारण हार मान लेते है..।।
मगर कुछ लोग मंजिल पर पहुंच ही जाते है,चाहे कैसी भी रुकावट हो..

एक छोटी सी आपबीती बताता हूँ..



मैं अभी एक मंदिर के प्रांगण में बैठा था..और एक चूहा झाड़ियों से निकलकर बाहर आया और चबूतरे के किनारे-किनारे आगे बढ़ने लगा..
उस चबूतरे पे फिलहाल में अकेले बैठा था..चूहे की आंखे मुझसे मिली..में थोड़ा डरा क्योंकि चूहा थोड़ा बीमारू लग रहा था...और दिमाग मे प्लेग का ख्याल आने लगा..
चूहा अगर 10 सेकंड और मुझे घूरता तो मैं वंहा से हट जाता..
(शायद वो 10 सेकंड सोचा कि क्या करना है.. 
सीख - हम इंसान को भी कोई निर्णय लेने से पहले सोचना चाहिए शायद 30 सेकंड से 2 मिनट..तब शायद सही निर्णय ले पाए)
मगर ये क्या, चूहे ने खुद रास्ता बदल लिया और मेरे पीछे से होते हुए आगे की और बढ़ गया..
जंहा कुछ दूर पे उसका बिल था..
और वो बिल में घुस गया..
और मुझे सोचने को विवश कर छोड़ गया..
(सीख-उस चूहा के सामने में ,मैं उसके काल के ही समान भीमकाय था,मगर वो डरा नही,बल्कि अपने मंजिल तक पहुंचने का निर्णय लिया...और हम इंसान क्या करते है.थोड़ी सी भी परेशानियां आती है,और हम घबरा जाता है..)


हममें से अक्सरहाँ लोग जिंदगी में कठिनाई आने पर क्या करते है..
उस कठिनाई से पल्ला झाड़ने का सोचते है..
या अनमने ढंग से प्रयास करते है..
कुछ लोग होते है..
जो कठिनाई से निकलने के लिए नया मार्ग ढूंढते है,
और मंजिल तक पहुंचते है..।।

अगर मंजिल का पता है,
तो लक्ष्य तक पहुंचना आसान हो जाता है..
अगर आपकी मंजिल आपके अस्तित्व का निर्णय करती है..
तब तो सबकुछ दांव पे लगा कर मंजिल तक पहुंचना जरूरी हो जाता है..

शुक्रवार, 1 नवंबर 2024

कभी-कभी...

कभी-कभी जान बूझकर हंसता हूँ मैं..
अपने गम को छुपाने के लिए..
कभी-कभी यू ही भीड़ का हिस्सा बन जाता हूँ मैं..
अपने अकेलेपन को दूर करने के लिए..
कभी-कभी यू ही पेड़-पौधों से बात करने लगता हूँ मैं..
अपने होने का भान होने के लिए..
कभी-कभी यू ही समुन्द्र का सैर कर लेता हूँ मैं..
अपने अंदर छुपी उद्वेग को दूर करने के लिए..
कभी-कभी यू ही रात में आसमां को निघारने लगता हूं मैं..
अपने अस्तित्व को जानने के लिए..
कभी-कभी यू ही इस ब्रह्मण्ड के बारे में सोचने लगता हूँ मैं..
इसका उत्तराधिकारी होने के नाते😊..
कभी-कभी खुद के बारे में सोचने का प्रयास करता हूँ मैं..
मगर मैं,का भान होने से पहले ही, कंही भटक जाता हूँ मैं..।
कभी-कभी..यू ही _ख  ले_ हूँ मैं..
अपने मन को बहलाने के लिए..😊



बुधवार, 30 अक्टूबर 2024

इस दीवाली.."अप्प दीपो भवः"

महात्मा बुद्ध के अंतिम क्षणों में उनके शिष्य आंनद ने उनसे पूछा- महात्मन हमलोगों के लिए क्या संदेश है..
उन्होंने कहा- "अप्प दीपो भवः"
यानी अपना दीपक स्वयं बने...।।

मगर वर्तमान में क्या हो रहा है..
आप जरा सोचिए बचपन से लेकर अबतक आप दूसरों के विचारों से ही प्रभावित है,आप आज जो कुछ कर भी रहे है कंही न कंही उसपे दूसरों का प्रभाव ही है..

वास्तविकता तो ये है कि वर्तमान समय मे हम खुद से कुछ निर्णय लेने की स्थिति में है ही नही..।।

आपको अगर कुछ खरीदना है तो आप कमेंट और रिव्यु देखते है,इंस्टा पर रील देखकर फैशन का चयन करते है..
Tv और मोबाइल पे ऐड देखकर आप समान खरीदते है..।।

जरा सोचिए आपने आखरी बार कब अपनी पंसंद की वस्तु खरीदी थी..जिसके लिए आपको ऐड और रिव्यु नही देखना पड़ा था..।।

वर्तमान में हमारी नई जेनरेशन पूर्णतया दूसरों पे आश्रित होते जा रहे है..
वो कुछ भी निर्णय करने की स्थिति में आज नही है..
वो क्या पहनेंगे,क्या खाएंगे,क्या पियेंगे,क्या करेंगे..
इसका निर्णय कोई और कार रहा है..
अब ये स्थिति ग्रामीण क्षेत्र में भी अपना विशालकाय रूप धारण करने को अग्रसर है..।।

इसलिय इस दीवली एक दीप अपने लिए जलाए..
और स्वयं ही "अप्प दीपो भवः " होए..

एक नया कीर्तिमान रचना है..

सब जिंदगी के किसी न किसी मुकाम पे पहुंच गए..
मैं जंहा था,वंही ही रह गया..
एक समय था जब मैं खुद से कहा करता था..
मैं इतनी लंबी छलांग लगाऊंगा की मैं सबसे आगे निकल जाऊंगा..
और सबसे आगे निकल जाऊंगा..।

आज फिर खुद को देखता हूँ..
तो खुद को वंही पाता हूँ,
जंहा सालों पहले थे..
और जो मुझसे आगे थे,
वो सच में बहुत आगे निकल गए..।।

मेरा होड़ किसी से नही है स्वयं के सिवा..
मैं खुद को ही नही हरा पा रहा हूँ..
तो औरों की बात क्या है..।।

एक लंबी छलांग तो लगानी है..
अपनी सारी असफलताओं को ठेंगा दिखाकर..
एक नया कीर्तिमान रचना है..।।

क्योंकि..
मैं कल भी आशावादी था,
मैं आज भी आशावादी हूँ,
मैं कल भी आशावादी रहूंगा..😊


रविवार, 27 अक्टूबर 2024

प्यार की पांति...मालूम नही तुम क्यों..

मालूम नही,तुम क्यों याद आती हो..
जब भी याद आती हो..
आंखें नम करके चली जाती हो..
मालूम नही तुम क्यों याद आती हो..।

जब भी मैं एकाकी महसूस करता हूँ
(जब भी कुछ ज्यादा हो गया😊)
सहसा तुम्हारा ख्याल आता है..
शायद मैं तुम्हारा ऋणी हूँ..
इसीलिए शायद तुम याद आती हो..।

वास्तविकता तो ये है..
की सालों से तुम्हारा कोई खबर नही है..
इस डिजिटल युग मे भी तुम,
न जाने कंहा गुम हो..।

अब तुम्हारी याद भी..
अरब सागर के सुनामी की तरह ही आती है..
मगर फिर भी..
मालूम नही तुम क्यों याद आती हो..।।

वैसे भी हम कभी पैंजिया थे ही नही..
कुछ उम्मीदें जगी भी,
मगर जगने से पहले ही हम,
अंगारलैंड और गौंडवानलैंड में बट गए..
मैं तुम्हारा पीछा करते-करते 
दक्षणी गोलार्ध से उत्तरी गोलार्ध मैं पहुंच गया..
मगर तुम्हारा कुछ पता ही नही चला..
मगर तुम्हारा अस्तित्व है अभी भी,
इसीलिये तो भूकंप की तरह,
मेरे अंदर उद्गार मारती हो कभी-कभी..।।
मालूम नही तुम क्यों याद आती हो..।।



क्या आप भी संडे को आराम फरमाते है..

आपने अक्सरहाँ सुना होगा..
कल तो संडे है..अपना दिन है..
मगर अफसोस इस दिन को हम अपना नही बना पाते...
आपको कोई ऐसा संडे याद है,जो आपके लिए खाश हो..
शायद अधिकांश का जबाब नही में ही होगा..
क्यों...??
क्योंकि संडे को हम आराम फरमाते है..।
अब स्कूल के बच्चे ही नही बल्कि बड़े भी संडे को देर तक आराम फरमाते है..
अब ये चलन गाँव तक पहुंच गया है..
क्योंकि अब हमारी निर्भरता कृषि पर से कम जो होती जा रही है..।।



क्या आपको पता है...
संडे को छुट्टी देने की शुरुआत कब और क्यों हुई..??

आज से लगभग 175 साल पहले तक संडे को छुट्टी के रूप में मनाने का रिवाज नही था..
सन 1843 में पहली बार ब्रिटेन के गवर्नर ने स्कूल में संडे को छुट्टी देने की घोषणा की...
जिससे बच्चे कुछ नया क्रिएटिव कर सके..
मगर आप ही बताए कितने बच्चे आज क्रिएटिव काम करते है या फिर हम बच्चों को करने देते है..😊

भारत मे संडे की छुट्टी की शुरुआत की मांग, मजदूर नेता मेधाजी लोखंडे ने 1857 में की, और इनकी मांग को अंग्रेजो ने 10 जून 1890 की स्वीकार कर लिया...
और सबके लिए संडे की छुट्टी घोषित कर दिया गया..।।

मगर वास्तविकता तो ये है कि,
 संडे तो गुलामों के लिए होता है..
 राजा के लिए संडे तो कुछ नया करने के लिए एक   सुनहरा  अवसर  होता है..
 निर्णय आपको करना है..
 संडे को गुलामों की तरह जाया करना है,
 या फिर राजा की तरह सदुपयोग...😊

शुक्रवार, 25 अक्टूबर 2024

हम स्वयं ही..

हम स्वयं ही अपना उद्धारक और विनाशक है..
हम आज जिस परिस्थिति में  है,
उसके लिए स्वयं और खुद स्वयं ही जिम्मेवार है..।
मजे की बात ये है कि हम जब चाहै, 
तब अपनी परिस्थितियों को बदल सकते है..
मगर अफसोस हम जिस परिस्थिति में है उसमें रहने के आदि हो जाते है,और उसे ही सत्य मान लेते है..।

मगर वास्तविकता ये है कि..
इस जगत में कुछ भी सत्य नही है..।
सिर्फ और सिर्फ स्वयं के सिवा..।।
शंकराचार्य कहते है:-
" ब्रह्म सत्यह जगत मिथ्या,जीवो ब्रह्मो नापरः"
 ब्रह्म सत्य है,जगत मिथ्या है,और जीव ही ब्रह्म है,और इसके   सिवा कुछ भी नही...







रविवार, 20 अक्टूबर 2024

प्यार की पांति..

कहते है खोजो तो भगवान मिल जाते है..
मगर इक तुम हो..
जो मिलने का नाम ही नही लेते...।
कंहा हो..
कैसे हो..
कुछ भी पता नही..।
मगर जंहा भी हो,
खुश रहो..।।
दुनिया बहुत छोटी है..
कंही न कंही मिल ही जायेंगे..।।





रविवार, 13 अक्टूबर 2024

प्यार की पांति..आज सहसा फिर तुम्हें ढूंढने निकला..

आज सहसा फिर तुम्हें ढूंढने निकला..

वंही जंहा पहले तुम्हें ढूंढने को जाया करता था..

फेसबुक और इंस्टा पर..

आज भी वही हुआ जो पहले होता आया है..

आज फिर तुम नही मिली..

ये शायद आखरी बार था..

अब तुम्हें नही ढूंढूंगा..

तुम्हे ढूंढते वक़्त यही ख्याल आ रहा था..

आखिर तुम याद ही क्यों आई..

शायद तुमने याद किया होगा..

इसीलिए तुम याद आई..।।

कैसे बताऊँ तुम्हें की, 

कितना प्यार करता हूँ..

तुम्हें याद करते ही आंखें नम हो जाती है..

और चेहरे पे मुस्कान आ जाती है..

आज सहसा फिर तुम्हें ढूंढने निकला..

वंही जंहा पहले तुम्हें ढूंढने को जाया करता था..।।

शनिवार, 12 अक्टूबर 2024

विजयदशमी मनाने का अभिप्राय..

हम सालों से नही सदियों से विजयादशमी मनाते आ रहे है..
मगर आज तक कुछ सीख नही पाए है..
हम आज भी वंही है,जंहा सदियों पहले थे..
भले ही हम बाहर से कितने भी बदल गए है..
मगर अंदर से आज भी हम वैसे ही है..
अगर समाज और कानून का डर न होता तो हरेक इंसान का विकृत स्वरूप देखने को मिलता..।।

ऐसा नही है कि हम खुद को बदलना नही चाहते, हम ताउम्र प्रयासरत रहते है..
मगर कुछ ही लोग खुद को बदल पाते है,और देवत्व को धारण करते है..

हम सब जब विजयदशमी की बात करते है..
तो हमारे सामने राम और रावण का चेहरा उभरता है..
मगर विजयदशमी का तात्पर्य है कि हम अपने 10 अवगुणों पे विजय पाये..
ये 10 अवगुण क्या है..शायद हमें पता भी नही है मगर हम विजयदशमी मनाते आ रहे है..
हमसब इस 10 अवगुणों के शिकार है...
ये 10 अवगुण है...
काम,क्रोध,मोह,लोभ,अहंकार,अस्तेय,द्वेष,घृणा,व्यभिचार, पक्षपात..


शुरुआत के 5 से छुटकारा पाना बहुत दुष्कर है..
क्योंकि जिसतरह हम वस्त्र को धारण किये होते है,उसी तरह ये अवगुण हमारे इंद्रियों को धारण किये हुए है..
क्योंकि ये अवगुण स्वतः घटित हो जाता है,और हमें पता नही चलता..

ऐसा नही है कि इससे छुटकारा नही पाया जा सकता है..
सबसे पहले तो हमें अपने अवगुणों को स्वीकारना होगा..
जबतक इसे स्वीकारेंगे नही तबतक इससे छुटकारा नही पा सकते..

हमलोगों में से अधिकांश लोगों को गुस्सा आता है,मगर इसका कारण हम दूसरों को मानते है..
कई लोग अहंकार से लैस होते है,मगर वो अनभिज्ञ होते है..
कभी-कभी सहसा ही द्वेष भावना जागृत हो जाता है,और हमें पता नही चलता..

इन अवगुणों को पहचानना भी बड़ा दुष्कर है..
क्योंकि सब इस अवगुणों से पीड़ित है..
इसीलिये पता नही चलता..

मगर जब इसके कारण बुरा परिणाम घटित होता है,तो वो ताउम्र साथ रहता है...

इसीलिए शुरुआत में ही अपने अवगुणों को पहचाने..
और इससे छुटकारा पाने की कोशीश करें..
आखिर कैसे छुटकारा पाए..??
सबसे पहले अपने अवगुणों को कॉपी पे लिखें..
इसके कारण क्या-क्या नुकसान हुए है, उसे भी लिखे..
देखिए लिखते ही इन अवगुणों से छुटकारा मिलना शुरू हो जाएगा..

इस विजयदशमी उन 10 अवगुणों को पहचाने और अपने अंदर से दूर करें..
तब ही विजयदशमी मनाने का अभिप्राय है..
अन्यथा हम सदियों से मनाते ही आ रहे है...।।



शुक्रवार, 11 अक्टूबर 2024

सफलता के प्रेरणास्रोत अमिताभ बच्चन

जिंदगी कभी एक समान नही रहती..
इसमें उतार चढ़ाव आता ही रहता है..
कुछ लोग इस उतार-चढ़ाव से घबरा जाते है..
और कंही खो जाते है..
और कुछ लोग इसका सामना करके नए कीर्तिमान रच देते है..
उन्ही में से एक सदी के महानायक अमिताभ बच्चन जी है जिनका आज 82 वा जन्मदिन है..



आज भी वो भारत के आम युवाओं से ज्यादा काम करते है..
सिर्फ काम ही नही बल्कि अपने काम से प्यार करते है..
और अपने नैतिक विचार और व्यवहार के कारण हरेक भारतीयो के दिल मे अपना जगह बनाये हुए है..।।

उनके जिंदगी से बहुत कुछ सीखा जा सकता है..
एक समय था जब वो सफलता के ऊंचाइयों पे पहुंच गए थे,और इनके आस-पास कोई नही था..
फिर एक समय आया जब ये असफलता के इतनी गहराइयों तक पहुंच गए थे कि इनकी मदद करने वाला तक कोई नही था..
इन्होंने हिम्मत नही हारी बल्कि जिंदगी की दूसरी पारी शुरुआत की..
कभी डायरेक्टर जो इनका चक्कर लगाया करता था..बुरे समय मे इन्हें डायरेक्टर का चक्कर लगाना पड़ा हरेक जगह से खाली हाथ ही लौटना पड़ता था..
यंहा तक कि यश चोपड़ा ने काम के जगह चेक दिया इन्होंने लेने से इंकार कर दिया और कहा अगर कोई काम हो तो दीजिये..

फिर काम के ही तलाश में पहुंच गए छोटे पर्दे तक  और नया इतिहास रच दिया "कौन बनेगा करोड़पति" शो करके..
और फिर अबतक पीछे मुड़ के नही देखा..और ये यात्रा अब तक जारी है..

वो वास्तव में हीरो है..
दरसल हीरो वो होता है जो समाज मे बदलाव लाता है..
और वो अपने कार्यों से ला रहे है..
हम उनसे बहुत कुछ सीख सकते है..
सबसे पहले तो हम उनसे सीख सकते है कि कैसे बात की जाती है..चाहे बड़े हो या छोटे सबके साथ आदरपूर्वक बात की जानी चाहिए..
जिंदगी में भले ही कितनी बुरी परिस्थिति हो हार ना माने..
अगर आप डटे रहेंगे तो सफलता जरूर मिलेगी..
काम चाहे कोई भी हो..अगर वो आपकी जरूरतों को पूरा करता हो,तो अपने काम से प्यार करें..
परिवार और समाज के प्रति जो हमारा दायित्व है उसे भी पूरा करना हमारा कर्तव्य है..
अपने आर्थिक हित के लिए अपने नैतिकता को दांव पर नही लगाए(उन्होंने कभी भी धूम्रपान का ऐड नही किया)
सबसे बड़ी बात अगर आज हम अमिताभ बच्चन को जानते है तो क्यों..क्योंकि वो आज भी कार्यरत है..
जबतक जिंदगी है,तबतक कार्य करते रहें अन्यथा कोई याद नही करेगा..
आज की जेनरेशन उनके दौर के कितने कलाकार को जानते है शायद एक को भी नही..

इसीलिए अगर जिंदा है तो चलते रहे...
और अपने जीवंतता का प्रमाण देते रहे..
अन्यथा सिर्फ दुनिया ही नही बल्कि अपने भी भूल जाते है..



गुरुवार, 10 अक्टूबर 2024

भारत के रत्न "रतन टाटा"..

कुछ सुबहें पूरी फिजा को ग़मगीन कर देती है..
आज की सुबह कुछ वैसी ही थी..
मानो पूरी प्रकृति मौन हो..
मुंबई के बादलों को शायद पता था..
इसीलिए बादलों की छांव ने एकदिन पहले से ही मुम्बई को ढक दिया था..
और सिसक-सिसक कर बूंदे गिरो रहा था..
क्योंकि एक रत्न जो भारत को हरेक क्षेत्र में अग्रणी और उसके सम्मान के लिए सब कुछ न्यौछावर करने के लिए सबसे अग्रणी रहता था..
वो चुपचाप सबको छोड़के जाने वाला था.।।

रतन टाटा भारत के वो रत्न थे,जिनसे सब प्यार करते थे..वो आज इस प्रकृति में विलीन हो गए..


टाटा सिर्फ नाम नही बल्कि भारत का गौरव है..
भारत जिस-जिस क्षेत्र में पीछे था..
उस क्षेत्र में टाटा ने अग्रणी भूमिका निभाई और दूसरे कंपनियों के लिए पथ-प्रदर्शक की भूमिका निभाई..
चाहे वो लक्ज़री ब्रांड हो(लैक्मे,टाइटन),या फिर IT,स्टील,लक्सरी गाड़ियां, लक्सरी होटल,उन सभी क्षेत्र में टाटा ने भारत को विश्व मे पहचान दिलाई..
टाटा को ग्लोबली पहचान दिलाने में रतन टाटा का अहम योगदान था..



रतन टाटा का जन्म मुम्बई में 28 दिसंबर 1937 को हुआ इनके पिता नवल टाटा और माँ सोनू टाटा थे..
जब ये 10 साल के थे तो इनके माता-पिता का तलाक हो गया जिसके बाद इनकी परवरिश इनकी दादी नावजबाई टाटा ने की
इन्होंने शुरुआती पढ़ाई मुम्बई से ही किया और इन्होंने कॉर्नवाल विश्वविद्यालय से आर्किटेक्चर में स्नातक किया..



1961 में टाटा स्टील में काम करना शुरू किया.. फिर इनके चाचा J.R.D TATA ने घाटे में चल रही कंपनी Nelco का कमान दिए इस कंपनी को दो साल में ही घाटे से उबारकर मुनाफे में ला दिया।(और इसी समय TCS का बीज इन्होंने अपने अंदर बो दिया..जो आज वटवृक्ष बन चुका है..जिससे स्वंतंत्र होकर कई वृक्ष(इंफोसिस,HCL etc) पूरे विश्व मे अपना परचम लहरा रहे है)


1991 में  J.R.D Tata ने इन्हें अपना उत्तराधिकारी बनाया  जो 2012 तक बने रहें..
इन्होंने अपने कार्यकाल में टाटा समहू का वैश्वीकरण किया..और अपने 21 साल के कार्यकाल में टाटा समूह के राजस्व को 40 गुणा बढ़ाया और लाभ 50 गुणा बढ़ाया..।।
और आज टाटा समूह अपने राजस्व का 50% अंतराष्ट्रीय बाजार से अर्जित करता है..।।



रतन टाटा ने अपने स्तर पर कई छोटे स्टार्टअप कंपनी को सपोर्ट किया चाहे वो स्नैपडील हो या ओला कैब और ढेर सारी कंपनियां जिसे उन्होंने अपने स्तर पर सपोर्ट किया..।।

रतन टाटा सच में एक संत थे..
जिन्होंने अपने सारे गमों को अपने अंदर दफन करके देश और समाज के कल्याण के लिए सबकुछ न्यौछावर कर दिया..
 
- उन्होंने जिस विश्वविद्यालय से पढ़ा (कॉर्नेल विश्वविद्यालय) उसे 2008 में 50 मिलियन $ दान दिया जो अब तक के इतिहास में किसी विश्वविद्यालय को इतना बड़ा दान नही दिया गया है..
-कोरोना काल मे सर्वाधिक दानदाताओं में सबसे अग्रणी थे..



वास्तविकता तो ये है कि उनका जन्म ही देने के लिए हुआ था..
टाटा ग्रुप आज भी अपने लाभ का 60% चैरिटी करता है..।

रतन टाटा के जिंदगी में भी कई मोड़ आये मगर वो हारे नही..
10 साल के उम्र में ही माता-पिता का तलाक..
अमेरिका में जॉब के दौरान जिससे प्रेम किया उस रिश्ते को लेकर परिवार खुश नही था जिस कारण उससे शादी नही किया और ताउम्र कुँवारे ही रहे..
2011 में उन्होंने कहा था "मैं चार बार विवाह के निकट पहुंचा किंतु प्रत्येक बार किसी भय या किसी अन्य कारण से पीछे हट गया"..(शायद माता-पिता का तलाक या अपने प्रेम के प्रति सम्मान रहा हो)

इनका जिंदगी भी एकांकी भरा था मगर उन्होंने इसे अपने ऊपर हावी नही होने दिया..

इन्होंने पूरे वसुधा को ही अपना कुटुंब मान लिया..
इसीलिये तो आज की सुबह उनके निधन की खबर सुनकर पूरा वसुधा ग़मगीन हो गया..।।



रविवार, 6 अक्टूबर 2024

हे प्रभु अब हार चुका हूं..

जिंदा हूँ..
सांसे चल रही है..
ये काफी है..
फिर से खड़े होने के लिए..
और कुछ कर गुजरने के लिए..।।

मगर मर चुका हूं..
बस सांसे चल रही है..
और दिन बिताए जा रहा हूं..
सुबह से रात, और रात से सुबह होती जा रही है..
और यू ही जिंदगी जाया किये जा रहा हूँ..।।

मालूम नहीं कब..
जिंदगी के महत्ता का भान होगा..
और खुद पे गुमान होगा..
और उस प्रकृति का मुझपे अहसान होगा..।।

आधा जिंदगी यू ही जाया कर चुका हूं..
बची आधी जिंदगी को भी जाया किये जा रहा हूँ..
मालूम नही कब वास्तविकता का भान होगा..
और स्वयं के अंदर बदलाव होगा..

सच तो ये है कि..
सबकुछ का भान होकर भी अनजान हूँ मैं..
अपने हरेक परिस्थितियों के लिए स्वयं जिम्मेदार हूं मैं..
अपनी कमजोर इच्छाशक्ति और संकल्प शक्ति के कारण बेहाल हूं मैं..
अपने आलस्य और वासनाओं का गुलाम हूं मैं..

मालूम नही कैसे इससे पार पाऊंगा..
अपने आलस्य और वासनाओं को पार कर कैसे स्वयं का जीर्णोद्धार करूँगा..



हे प्रभु अब हार चुका हूं..
अब आपका ही आसरा है..
इस जिंदगी की डोर को
अब आप ही थाम लो..
भटक चुका हूं
इस मायावी दुनिया मे..
धस चुका हूं
कुकर्मो के दलदल में..
खुद से तो बहुत प्रयास किया..
मगर हर बार खड़ा हुआ 
और हर बार गिर गया..
हे प्रभु अब हार चुका हूं..
अब आपका ही आसरा है..
इस जिंदगी की डोर को
अब आप ही थाम लो..